2122 2122 2122 212
पीर को,अनुराग को, पछतावे को, संताप को।
छोड़कर कैसे चलूँ, मुश्किल में,अपने आप को।
मन घिरा है वासना में,और मर्यादा में तन,
अर छुपाना भी कठिन है,उबले जल की भाप को
अब यहाँ से वापसी का रास्ता कोई नहीं,
मुश्किलों से पँहुचे हो,समझाओ अपने आपको।
मेघ ऐसे घिर गए हैं सूर्य धूमिल हो गया,
कामनाओं की नदी पर चाहती है ताप को।
हमको खुद को दर्द देने के बहाने चाहिए,
सौ सबब*…
Added by मनोज अहसास on November 25, 2022 at 5:14pm — 6 Comments
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बेहद ज़रूरी है तू सभी को बिसार कर,
कुछ रोज अपने आप से जी भर के प्यार कर।
उलझन हो तेरी खत्म, मेरा दर्द भी मिटे,
इक बार मेरे दिल पे ज़रा दिल से वार कर।
कुछ फासले अधूरे हैं अब भी हमारे बीच,
इतना सफर इक दूसरे के बिन गुजार कर।
लगता है मैं भी मतलबी सा हो गया हूँ अब
सारी उमर की ख्वाहिशें दिल में ही मार कर।
अहसान भी हो जाएगा और दाम भी अलग
इस दौर में तू सोच समझ कर उधार…
Added by मनोज अहसास on November 2, 2022 at 11:06pm — 4 Comments
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