गज़ल
फेलुन x 4 (16 मात्रा)
नफरत की आग लगाना है
मजहब तो एक बहाना है
खूब लाभ का है ये धंधा
बस इक अफवाह उड़ाना है
हर तरफ खून की है बातें
लाशों का ही नजराना है
धर्म नाम के है दीवाने
जुनून बस खून बहाना है
जला रहे जो अपना ही घर
दर्पण उनको दिखलाना है
शुभ आस करो कुछ ‘‘मेठानी’’
अब नई सुबह को लाना है।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
- दयाराम मेठानी
Added by Dayaram Methani on December 18, 2018 at 1:51pm — 5 Comments
2122 2122 2122 212
आइना बन सच सदा सबको दिखाता कौन है
है सभी में दाग दुनिया को बताता कौन है
काम मजहब का हुआ दंगे कराना आजकल
आग दंगों की वतन में अब बुझाता कौन है
आंधियाँ तूफान लाते है तबाही हर जगह
दीप अंधेरी डगर में अब जलाता कौन है
देश में शोषण किसानों का हुआ अब तक बहुत
दाल रोटी दो समय उनको दिलाता कौन है
बात मेठानी सुनो सबकी सदा तुम ध्यान से
भय हमारी जिन्दगी से अब भगाता कौन है
( मौलिक…
ContinueAdded by Dayaram Methani on December 12, 2018 at 10:00pm — 8 Comments
2122 2122 2122 2122
हैं जो अफसानें पुराने, सब भुलाना चाहता हूँ
इस धरा को स्वर्ग-जैसा ही बनाना चाहता हूँ
देश में अपने सदा सद्भाव फैलाएँ सभी जन
अब सभी दीवार नफरत की गिराना चाहता हूँ
दिल सभी का हो सदा निर्मल नदी-जैसा धरा पर
अब परस्पर प्यार करना ही सिखाना चाहता हूँ
धन कमाऊँगा मगर धोखा न सीखूँगा किसी से
हर कदम अपना पसीना ही बहाना चाहता हूँ
है ये तेरा, है ये मेरा की लड़ाई खत्म हो अब
और खुशियाँ संग सबके…
Added by Dayaram Methani on December 1, 2018 at 12:30pm — 6 Comments
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