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आदरणीया , सुन्दर रचना ..............बधाई
सुन्दर रचना ,
इस प्रयाश पर हार्दिक बधाई l
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ प्राची सिंह जी! बेहतरीन गज़ल!
आदरणीय समर कबीर जी
असल में स्वास्थ्य आज कल ठीक नहीं है, तो नींद आने में बहुत परेशानी है.
रात को जागते जागते अक्सर मोबाइल पर ही टाइप करते करते ग़ज़ल कहती हूँ.... मोबाइल से ग़ज़ल डिलीट हो जाने का डर रहता है, इसलिए उसे अगले दिन ऑनलाइन ओबीओ पर मोबाइल से ही शेयर कर देती हूँ.
लैपटॉप पर बैठने की इजाज़त नहीं तो, कम ही समय मिल पाता है... पढने समझने के बाद भी शिल्पगत टिप्पणियों का विषद प्रत्युत्तर देने का ... कभी कभी स्वास्थ्य इजाज़त नहीं देता.
विश्वास है आप माफ़ करेंगे.
धीरे धीरे पुरानी पोस्ट्स के उत्तर भी दे रही हूँ. अब उसी ग़ज़ल की बारी थी, जिसपर आपने बहुमूल्य सुझाव दिए हैं...
मुझे समय अवश्य ही दें... और कृपया हर शिल्पगत कमी और सुधार की गुंजाइश को ज़रूर इंगित करें .
यदि संभव हो तो ग़ज़ल के प्रकारों पर भी जानकारी भी अवश्य सांझा करें. यथा रवायती , मुसलसल ..आदि , मैंने खोजने की कोशिश की थी पर मुझे विस्तृत और स्पस्ट जानकारी प्राप्त नहीं हुई.
दुबारा लौटती हूँ इस ग़ज़ल पर आपके सुझावों पर.
सादर.
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को | सादर
अपनों के गम पर आतिशें अच्छी नहीं होतीं।
यूँ पीठ पीछे साजिशें अच्छी नहीं होतीं।
घर-बार रिश्तेदार सब हों दाँव पर, जिसमे
इतनी बड़ी भी ख्वाहिशें अच्छी नहीं होतीं।
निःशब्द हूँ आपके इन खूबसूरत अहसासों से जड़ित ग़ज़ल की प्रस्तुति पर। हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय डॉ प्राची सिंह जी।
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