'साहेब हमरी किडनी ख़राब है I इलाजु चलि रहा है I उनकी जगह हमरे लरिकऊ का नौकरी तो दिहेव मालिक पर अकेलु लरिका नोडा (नॉएडा) चला जाई तो हमार देखभाल कौन करी I इसै हियें लखनऊ माँ जगह दै देव साहेब , नहीं तो ई बुढ़िया मरि जाई I
'हाँ साहेब !" बेटे ने भी हाथ जोड़कर मिन्नत की I
' ठीक है, तुम लोग बाहर जाओ I मै कुछ करता हूँ I"
माँ-बेटे बाहर चले गए I 'थोड़ी देर में माँ को बाहर छोड़ कर बेटा फिर अन्दर आया I
'येस?' - साहेब ने प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा I
'सर, मेरी माँ…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 10, 2013 at 1:00pm — 32 Comments
हां ठीक था, अर्जुन !
तुम अपने युयुत्सु परिजनों पर
शस्त्र न उठाते i
उन्हें अपने गांडीव की प्रत्यंचा
की सीध में न लाते i
तुम्हारा यह निर्णय ठीक होता या न होता
हां सभी मर जाते तो शवो पर कौन रोता ?
किन्तु यह क्या---
तुम्हारे शरीरांग कांपे क्यों ?
वदन सूखा क्यों, दशन चांपे क्यों ?
वेपथु क्यों हुआ, क्यों हुआ लोमहर्षण
अभी तो शंख घोष था, नही था अस्त्र वर्षण
तब भी तुम्हारे हाथ से गांडीव खिसका
तुम्हारी…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 5, 2013 at 5:24pm — 33 Comments
नदी पर काठ का एक छोटा किन्तु मजबूत सेतु बना था I उसके नीचे माधवी झाड़ियो से रंग-बिरंगे फूल चुन रही थी I अचानक उसने विटप की ओर देखा और कहा - ' हमारे तुम्हारे गाँव के बीच यही एक नदी है जिस पर यह सेतु है I इसका मतलब समझे ?'
'नहीं----' विटप ने हंसकर कहा I
'बुद्धू ---- दो दिलो को ऐसा ही सेतु आपस में मिलाता है I ' -माधवी ने फूलो का ढेर लगाते हुए कहा ' और----- वह सेतु है विवाह i ' माधवी ने थोडा रूककर फिर कहा -' विटप, वहा सेतु पर…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 9:30pm — 18 Comments
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