For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रेम की नवल पहेली.... डॉ० प्राची

अचानक ही हो गयीं कुछ पंक्तियाँ....

बदरी के पहलू में

सूरज की अठखेली....

 

सूरज की साज़िश ने

लहरों की बंदिश से बूँद चुराकर,

प्रेम इबारत अम्बर पर लिख दी

सतरंगी पट ओढ़ाकर,

 

बूझ रही फिर भोर

प्रेम की नवल पहेली....

 

आतुर बदरी बेसुध चंचल

लटक मटक नभ मस्तक चूमे,

अंग-अंग सिहरन बिजली सी  

गरज-बरस लहराती झूमे

 

मधुर प्रणय के

स्वप्न संजोती प्रिया नवेली.... 

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1051

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 23, 2014 at 2:25pm

प्राकृतिक बिम्बों को लेकर लिखी गयी यह सहज अभिव्यति आप सभी सुधि पाठक वृन्दों को पसंद आयी और आप सबकी सराहना मिली ..इस प्रोत्साहन हेतु मैं सभी की हृदय तल से आभारी हूँ 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 22, 2014 at 1:31am

आदरणीया प्राचीजी,
प्रकृति के पहलुओं को मनोदशा से अँकुरे अर्थ देना काव्य-लालित्य का अन्योन्याश्रय भाग रहा है. आपने जलावतरण के स्तरों को व्यापक कर अनुभूत क्षणों को अभिव्यक्त किया है. प्रस्तुति की गहनता के प्रति मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ.

और ने में अनुस्वार का क्या प्रयोजन है भाई ?? .. मात्र ने रखिये न !

:-)))
शुभ-शुभ

In lighter mood ..

आदरणीया, जिसतरह की पारदर्शी आपने इस रचना के साथ नत्थी की है, वैेसे चित्र हमें भी अपने छुटपन में दिखा करते थे.

तब हम पन्नी के अठनिया चश्में पहन कर आरज़ू का राजेन्दर कुमार बनते-फिरते थे..   :-))) 

हा हा हा हा.. .

सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 22, 2014 at 12:36am
सुन्दर . कविता , चित्र भी सुन्दर और सबसे सुन्दर भाव . सतरंगी नभ में उन्मुक्त स्वप्न संजोती प्रिया नवेली को मिले रंगीन संसार और वैसा ही आकाश.

अचानक ही हो गयीं कुछ पंक्तियाँ.... के लिए , बधाई।
सादर।
Comment by Arun Sri on July 21, 2014 at 1:03pm

चीखते दृश्यों के बीच छटपटाता हुआ मन जब कुछ इस तरह के सुन्दर आसमान पर पहुँचता है तो और गूढ़ लगने लगता है जीवन का रहस्य ! बहरहाल , बेहद प्यारा गीत !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 21, 2014 at 10:15am

बदरी के पहलू में

सूरज की अठखेली....

 

सूरज की साज़िश नें

लहरों की बंदिश से बूँद चुराकर,

प्रेम इबारत अम्बर पर लिख दी

सतरंगी पट ओढ़ाकर,

 

बूझ रही फिर भोर

प्रेम की नवल पहेली....

मधुर प्रणय के

स्वप्न संजोती प्रिया नवेली. ---बरसते बदरा पर सूर्य की किरणों से निर्मित सतरंगी धनुष को लेकर रचित सुन्दर भावों की 

अनुपम रचना के लिए हार्दिक बधाई आ. डॉ प्राची जी 

Comment by mrs manjari pandey on July 20, 2014 at 7:19pm
आदरणीया डॉक्टर प्राची जी पहेली अबूझ नहीं लगी भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई
Comment by Meena Pathak on July 20, 2014 at 6:12pm

अद्भुत रचना हुई ...बधाई आ० प्राची जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 20, 2014 at 10:51am

आदरणीया प्राची जी , अद्भुत प्रणय कविता की रचना हुई है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 19, 2014 at 11:46pm

बारिश की बूंदों सी निर्मल, सुंदर सा भाव ली हुई पंक्तियाँ. बहुत-२ बधाई आपको आदरणीया डा.प्राची जी

Comment by Santlal Karun on July 19, 2014 at 5:13pm

आदरणीया डॉ. प्राची जी,

प्रणय भावानुबोध को रेखांकित करता अत्यंत सुन्दर रूपक-चित्र; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह .. वाह वाह ...  आदरणीय अशोक भाईजी, आपके प्रयास और प्रस्तुति पर मन वस्तुतः झूम जाता…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाई जी, आयोजन में आपकी किसी रचना का एक अरसे बाद आना सुखकर है.  प्रदत्त चित्र…"
2 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"अंतिम दो पदों में तुकांंत सुधार के साथ  _____ निवृत सेवा से हुए, अब निराली नौकरी,बाऊजी को चैन…"
4 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी _____ निवृत सेवा से हुए अब निराली नौकरी,बाऊजी को चैन से न बैठने दें पोतियाँ माँगतीं…"
6 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी * दादा जी  के संग  तो उमंग  और   खुशियाँ  हैं, किस्से…"
16 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++   देवों की है कर्म भूमि, भारत है धर्म भूमि, शिक्षा अपनी…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service