(डॉ 0 अनिल मिश्र की अंग्रेजी कविता का हिन्दी रूपांतरण )
सभी जो निरीह हैं वो भ्रूण हों या वयोवृद्ध
सब के सब जीवित शताधिक जला दिये
गोलियों से भूने गए कितने हजार और
कितने सहस्र को निराश्रित बना दिये
और कई पारावार आंसुओं के बार-बार
बाढ़ की तरह नित्य सहसा उफना दिये …
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 26, 2017 at 8:30pm — 3 Comments
जब मैं छोटा था
अक्सर गोद पर सवार होकर
देखता था पिता का मुख
पर तब नही जान पाया
उनका अक्स कहीं छिपा है मुझमे
आज मेरे बेटे
हो चुके है बड़े
अब मैं तलाशता हूँ
उनके चेहरे पर अपना अक्स
पर अब वे अनजान हैं
किन्तु मैं निराश नही होता
मेरे पोते को गोद में लिए
मेरा बेटा तलाश रहा है
उसमे अपना अक्स
वह पोता जो नही जानता
अक्स के मायने
(मौलिक /अप्रकाशित )
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 6, 2017 at 8:58pm — 5 Comments
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