बह्र - फाइलातुन मफाइलुन फैलुन
झूठ का इश्तहार खूब चला।
इस तरह कारोबार खूब चला।
कोने कोने में मुल्क के साहब,
आप का ऐतबार खूब चला।
गाँव तो गाँव हैं नगर में भी,
रात भर अंधकार खूब चला।
जो हक़ीक़त से दूर था काफी,
वो भी तो बार बार खूब चला।
नोट में दाग थे बहुत लेकिन,
नोट वो दाग़दार खूब चला।
सबने देखा है किस अदा के साथ,
बेवफा तेरा प्यार खूब चला।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Ram Awadh VIshwakarma on December 26, 2017 at 10:14pm — 20 Comments
बह्र - फाइलातुन मफाइलुन फैलुन
काबिले गौर मेरा काम न था
सर पे मेरे तभी ईनाम न था।
मैं जिसे पढ़ गया धड़ल्ले से,
वाकई वो मेरा कलाम न था।
हाट में मोल भाव क्या करता,
जेब में नोट क्या छदाम न था।
लोग मुँहफट उसे समझते थे,
जबकि वो शख्स बेलगाम न था।
गाँव के गाँव बाढ़ से उजड़े
बाढ़ का कोई इन्तजाम न था।
सर झुकाया नहीं कभी उसने,
वो शहंशाह था गुलाम् न था।
उसका मालिक तो बस खुदा ही था,
घर में जिनके दवा का दाम न था।
मौलिक…
ContinueAdded by Ram Awadh VIshwakarma on December 16, 2017 at 9:04pm — 29 Comments
बह्र - फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
2122 2122 212
वो कबूतर बाज के पंजे में है।
फिर भी कहता है भले चंगे में है।
हम उसे बूढ़ा समझते हैं मगर,
एक चिन्गारी उसी बूढ़े में है।
ये सियासत आज पहुँची है कहाँ,
एक नेता हर गली कूचे में है।
वो मज़ा शायद ही जन्नत में मिले,
जो मज़ा छुट्टी के दिन सोने में है।
इस सियासत में फले फूले बहुत,
कितनी बरकत आपके धंधे में है।
नींद जो आती है खाली खाट पर,
वो कहाँ पर फोम के गद्दे में…
Added by Ram Awadh VIshwakarma on December 7, 2017 at 10:50pm — 13 Comments
Added by Ram Awadh VIshwakarma on December 2, 2017 at 6:48pm — 30 Comments
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