गहरे तल पर ठहरे तम-सा,
ठहरा यह जीवन।
*
मौन तोड़ती एक न आहट,
घूरे बस निर्जन।
कौन रुका इस सूने पथ पर,
जो होगी खनखन।
घर आँगन दालानों की भी,
छाँव नहीं कोई।
दूर-दूर तक वीराना है,
गाँव नहीं कोई।
चले हवाएँ गला काटतीं,
सर्द बहुत अगहन।
*
कहीं चढ़ाई साँस फुलाए
कहीं ढाल फिसलन।
क़दम-क़दम पर भटकाने को,
ख़ड़ी एक उलझन।
लम्बा रस्ता पार न होता,
कितना चल आये।
चार क़दम पर…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on December 25, 2023 at 10:00pm — 4 Comments
1212-- 1122-- 1212-- 22
अंधेरा चार सू फैला दमे-सहर कैसा
परिंदे नीड़ में सहमे हैं, जाने डर कैसा
ख़ुद अपने घर में ही हव्वा की जात सहमी है
उभर के आया है आदम में जानवर कैसा
अधूरे ख़्वाब की सिसकी या फ़िक्र फ़रदा की
हमारे ज़हन में ये शोर रात-भर कैसा
सरों से शर्मो हया का सरक गया आंचल
ये बेटियों पे हुआ मग़रिबी असर कैसा
वो ख़ुद-परस्त था, पीरी में आ के समझा है
जफ़ा के पेड़ पे रिश्तों का अब…
ContinueAdded by दिनेश कुमार on December 3, 2023 at 10:00am — 6 Comments
२१२२/१२१२/२२
*
सूनी आँखों की रोशनी बन जा
ईद आयी सी फिर खुशी बन जा।१।
*
अब भी प्यासा हूँ इक सदी बीती
चैन पाऊँ कि तू नदी बन जा।२।
*
हो गया जग ये शीत का मौसम
धूप सी तू तो गुनगुनी बन जा।३।
*
मौत आकर खड़ी है द्वार अपने
एक पल को ही ज़िन्दगी बन जा।४।
*
मुग्ध कर दू फिर से हर महफिल
आ के अधरों पे शायरी बन जा।५।
*
इस नगर में तो सिर्फ मसलेंगे
फूल जाकर तू जंगली बन जा।६।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 2, 2023 at 7:00am — 3 Comments
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