वज़्न -2122 1122 1122 22/112
क्यों इसे आब दिया सोच के दरिया टूटा
जब समुंदर के किनारे कोई तिश्ना टूटा
एक साबित क़दम इंसान यूँ तन्हा टूटा
देख कर उसको न टूटे कोई ऐसा टूटा
वस्ल की जिस पे मुकद्दर ने लिखी थी तहरीर
वक़्त की शाख़ से वो क़ीमती लम्हा टूटा
तेरे बिन ज़ीस्त मेरी तुझ-सी ही मुश्किल गुज़री
हिज्र में मुझ पे भी तो ग़म का हिमाला टूटा
कुछ न टूटा मेरे हालात की आँधी में बस
जिसमें तुम थे वही ख़्वाबों…
Added by Anjuman Mansury 'Arzoo' on November 3, 2021 at 11:22am — 4 Comments
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