*1222 1222 1222 122*
ज़माना फिर न जाने क्यों ख़फ़ा होने लगा है।
मुहब्बत भी निभाना अब सज़ा होने लगा है।।
कभी वादे किये जिसने कसम खाकर ख़ुदा की,
वही फिर अब न जाने क्यों ज़ुदा होने लगा है।।
वहाँ पर हाल कैसा है, वही बस जान पाया,
यहाँ पर ज़ख़्म, ज़ख़्मों की दवा होने लगा है।।
समझ बैठा था' तुमको मैं, मुहब्बत का समंदर,
गुमाँ मेरा यहाँ आकर, रफ़ा होने लगा है।।
मुहब्बत का हमेशा ही यही अंज़ाम होता,
शमा से…
ContinueAdded by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on November 17, 2017 at 5:30pm — 14 Comments
Added by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on November 15, 2017 at 3:34pm — 17 Comments
Added by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on November 11, 2017 at 10:50pm — 4 Comments
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