एक बात तो है, जो ‘आम’ होता है, वही ‘खास’ होता है। अब देख लीजिए ‘आम’ को, वो फलों का ‘राजा’ है। नाम तो ‘आम’ है, मगर पहचान खास में होती है। हर ‘आम’ में ‘खास’ के गुण भी छिपे होते हैं। जो नाम वाला बनता है, एक समय उन जैसों का कोई नामलेवा नहीं होता। जैसे ही कोई उपलब्धि हासिल हुई नहीं कि ‘आम’ से बन जाते हैं, ‘खास’।
देख लीजिए, हमारे क्रिकेट के महारथी, कुल कैप्टन को। जब वे क्रिकेट की दहलीज पर कदम रखे तो उन्हें कोई नहीं जानता था, उनकी बस इतनी ही पहचान थी, जैसे वे आजकल बोले जा रहे हैं, ‘एैरे-गैरे’…
Added by rajkumar sahu on December 20, 2012 at 2:53pm — 1 Comment
निश्चित ही पानी अनमोल है। यह बात पहले मुझे कागजों में ही अच्छी लगती थी, अब समझ भी आ रहा है। गर्मी में पानी, सोने से भी महंगा हो गया है, बाजार में दुकान पर जाने से ‘सोना’ मिल भी जाएगा, मगर ‘पानी’ कहीं गुम हो गया है। मेरे लिए तो फिलहाल सोने से भी ज्यादा कीमत, पानी की है, क्योंकि पानी को ढूंढने निकलता हूं तो दिन खप जाता है और वह गाना याद आता है...पानी रे पानी...तेरा रंग कैसा...। पानी के बिना वैसे तो जिंदगी ही अधूरी है और ऐसा लग भी रहा है, क्योंकि पानी ने जिंदगी से दूरी जो बना ली है। सुबह से…
ContinueAdded by rajkumar sahu on June 3, 2012 at 1:38pm — 8 Comments
Added by rajkumar sahu on December 6, 2011 at 12:17am — 2 Comments
केन्द्र में सत्ता पर बैठी कांग्रेसनीत यूपीए सरकार चाहे जितनी अपनी पीठ थपथपा ले, लेकिन महंगाई व भ्रष्टाचार के कारण सरकार जनता की अदालत में पूरी तरह कटघरे में खड़ी है। ठीक है, अभी लोकसभा चुनाव को ढाई से तीन साल शेष है, किन्तु सरकार को जनता विरोधी कार्य करने से बाज आना चाहिए। महंगाई ने तो पहले ही लोगों की कमर तोड़कर रख दी थी। फिर भी सरकार का रवैया नकारात्मक ही रहा और महंगाई की मार कम हो ही नहीं रही है। सरकार में बैठे सत्ता के मद में चूर कारिंदों के ऐसे बयान आते रहे, जिससे महंगाई नई उंचाईयां छूती…
ContinueAdded by rajkumar sahu on December 5, 2011 at 1:31am — No Comments
Added by rajkumar sahu on November 29, 2011 at 10:29pm — 1 Comment
Added by rajkumar sahu on November 24, 2011 at 11:39pm — No Comments
छत्तीसगढ़ के 11 बरस होने पर राज्य सरकार जहां प्रदेश के सभी जिलों में राज्योत्सव जैसे आयोजन कर खुशियां मनाने में जुटी हैं, वहीं एक तबका ऐसा भी है, जो अपने सीने में अपनों की मौत का दर्द लिए बैठा है। समय गुजरने के बाद भी उनकी टीस कम होने का नाम नहीं ले रही है। राज्य सरकार की बेरूखी ने उनकी तकलीफों को और बढ़ा दी है।
साल भर पहले 5 अगस्त 2010 को जम्मू के ‘लेह’ में बादल फटने से जिले के दर्जनों गांवों से रोजी-रोटी की तलाश में गए मजदूरों की बड़ी संख्या में मौत हो गई और सैकड़ों लोग घायल हो गए, जिसका…
Added by rajkumar sahu on November 5, 2011 at 12:02pm — No Comments
हम अधिकतर कहते-सुनते रहते हैं कि चिंता व चिता में महज एक बिंदु का फर्क है। देश की करोड़ों गरीब जनता, महंगाई की आग में जल रही है और उन्हें चिंता खाई जा रही है। वे इसी चिंता में दुबले हुए जा रहे हैं। महंगाई के कारण ही कुपोषण ने भी उन्हें घेर लिया है। जैसे वे गरीबी से जिंदगी की लड़ाई लड़ रहे हैं, वैसे ही महंगाई के कारण गरीब, हालात से लड़ रहे हैं। महंगाई की चिंता अब उनकी ‘चिता’ बनने लगी है। वैसे मरने के बाद ही हर किसी को चिता में लेटना पड़ता है और जीवन से रूखसत होना पड़ता है। महंगाई ने इस बात को धता…
ContinueAdded by rajkumar sahu on November 4, 2011 at 11:12pm — No Comments
मुझे पता है कि देश में संभवतः कोई विषय ऐसा नहीं होगा, जिस पर अब तक पीएचडी ( डॉक्टर ऑफ फिलास्फी ) नहीं हुई होगी। कई विषय तो ऐसे हैं, जिसे रगडे पर रगड़े जा रहे हैं। कुछ समाज के काम आ रहे हैं तो कुछ कचरे की टोकरी की शोभा बढ़ा रहे हैं। ये अलग बात है कि कुछ विषय ही इतने भाग्यशाली हैं कि उसे जो भी अपनाता है, वह बुलंदी छू लेता है। पीएचडी के लिए मुझे लगता है कि आपमें विषय चयन की काबिलियत होनी चाहिए, उसके बाद फिक्र करने की जरूरत नहीं होती। विषय तय होने के बाद सामग्रियां जहां-तहां से मिल ही जाती हैं,…
ContinueAdded by rajkumar sahu on November 2, 2011 at 11:00am — 1 Comment
समाजसेवी अन्ना हजारे ने पिछले दिनों तेरह दिनों तक अनशन करके ‘अन्नागिरी’ को हवा दे दी है। देश में अब तक नेतागिरी, चमचागिरी, बाबागिरी की हवा चल रही थी। अन्नागिरी के हावी होते ही अभी भ्रष्टाचारियों के मूड खराब हो गए हैं, क्योंकि जहां-तहां अन्नागिरी ही छाई हुई है। हर जुबान से बस अन्नागिरी की लार लपक रही है। किसी को अपनी बात मनवानी है तो वह, बस अन्नागिरी करने लग जा रहा है। वैसे हमारे समाजसेवी अन्ना जी ‘अनशन’ के लिए माहिर माने जाते हैं, लेकिन उनके पीछे जो लोग ‘अन्नागिरी’ का सहारा लेने लगे हैं,…
ContinueAdded by rajkumar sahu on October 18, 2011 at 1:17am — No Comments
एक बात सब जानते हैं कि जब हम बीमार होते हैं, तब इलाज के लिए अस्पताल पहुंचते हैं और डॉक्टर नब्ज समझकर इलाज करते हैं। अस्पताल जाने के बाद बीमारी छोटी हो या बड़ी, गरीबों के लिए कुछ ही दिन अस्पताल ठिकाना बन पाता है। गरीबों के लिए ‘गरीबी’ अभिशाप अभी से नहीं है, जमाने से ऐसा ही क्रूर मजाक चल रहा है। हर हालात में गरीब ही बेकार का पुतला होता है, जिसकी ओर देखने की किसी को फुरसत तक नहीं होती, वहीं जब कोई मालदार, अस्पताल की दहलीज पर पहुंचता है, उसके बाद गरीबों को हेय की दृष्टि से देखने वाले भी, उनकी…
ContinueAdded by rajkumar sahu on October 16, 2011 at 4:49pm — No Comments
पहले मैं अपने पुराने दिनों की याद ताजा कर लेता हूं। जब हम स्कूल में पढ़ा करते थे, उस दौरान शिक्षक हमें यही कहते थे कि प्रधानमंत्री बनोगे तो क्या करोगे ? इस समय मन में बड़े-बड़े सपने होते थे। उस सपने को पाले बैठे, अपन आज बचपन से जवानी की दहलीज में पहुंच गए हैं। हम जैसे देश में न जाने कितने, यह सपना देखते हैं, लेकिन खुली आंख से सपना कहां पूरा होता है ? ये अलग बात है कि कई बार ऐसा होता है, जब व्यक्ति सपना तक ही नहीं देखा रहता और प्रधानमंत्री बन जाता है। बिन मांगे मुराद मिल जाती है और जीवन की…
ContinueAdded by rajkumar sahu on October 14, 2011 at 12:11am — No Comments
हर साल न जाने कितनी जगहों में रावण का दहन किया जाता है और खुशियां मनाते हुए पटाखे फोड़े जाते हैं, मगर रावण के दर्द को समझने की कोई कोशिश नहीं करता। अभी कुछ दिनों पहले जब दशहरा मनाते हुए रावण को दंभी मानकर जलाया गया, उसके बाद रावण का दर्द पत्थर जैसे सीने को फाड़कर बाहर आ गया। रावण कहने लगा, उसकी एक गलती की सजा कब से भुगतनी पड़ रही है। गलती अब प्रथा बन गई है और पुतले जलाकर मजे लिए जा रहे हैं। सतयुग में की गई गलती से छुटकारा, कलयुग में भी नहीं मिल रहा है।
रावण ने अपना संस्मरण याद करते हुए कहा…
Added by rajkumar sahu on October 10, 2011 at 1:51am — 2 Comments
Added by rajkumar sahu on October 8, 2011 at 11:20pm — No Comments
Added by rajkumar sahu on October 1, 2011 at 11:39pm — No Comments
Added by rajkumar sahu on September 29, 2011 at 11:54pm — No Comments
Added by rajkumar sahu on September 27, 2011 at 3:15pm — No Comments
Added by rajkumar sahu on September 25, 2011 at 1:13am — 1 Comment
Added by rajkumar sahu on September 19, 2011 at 9:00pm — No Comments
हर बरस यह बात सामने आती है कि प्रतिमाओं के विसर्जन तथा श्रद्धा में लोग कहीं न कहीं, अंध भक्ति में दिखाई देते हैं और अन्य लोगों को होने वाली दिक्कतों तथा प्रकृति को होने वाले नुकसान से उन्हें कोई लेना-देना नहीं होता। अभी कुछ दिनों पहले जब गणेश प्रतिमाएं विराजित हुईं, उसके बाद कान फोड़ू लाउडस्पीकरों ने लोगों को परेशान किया। प्रशासन की सख्त हिदायत के बावजूद फूहड़ गाने भी बजते रहे। श्रद्धा-भक्ति के नाम पर जिस तरह तेज आवाज में गानें दिन भर बजते रहे या कहें कि दिमाग के लिए सरदर्द बने ये भोंपू रात…
ContinueAdded by rajkumar sahu on September 17, 2011 at 9:35pm — No Comments
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