मुक्त हृदय से आज करूँ मैं, सबका ही सत्कार,
माँ वीणा सद्ज्ञान मुझे दो, जग में करूँ प्रसार ||
माँ-बापू के सद्कर्मों से, आया माँ की गोद।
मिला छत्र छाया में उनके,जीवन का आमोद।।
किये बहत्तर वर्ष पार ये, बिना किसी अवसाद
स्वर्गलोक से मिलता मुझको,उनका आशीर्वाद।।
माँ-बापू से पाया मैंने,जीवन में संस्कार।
मिला सनातन धर्म रूप में, मुझको भारत वर्ष ।
ऋषि-मुनियों का देश यही है,इसका मुझको हर्ष ||
वन-उपवन में रोप सकूँ मै, कुछ सुन्दर से…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 19, 2017 at 7:30am — 14 Comments
गीत - मुखड़ा -
करे तमस को दूर दीप ही, दूर भागता अँधियारा |
दीप निभाये धर्म सदा ही, जलकर करता उजियारा ||
सूर्य किरण उठ भोर झाँकती, नित्य सदा ही खिड़की से
दीन करे विश्राम डरे बिन, सदा मेघ की घुड़की से ।।
दीन-हीन के द्वार जहाँ भी, घिरने लगता अँधियारा
दीप निभाये धर्म सदा ही, जलकर करता उजियारा ।
दीप जलाएं द्वारें जाकर, छँटे दीन का अन्धेरा ।
सबको दे उजियार दीप ही,पर खुद का नही सवेरा ।।
दुख दर्दों की मार झेलता, दीन हीन सा…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 3, 2017 at 2:00pm — 9 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 1, 2017 at 7:51pm — 4 Comments
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