प्रिय तुझसे मैं प्यार करूँ ...
स्मृति घरौंदों में तेरा मैं
कालजयी श्रृंगार करूँ
अभिलाष यही है अंतिम पल तक
प्रिय तुझसे मैं प्यार करूँ
श्वास सिंधु के अंतिम छोर तक
देना मेरा साथ प्रिय
उर -अरमानों के क्रंदन का
कैसे मैं परिहार करूँ
अभिलाष यही है अंतिम पल तक
प्रिय तुझसे मैं प्यार करूँ
मेरी पावन अनुरक्ति का
करना मत तिरस्कार प्रिय
दृग शरों के घावों का मैं
कैसे क्या उपचार करूँ
अभिलाष यही…
Added by Sushil Sarna on December 27, 2019 at 6:30pm — 6 Comments
३ क्षणिकाएँ ....
बाहर
प्रचंड तूफ़ान
संघर्ष का
अंतस में
शब्दहीन
गहरा सागर
स्पर्श का
अनुबंध
खंडित हुए
बाहुबंध
मंडित हुए
मौन सभी
दंडित हुए
प्रश्न
विकराल थे
उत्तरों के जाल थे
गोताखोर
विलग न कर सका
आभास को
यथार्थ से
अंत तक
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 23, 2019 at 7:30pm — 6 Comments
अहसास ...
देर तक
देते रहे
दस्तक
दिल के दरवाज़े पर
वो अहसास
जो तुम
अपनी आँखों से
छोड़ गए थे
मेरी आँखों में
जाते वक्त
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 19, 2019 at 7:30pm — 4 Comments
Added by Sushil Sarna on December 9, 2019 at 6:36pm — 6 Comments
सागर ....
नहीं नहीं
सागर
मुझे तुम्हारे कह्र से
डर नहीं लगता
तुम्हारी विध्वंसक
लहरों से भी
डर नहीं लगता
तुम्हारे रौद्र रूप से भी
डर नहीं लगता
मगर
ऐ सागर
अगर तुम
वहशियों से नोचे गए
मासूमों के
क्रंदन सुनोगे
तो डर जाओगे
किसी खामोश आँख में
ठहरा समंदर
देखोगे
तो डर जाओगे
खिलने से पहले
कुचली कलियों के
शव देखोगे
तो डर जाओगे
सदियों से तुमने
अपने गर्भ में
न…
Added by Sushil Sarna on December 9, 2019 at 1:33pm — 2 Comments
Added by Sushil Sarna on December 7, 2019 at 6:00pm — 2 Comments
दो मुक्तक (मात्रा आधारित )......
शराबों में शबाबों में ख़्वाबों में किताबों में।
ज़िंदगी उलझी रही सवालों और जवाबों में।
.कैद हूँ मुद्दत से मैं आरज़ूओं के शहर में -
उम्र भर ज़िन्दा रहे वो दर्द के सैलाबों में।
.........................................................
पूछो ज़रा चाँद से .क्यों रात भर हम सोये नहीं।
यूँ बहुत सताया याद ने .फिर भी हम रोये नहीं।
सबा भी ग़मगीन हो गयी तन्हा हमको देख के-
कह न सके दर्द अश्क से ज़ख्म हम ने धोये…
Added by Sushil Sarna on December 6, 2019 at 5:32pm — 6 Comments
कुछ क्षणिकाएँ : ....
बढ़ जाती है
दिल की जलन
जब ढलने लगती है
साँझ
मानो करते हों नृत्य
यादों के अंगार
सपनों की झील पर
सपनों के लिए
...................
आदि बिंदु
अंत बिंदु
मध्य रेखा
बिंदु से बिंदु की
जीवन सीमा
.......................
तृषा को
दे गई
दर्द
तृप्ति को
करते रहे प्रतीक्षा
पुनर्मिलन का
अधराँगन में
विरही अधर
भोर होने…
ContinueAdded by Sushil Sarna on December 3, 2019 at 8:07pm — 4 Comments
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