For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog (808)

दोहा पंचक. . . . .दम्भ

दोहा पंचक. . . . . दम्भ

हर दम्भी के दम्भ का, सूरज होता अस्त ।

रावण जैसे सूरमा, होते देखे पस्त । ।

दम्भी को मिलता नहीं, जीवन में सम्मान ।

दम्भ कुचलता जिंदगी, की असली पहचान ।।

हर दम्भी को दम्भ की, लगे सुहानी नाद ।

इसके मद में चूर वो, बन जाता सैयाद ।।

दम्भ शूल व्यक्तित्व का, इसका नहीं निदान ।

आडम्बर के खोल में, जीता वो इंसान ।।

दम्भी करता स्वयं का, सदा स्वयं अभिषेक ।

मैं- मैं को जीता सदा, अपना हरे…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 2, 2024 at 6:56pm — No Comments

दोहा सप्तक ..रिश्ते

दोहा सप्तक. . . . रिश्ते

आपस के माधुर्य को, हरते कड़वे बोल ।

मिटें जरा सी चूक से, रिश्ते सब  अनमोल ।।

शंका से रिश्ते सभी, हो जाते बीमार ।

संबंधों में बेवजह,  आती विकट दरार ।।

रिश्ता रेशम सूत सा, चटक चोट से जाय ।

कालान्तर में वेदना,  इसकी भुला न पाय ।।

बंधन रिश्तों के सभी,  आज हुए कमजोर ।

ओझल मिलने के हुए, आँखों से अब छोर ।।

रिश्तों में अब स्वार्थ का, जलता रहता दीप ।

दुर्गंधित से नीर में, खाली मुक्ता से सीप ।।

संबंधों को…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 8, 2024 at 1:42pm — 4 Comments

कुंडलिया. . .

कुंडलिया. . . 

झोला  लेकर  हाथ  में, चले  अनोखे  लाल ।
भाव  देख  बाजार  के, बिगड़े  उनके  हाल ।
बिगड़े  उनके हाल ,करें क्या  आखिर  भाई ।
महंगाई  का    काल , खा   गया   पाई- पाई ।
कठिन दौर से  त्रस्त , अनोखे दर- दर डोला ।
लौटा   लेकर  साथ , अंत  में  खाली  झोला ।

सुशील सरना /7-5-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on May 7, 2024 at 8:28pm — 4 Comments

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूर

वक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ ।

गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ ।।

सभी दिवस मजदूर के, जाते एक समान ।

दिन बीते निर्माण में, शाम क्षुधा का गान ।।

याद किया मजदूर के, स्वेद बिंदु को आज ।

उसकी ही पहचान है, , विश्व धरोहर ताज ।।

स्वेद बूँद मजदूर की, श्रम का है अभिलेख ।

हाथों में उसके नहीं , सुख की कोई रेख ।।

रोज भोर मजदूर की, होती एक समान ।

उदर क्षुधा से नित्य ही, लड़ती उसकी जान…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 1, 2024 at 4:30pm — 4 Comments

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलि

गंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर ।

कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे डोर ।।

अलिकुल की गुंजार से, सुमन हुए भयभीत ।

गंध चुराने आ गए, छलिया बन कर मीत ।।

आशिक भौंरे दिलजले, कलियों के शौकीन ।

क्षुधा मिटा कर दे गए, घाव  उन्हें संगीन ।।

पुष्प मधुप का सृष्टि में, रिश्ता बड़ा अजीब ।

दोनों के इस प्रेम को, लाती गंध करीब ।।

पुष्प दलों को भा गई, अलिकुल की गुंजार ।

मौन समर्पण कर…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 27, 2024 at 1:51pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .

( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )

टूटे प्यालों में नहीं, रुकती कभी शराब ।

कब जुड़ते है भोर में, पलक सलोने ख्वाब ।।

मयखाने सा नूर है, बदन अब्र की बर्क ।

दो जिस्मों की साँस का, मिटा वस्ल में फर्क ।।

प्याले छलके बज्म में, मचला ख्वाबी नूर ।

निभा रहे थे लब वहीं, बोसों का दस्तूर ।।

महफिल में मदहोशियाँ, इश्क नशे में चूर ।

परवाने को देखकर , हुस्न हुआ मगरूर…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 24, 2024 at 5:37pm — 2 Comments

दोहा दशम. . . . रोटी

दोहा दशम . . . . . . रोटी

कैसे- कैसे रोटियाँ, दिखलाती हैं  रंग ।

रोटी से बढ़कर नहीं,इस जीवन में जंग ।।

रोटी के संघर्ष में, जीवन जाता बीत ।

अर्थ चक्र में गूँजता , रोटी का संगीत ।।

रोटी का संसार में, कोई नहीं विकल्प ।

बिन रोटी के बीतता ,हर पल जैसे कल्प ।।

रोटी से बढ़कर नहीं, दुनिया में कुछ यार ।

इसके  आगे दौलतें , इस जग की बेकार ।।

दो रोटी ने दोस्तो , क्या - क्या दिये अजाब ।

मुफलिस की तकदीर का, रोटी…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 20, 2024 at 2:11pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . .प्रेम

दोहा पंचक. . . . प्रेम

अधरों पर विचरित करे, प्रथम प्रणय आनन्द ।

चिर जीवित अभिसार का, रहे मिलन मकरंद ।।

खूब हुआ अभिसार में, देह- देह का द्वन्द्व ।

जाने कितने प्रेम के, लिख डाले फिर छन्द ।।

मदन भाव झंकृत हुए, बढ़े प्रणय के वेग ।

अधरों के बैराग को, मिला अधर का नेग ।।

धीरे-धीरे रैन का , बढ़ने लगा प्रभाव ।

मौन चरम अभिसार के, मन में जले अलाव ।।

नैन समझते नैन के, अनबोले स्वीकार ।

स्पर्शों के दौर में, दम…

Continue

Added by Sushil Sarna on March 23, 2024 at 2:45pm — 4 Comments

कुंडलिया .... गौरैया

कुंडलिया - गौरैया

गौरैया  को   देखने, हम  आ  बैठे  द्वार ।
गौरैया के  झुंड  का, सुंदर   सा   संसार ।
सुंदर लगे संसार , धरा पर  दाना  खाती ।
लेकर तिनके साथ, घोंसला खूब बनाती ।
कह ' सरना ' कविराय, धूप में ढूँढे छैया ।
उसको  उड़ते  देख, कहें  री आ  गौरैया ।

सुशील सरना / 21-3-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on March 21, 2024 at 4:00pm — 4 Comments

दोहा पंचक. . .

दोहा पंचक. . . . .

महफिल में तनहा जले, खूब हुए बदनाम ।

गैरों को देती रही, साकी भर -भर जाम ।।

गज़ब हया की सुर्खियाँ, अलसाए अन्दाज़ ।

सुर्खी सारे कह गई, बीती शब के राज़ ।।

साथी है अब वेदना, विरही मन की यार ।

विस्मृत होता ही नहीं, वो अद्भुत संसार ।।

उसे भुलाने के सभी, निष्फल हुए प्रयास ।

मदन भाव उन्नत हुए, मन में मचली प्यास ।।

कोई पागल हो गया, किसी ने खोये होश ।

आशिक को घायल करे, मदमाती आगोश…

Continue

Added by Sushil Sarna on March 18, 2024 at 4:03pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक. . . .

कर्मों के परिणाम से, गाफिल क्यों  इंसान ।

ऐसे जीता जिंदगी, जैसे हो भगवान ।।

भौतिक युग की सम्पदा, कब देती आराम ।

अर्थ पाश में जिंदगी , भटके चारों याम ।।

नश्वर तन को मानता, अजर -अमर परिधान ।

बस में समझे साँस को, यह दम्भी  इंसान ।।

साथ चली किसके भला, अर्थ दम्भ की शान।

खाक चिता पर हो गई,  इंसानी पहचान ।।

कहे स्वयंभू स्वयं को , माटी का इंसान ।

मुट्ठी भर अवशेष बस,मैं -मैं की पहचान ।।

सुशील सरना /…

Continue

Added by Sushil Sarna on March 10, 2024 at 3:13pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . .नारी

दोहा पंचक. . . नारी

नर नारी से श्रेष्ठ है, हुई पुरानी बात ।

जीवन के हर क्षेत्र में, नारी देती मात ।।

नर नारी के बीच अब, नहीं जीत अरु हार ।

बनी शक्ति पर्याय अब, वर्तमान की नार ।।

कंधे से कंधा मिला, दे जीवन को अर्थ ।

नारी अब हर क्षेत्र में, लगने लगी समर्थ ।।

अनुपम कृति है ईश  की, इस जग का आधार ।

लगे  अधूरा सृष्टि का , नारी बिन शृंगार ।।

आसमान छूने चली, कल की अबला नार ।

देख…

Continue

Added by Sushil Sarna on March 9, 2024 at 5:35pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . .

बातें करते प्यार की, करें न सच्चा प्यार ।

इस स्वार्थी संसार में, सब मतलब के यार ।।

सच्चे- झूठे सब यहाँ, कैसे हो पहचान ।

कई मुखौटों में छिपा,कलियुग का इंसान ।।

सच्चा मन का मीत वो, सच्ची जिसकी प्रीति ।

वो क्या जाने प्रीति जो, सिर्फ निभाये रीत ।।

छलते हैं क्यों आजकल, व्याकुल मन को मीत ।

सिर्फ देह को भोगना, समझें अपनी जीत ।।

कैसे यह अनुबंध हैं, कैसे यह संबंध ।

देह क्षुधा के दौर में,…

Continue

Added by Sushil Sarna on March 5, 2024 at 3:45pm — 2 Comments

दोहा सप्तक. . . जीवन तो अनमोल है

दोहा सप्तक -  जीवन तो अनमोल है

जीवन तो अनमोल है,  इसके लाखों रंग ।

पहचाना जिसने इसे, उसने जीती जंग ।1।

जीवन तो अनमोल है, मिले न यह दो बार ।

कब आया यह लौट कर, जी भर जी लो यार ।2।

जीवन तो अनमोल है, बीत न जाए व्यर्थ ।

अच्छे कर्मों से इसे, देना शाश्वत  अर्थ ।3।

जीवन तो अनमोल है, इसके  अनगिन रूप ।

इसके आँचल में पले, निर्धन हो या भूप  ।4।

जीवन तो अनमोल है, रखो इसे संभाल ।

बहुत कठिन है जानना , इसका अर्थ…

Continue

Added by Sushil Sarna on March 3, 2024 at 2:36pm — No Comments

दोहा त्रयी .....

दोहा त्रयी. . . . .

जीवन में ऐश्वर्य के, साधन हुए अनेक ।
अर्थ दौड़ में खो गया, मानव धर्म विवेक ।।

चले न कोई साथ जब, साथ निभाता नाथ ।
संचित कितना भी करो, खाली रहते हाथ ।।

गौण हुईं अनुभूतियाँ, क्षीण हुए सम्बंध ।
नाम मात्र की रह गई, रिश्तों की बस गंध ।।

सुशील सरना / 23-2-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on February 22, 2024 at 1:31pm — 2 Comments

दोहा त्रयी. . . . . .

दोहा त्रयी. . . .

मन के मधुबन से हुई , लुप्त नेह की गंध ।
काई देती स्वार्थ की, रिश्तों में दुर्गन्ध ।।

बदल गया परिवार में, रिश्तों का अब रूप ।
तीखी लगती स्वार्थ की,  अब आँगन में धूप ।।

अर्थ रार में खो गए, रिश्ते सारे खास ।
धन वैभव ने भर दिया, जीवन मैं संत्रास ।।

सुशील सरना / 11-2-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on February 11, 2024 at 2:06pm — 2 Comments

दोहा सप्तक. . . .

दोहा सप्तक. . . . 

बन कर ख़याल रह गया, जीवन का हर मोड़ ।

अपने सब कब चल दिये, तनहा हमको छोड़ ।1।

बदला जीवन आज का, बदली जीवन सोच ।

एक पेट भरपेट है, क्षुधित कहीं पर चोंच ।2।

पर धन की है लालसा, कुत्सित घृणित विचार ।

जीवन को मत दीजिए, दागदार  उपहार ।3।

रह -रह कर मन मीत का,आता मधुर ख़याल ।

दिल की यह बेचैनियाँ, बदलें जीवन चाल ।4।

वैसा होता आचरण, जैसी होती सोच ।

रोटी तब अच्छी बने,जब आटे में…

Continue

Added by Sushil Sarna on February 6, 2024 at 2:19pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . नैन

दोहा पंचक. . . नैन

नैन द्वन्द्व में नैन ही , गए नैन से हार ।

नैनों को अच्छी लगे, नैनों से  तकरार ।।

नैनों से तकरार का, लगे  अजब आनन्द ।

हृदय पृष्ठ पर प्रीत के, अंकित होते छन्द ।।

नैनों के संवाद की, अद्भुत होती नाद ।

नैन सुनें बस नैन के, अनबोले संवाद ।।

नैनों से होती सदा, मौन सुरों में बात ।

नैनों की मनुहार में, बीते सारी रात ।।

नैनों के संसार की, किसने पायी थाह ।

नैन तीर पर हो सदा, लक्षित…

Continue

Added by Sushil Sarna on February 3, 2024 at 1:53pm — 2 Comments

दोहा त्रयी. . . . सन्तान

दोहा त्रयी. . . सन्तान

सन्तानों के  बन गए  ,अपने-  अपने नीड़ ।
वृद्ध हुए माँ बाप  अब, तन्हा बाँटें पीड़ ।।

अर्थ लोभ हावी हुए, भौतिक सुख विकराल ।
क्षीण दृष्टि माँ बाप की, ढूँढे अपना लाल ।।

सन्तानों की आहटें , देखें अब माँ बाप ।
वृद्ध काल में बन गई, ममता जैसे श्राप ।।

सुशील सरना / 19-1-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on January 19, 2024 at 1:00pm — 4 Comments

दोहा त्रयी. . . शंका

दोहा त्रयी. . . शंका

शंका व्यर्थ न कीजिए, यह दुख का आधार ।
मन का छीने चैन यह , शूलों का संसार ।।

शंका का संसार में, कोई नहीं निदान ।
इसके चलते हों सदा, रिश्ते लहू लुहान ।।

शंका बैरी चैन की, नफरत का यह द्वार ।
प्यार भरे संसार में, यह भरती  अंगार ।।

सुशील सरना / 17-1-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on January 17, 2024 at 2:59pm — 2 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"भाई लक्षमण जी एक अरसे बाद आपकी रचना पर आना हुआ और मन मुग्ध हो गया पर्यावरण के क्षरण पर…"
3 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"अभिवादन सादर।"
33 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रदत्त विषय को सार्थक करतीब हुत बढ़िया दोहावली की प्रस्तुति। इस…"
36 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आपने पर्यावरण के विभिन्न आयामों को सम्मिलित करते हुए एक बढ़िया प्रस्तुति दी…"
39 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रदत्त विषय पर बढ़िया कुंडलिया छंद हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
43 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी, प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। इस प्रस्तुति…"
46 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"धुंध गहरी और खाई दिख रही है  अब तरक्की में तबाही दिख रही है। बोझ से घायल हुआ सीना जमीं…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
16 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
16 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
16 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service