2122 2122 212
जिन्दगी फिर जिन्दगी लगने लगी,
तुम मिले दुनिया नयी लगने लगी,
तुमने सींचा जब वफ़ा और प्यार से,
फिर जमीं दिल की हरी लगने लगी,
रात के कोसे में चमका चाँद जब,
हर घड़ी तेरी कमी लगने लगी,
तुमने देखा जब नज़र भर प्यार से,
रूह अपनी अज़नबी लगने लगी,
कबसे आँखों ने सहर देखी नहीं,
दीद तेरी लाजिमी लगने लगी..... !!अनुश्री!!
मौलिक और अप्रकाशित...
Added by Anita Maurya on November 23, 2016 at 4:30pm — 9 Comments
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