प्रश्न मैं तुझ पर उठाऊँ, हूँ नहीं इतना पतित भी,
किन्तु जो प्रत्यक्ष है उस पर अचंभित हूँ, अकिंचन!
पूछ बैठा हूँ स्वयं के, बोध की अल्पज्ञता में,
बोल दे हे नाथ मेरे, क्या यही तेरा सृजन था?
जब दिखी मुस्कान तब-तब, आँसुओं का आचमन था।
आस के मोती हृदय की, सीप में किसने भरे थे?
कौन भावों की लहर में, घोल रंगों को गया था ?
धड़कनों की थाप पर, किसने किया मन एकतारा?
प्रीत की पहली छुअन को, पुण्य सम किसने किया था?
किन्तु क्षण के बाद…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on November 27, 2019 at 5:00pm — 2 Comments
प्रेम : विविध आयाम
प्रेम
ठहरा था
बन के ओस
तेरी पलकों पर...
उफ़ तेरी ज़िद
कि बन के झील
वो तुझे मिलता...
प्रेम
काल कोठरी के
मजबूत दरवाजों की
झिर्रियों से झांकती
सुबह की
पहली सुनहरी…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on November 13, 2019 at 2:00pm — 3 Comments
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