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खुला आकाश तेरा है ..... (विश्व महिला दिवस पर) //डॉ. प्राची

ये माना रात गहरी है, सुनहरा पर सवेरा है।
सलाखें तोड़ दे बुलबुल, खुला आकाश तेरा है।

तुझे जो रोकती है वो
हर इक ज़ंज़ीर झूठी है,
ज़रा झंझोड़ हर बंधन,
कहाँ तकदीर रूठी है ?
उड़ानों पर तेरा हक़ है, ये पिंजर कब बसेरा है?
सलाखें तोड़.....

ज़माने के तराजू पर
न अपने पंख अब तू तोल,
'खुले अम्बर' की परिभाषा
जो सच समझे, वही तू बोल।
ये तेरा चित्र है जिसका, तेरा दिल ही चितेरा है।
सलाखें तोड़.....

तुझे छूना है चन्दा को
तुझे किरणों पे चढ़ना है,
रवानी भर परों में खुद
तुझे ही लक्ष्य गढ़ना है।
तेरी हर साँस ने पलकों पे ये सपना उकेरा है।
सलाखें तोड़.....

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by amita tiwari on March 27, 2016 at 6:11pm

उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on March 15, 2016 at 3:31am

//ज़माने के तराजू पर
न अपने पंख अब तू तोल,
'खुले अम्बर' की परिभाषा
जो सच समझे, वही तू बोल।
ये तेरा चित्र है जिसका, तेरा दिल ही चितेरा है।
सलाखें तोड़.....//

आदरणीया प्राची जी, आपने इन पंक्तियों में भावनाओं की जो होली खेली है वह अतुलनीय है....इतने रंग !! अद्भुत !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 10, 2016 at 10:43am

आदरणीया प्राची जी ..मंत्रमुग्ध कर देने वाला ..उत्साहित करने वाला ..बुलबुल के माध्यम से सुंदर सन्देश संप्रेषित करता यह शानदार गीत आपकी शानदार रचनाओं की एक माला की सुंदर कड़ी है ..ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by जयनित कुमार मेहता on March 9, 2016 at 9:22pm
आदरणीय प्राची जी, बहुत ही सुन्दर ओजपूर्ण रचना के लिए बधाई आपको।।
Comment by ram shiromani pathak on March 9, 2016 at 6:29pm
बहुत बहुत बधाई आदरणीया।।सादर
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 9, 2016 at 11:30am

बहुत ही सुंदर सार्थक गीत के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई ...आ० प्राची बहन l

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 9, 2016 at 5:53am
" ये तेरा चित्र है जिसका, तेरा दिल ही चितेरा है। "
वाह ! बहुत ही सुन्दर , बधाई , आदरणीय डॉo प्राची सिंह जी , सादर।
Comment by Sushil Sarna on March 8, 2016 at 5:46pm

ये माना रात गहरी है, सुनहरा पर सवेरा है।
सलाखें तोड़ दे बुलबुल, खुला आकाश तेरा है।

तुझे जो रोकती है वो
हर इक ज़ंज़ीर झूठी है,
ज़रा झंझोड़ हर बंधन,
कहाँ तकदीर रूठी है ?
उड़ानों पर तेरा हक़ है, ये पिंजर कब बसेरा है?
सलाखें तोड़.....

वाह बहुत ही सुंदर, प्रेरक सकारात्मकता को लक्ष्य कर आपने ये गीत लिखा है। उस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आ. डॉ. प्राची सिंह जी।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on March 8, 2016 at 3:55pm
सुंदर सार्थक भावों को लिए अनुपम गीत!हार्दिक बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 8, 2016 at 3:17pm

बहुत सुन्दर सार्थक गीत ...महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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