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Rajesh kumari's Blog – December 2013 Archive (4)

शीत मलयज लिए, बदरी मैं नीर भरी

(विजया घनाक्षरी) ८,८,८,८ पर प्रत्येक चरण में यति अंत में लघु गुरू या नगण

.

१)

शीत मलयज लिए,  बदरी मैं नीर भरी

भरती मैं रूप नए , धरती सी धीर  धरी

यत्त पंख चाक हुए , उड़ने से नहीं डरी

गरल के घूँट पिए , पीकर मैं नहीं  मरी

अगन संताप दिए, प्रत्यक्ष तस्वीर खरी

 बहु किरदार जिए , जगत की पीर  हरी

 परहित भाव लिए, संकल्प से नहीं टरी                                 

पुष्प गुँफ झर गए, डार कभी नहीं झरी  

(२)

जितनी भी बार…

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Added by rajesh kumari on December 19, 2013 at 11:30am — 20 Comments

ढूँढो कहावतें ||दोहे||

कष्ट सहे जितने यहाँ,डाल समय की धूल|

अंत भला सो सब भला ,बीती बातें भूल||

 

विद्या वितरण से खुलें ,क्लिष्ट ज्ञान के राज|

कुशल तीर से ही सधे ,एक पंथ दो काज||

 

कृष्ण काग खादी पहन,भूला अपनी जात|

चार दिवस की चाँदनी,फिर अँधियारी रात||

 

जिसके दर पर रो रहा , वो है भाव विहीन|

फिर क्यों आगे भैंसके,बजा रहा तू बीन|| 

 

सफल करो उपकार में,जीवन के दिन चार|

अंधे की लाठी पकड़ ,सड़क करा दो पार||

  …

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Added by rajesh kumari on December 11, 2013 at 2:30pm — 33 Comments

साथ क्या दोगे मेरा तुम उस ठिकाने तक (ग़ज़ल "राज")

२१२२   २१२२  २१२२  २



जब तलक पँहुचे लहर अपने मुहाने तक

साथ क्या दोगे मेरा तुम उस ठिकाने तक



हीर राँझे की कहानी हो  बसी जिसमे

ले चलोगे क्या मुझे तुम उस जमाने तक



प्यार का सैलाब जाने कब बहा लाया

हम सदा डरते रहे आँसू बहाने तक



थी बहुत मासूम अपने प्यार की मिटटी

दर्द ही बोते रहे अपने बेगाने तक



क्यों करें परवाह हम अब इस ज़माने की

हर कदम पे जो मिला बस दिल दुखाने तक  



छोड़ दी किश्ती भँवर में देख साथी रे

जिंदगी गुजरे फ़कत अब…

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Added by rajesh kumari on December 7, 2013 at 10:00am — 29 Comments

वार्षिक रिपोर्ट (लघु कथा )

"देखो-देखो दमयंती, तुम्हारे शहर के कारनामे!! कभी कोई अच्छी खबर भी आती है, रोज वही चोरी, डकैती ,अपहरण ...और एक तुम हो कि शादी के पचास साल बाद भी मेरा शहर मेरा शहर करती नहीं थकती हो अब देखो जरा चश्मा ठीक करके टीवी में क्या दिखा रहे हैं" कहते हुए गोपाल दास ने चुटकी ली।

"हाँ-हाँ जैसे तुम्हारे शहर की तो बड़ी अच्छी ख़बरें आती हैं रोज, क्या मैं देखती नहीं थोडा सब्र करो थोड़ी देर में ही तुम्हारे शहर के नाम के डंके बजेंगे" दादी के कहते ही सब बच्चे हँस पड़े और उनकी नजरें टीवी स्क्रीन पर गड़ गई। …

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Added by rajesh kumari on December 2, 2013 at 11:46am — 29 Comments

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