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Sushil Sarna's Blog (876)

पितृ दिवस पर चंद दोहे :

पितृ दिवस पर चंद दोहे :

छाया बन कर धूप में,आता जिसका हाथ।

कठिन समय में वो पिता,सदा निभाता साथ।।1

बरगद है तो छाँव है, वरना तपती धूप।

पिताहीन जीवन लगे, जैसे गहरा कूप ।।2

घोड़ा बन कर पुत्र का, खेलें उसके साथ।

मेरे पापा ईश से, बढ़कर मेरे नाथ।।3

प्राणों से प्यारी लगे, पापा को संतान।

जीवन के हर मर्म का, दे वो सच्चा ज्ञान।।4

पिता सारथी पुत्र के, बनते सदा सहाय।

हर मुश्किल का वो करें , तुरंत उचित…

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Added by Sushil Sarna on June 21, 2020 at 10:31pm — 3 Comments

ऊँचाई ....

ऊँचाई ....
 
कितना
बौना हो जाता है
इंसान
अपने ही में…
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Added by Sushil Sarna on June 20, 2020 at 9:00pm — 2 Comments

प्रेम पर कुछ क्षणिकाएँ :

प्रेम पर कुछ क्षणिकाएँ :

प्रेम

ह्रदय में इस तरह

ज्यूँ नीर में

नीर तरंग

................

प्रेम

अवचेतन मन की

पराकाष्ठा

......................

प्रेम

अर्पण

समर्पण

..................

प्रेम

अबोले भावों का

मूक प्रदर्शन

...................

प्रेम

एक पावन

प्रतिकर्ष

मिलन का

.........................

प्रेम

एक…

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Added by Sushil Sarna on June 18, 2020 at 9:21pm — 4 Comments

यथार्थ  दोहे :

यथार्थ  दोहे :

देह जली शमशान में, सारे रिश्ते तोड़।

राहें तकती रह गईं,अंत चला सब छोड़।।1

अंत मिला बेअंत में, हुई जीव की भोर।

भौतिक तृष्णा मिट गई,मिटे व्यर्थ के शोर।।2

व्यर्थ देह से नेह है, व्यर्थ देह अभिमान।

तोड़ देह प्राचीर को,उड़ जाएंगे प्रान।।3

थोड़ी- थोड़ी रैन है, थोड़ी-थोड़ी भोर।

थोड़ी सी है ज़िंदगी, थोड़ा सा है शोर ।।4

कितना टाला आ गई, देखो आखिर मौत।

ज़ालिम होती है बड़ी, साँसों की ये सौत…

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Added by Sushil Sarna on June 16, 2020 at 9:30pm — 4 Comments

थोड़ा सा आसमान ....

थोड़ा सा आसमान ....

चुरा लिया

सपनों की चादर से

थोड़ा सा

आसमान

पहना दिया

उम्र को

स्वप्निल परिधान

लक्ष्य रहे चिंतित

राह थी अनजान

प्रश्नों के जंगल में

उलझे समाधान



पलकों की जेबों में

अंबर को डाला

अधरों पर मेघों की

बरखा को पाला

व्याकुलता की अग्नि में

जलते अरमान

भोर से पहले हुआ अवसान

धरती पर अंबर की

नीली चुनरिया

पंछी के कलरव की

बजती पायलिया

व्योम क्यूँ…

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Added by Sushil Sarna on June 14, 2020 at 9:35pm — 6 Comments

दोहा गज़ल एक प्रयास :

दोहा गज़ल एक प्रयास :

साथी सारे स्वार्थ के, झूठे सारे नात,

अवसर एक न चूकते, देने को आघात।

नैनों से ओझल हुआ, आज लाज का नीर, 

संस्कारों की हो गई, भूली बिसरी बात। 

साँझे चूल्हों के नहीं, दिखते अब परिवार ,

बिखरे रिश्ते फ़र्श पर, जैसे पीले पात। 

बूढ़े बरगद की नहीं, अब आंगन में छाँव, 

बूढ़ी आँखों से सदा , होती है बरसात। 

कैसा कलयुग आ गया, अपने देते दंश,

जर्जर काया की हुई, आहट हीन…

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Added by Sushil Sarna on June 9, 2020 at 10:59pm — 6 Comments

उल्फ़त पर दोहे :

उल्फ़त पर दोहे :

सब लिखते हैं जीत को, मैं लिखता हूँ हार।

हार न हो तो जीत का, कैसे हो शृंगार।।१

अद्भुत है ये वेदना, अद्भुत है ये प्यार।

दृगजल जैसे प्रीत का, कोई मंत्रोच्चार।।२

क्यों मिलता है प्यार को, दर्द भरा अंजाम।

हो जाते हैं इश्क में, रुख़सत क्यों आराम।।३

हर लकीर ज़ख्मी हुई, रूठ गए सब ख़्वाब।

आँखों की दहलीज पर,करते रक़्स अज़ाब ।।४

दस्तक देते रात भर, पलकों पर कुछ ख़्वाब।

तारीकी में ज़िंदगी, लगती हसीं…

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Added by Sushil Sarna on June 4, 2020 at 10:37pm — 6 Comments

जीवन पर कुछ दोहे :

जीवन पर कुछ दोहे :

जीवन नदिया आस की, बहती जिसमें प्यास।

टूटे सपनों का सहे, जीव सदा संत्रास।१ ।

जीवन का हर मोड़ है, सपनों का भंडार।

अभिलाषा में जीत की, छिपी हुई है हार।२ ।

जीवन पथ निर्मम बड़ा, अनदेखा है ठौर।

करने तुझको हैं पथिक,सफ़र सैंकड़ों और।३।

जीवन उपवन में खिलें, सुख -दुख रूपी फूल।

अपना -अपना भाग्य है फूल मिलें या शूल।४ ।

मिथ्या जग में जीत है, मिथ्या जग में हार ।

जीवन का हर मोड़ है, सपनों…

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Added by Sushil Sarna on June 2, 2020 at 9:00pm — 8 Comments

अधूरे अफ़साने :

अधूरे अफ़साने :

जाने कितने उजाले ज़िंदा हैं

मर जाने के बाद भी

भरे थे तुम ने जो

मेरी आरज़ूओं के दामन में

मेरे ख़्वाबों की दहलीज़ पर

वो आज भी रक़्स करते हैं

मेरी पलकों के किनारों पर

तारीकी में डूबी हुई

वो अलसाई सी सहर

वो अब्र के बिस्तर पर

माहताब की

अंगड़ाइयों का कह्र

वो लम्स की गुफ़्तगू

महक रही है आज भी

दूर तलक

मेरे जिस्मो-जां की वादियों में

तुम थे

तो…

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Added by Sushil Sarna on June 1, 2020 at 8:00pm — 8 Comments

रंग काला :

रंग काला :

जाने कितने रंग सृष्टि के

अद्भुत लेकिन है रंग काला

काली अलकें काली पलकें

काले नयन लगें मधुशाला

काला भँवरा

हुआ मतवाला

काला टीका नज़र उतारे

काला धागा पाँव सँवारे

काली रैना चंदा ढूंढें

अपना शिवाला

काले में हैं सत्य के साये

हर उजास के पाप समाए

रैन कुटीर सृष्टि की शाला

रंग सपनों को

भाए काला

काले से तो भय व्यर्थ है

इसमें जीवन का अर्थ है

आदि अंत का ये…

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Added by Sushil Sarna on May 22, 2020 at 7:48pm — 6 Comments

मौन सरोवर ....

मौन सरोवर ....

जुदा न होना

मेरे होकर

कैसे कह दूँ तुम स्वप्न हो

मेरी श्वास का तुम दर्पण हो

बोलो प्रिय

कहाँ गए तुम

मेरी पलक में सपने बो कर

जीवनतल की अकथ कथा तुम

प्रेम पलों की मधुर ऋचा तुम

तुम बिन देखो

सूख न जाएँ

अभिलाषा के मौन सरोवर

अभी यहाँ थे अभी नहीं हो

मेरी क्षुधा की सुधा तुम्हीं हो

जीवन दुर्लभ

तुमको खोकर

तुम अंतस की अमर धरोहर

सुशील सरना

मौलिक एवं…

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Added by Sushil Sarna on May 20, 2020 at 7:49pm — 6 Comments

कुछ क्षणिकाएँ :

कुछ क्षणिकाएँ :

सीख लिया शब्दों ने

जीना और मरना

बिना परिधान बदले

देह का

साथ रहकर

व्योम को

सूक्ष्म से अलंकृत करो

कि स्वप्न भी

कल्पना हैं

अचेतन मन की

कह दिया काँपती लौ ने

दिए से

आज मैं सो जाऊंगी

तुम्हारी गोद में

क्रूर पवन के वेग से आहत होकर

शायद मेरा उजाला

अंधेरों को

नहीं भाया

मिट गई

जीत की आकांक्षा

तिमिर में

इक दूजे से

हारते हुए

हम के…

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Added by Sushil Sarna on May 17, 2020 at 9:37pm — 6 Comments

भेद :

भेद :

समझा दिया मैंने

अपने बच्चों को

सत्य और असत्य में क्या है भेद

समझा दिया

मैंने अपने बच्चों को

भानु से फैला उजास

कितने रंगों को होता है

समझा दिया मैंने

यह भी अपने बच्चों को

कि रंगीली गिरगिट का

कौन सा रंग असली और कौन सा नकली होता है

मगर

मुझे ये समझाने में

बहुत मुश्किल का सामना करना पड़ा

कि इंसान का कौन सा रंग असली है

और कौन सा नकली

शायद वक्त के साथ

वो इस…

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Added by Sushil Sarna on May 15, 2020 at 6:19pm — 3 Comments

जीवन पर कुछ दोहे :

जाने कितनी दूर थी, जाने कितनी पास।

जाने किसकी जोह में, रुकी हुई थी श्वास।।

जाने किसकी जोह में, तरल हो गई आस।

एक श्वास थी ज़िंदगी, एक श्वास संत्रास।।

जीवन के विश्राम तक, मिटी न मन की जोह।

करते करते सो गया, जीव सत्य की टोह।।

बड़ा अजब है जीव का, जीवन के प्रति मोह।

जीत न पाया अंत से, खूब किया विद्रोह।।

मृत्यु देह की है सखा, जीवन गहरी खोह।

फिर भी इस संसार से, मिटे न मन का मोह।।





सुशील सरना…

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Added by Sushil Sarna on May 14, 2020 at 10:30pm — 2 Comments

घर :

घर :

अच्छा है या बुरा है

जैसा भी है

मगर

ये घर मेरा है

इस घर का हर सवेरा

सिर्फ और सिर्फ

मेरा है

मैं

दिन रात

इसकी दीवारों से बातें करता हूँ

मेरे हर दर्द को

ये पहचानती हैं

मैं

कौन हूँ

ये अच्छी तरह जानती हैं

धूप

हर रोज

इन दीवारों को धो देती है

दीवारों पर टंगे अतीतों पर

रो देती है

कल भी कहते थे

ये आज भी कहते हैं

ये घर उनका का है

दीवारों पर उनकी यादों…

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Added by Sushil Sarna on May 12, 2020 at 8:59pm — 2 Comments

माटी :कुछ दोहे

माटी :कुछ दोहे

माटी मिल माटी हुआ, माटी का इंसान।

माटी अंतिम हो गई,मानव की पहचान।।

माटी अंतिम हो गई,मानव की पहचान।

माटी- माटी हो गया, साँसों का अभिमान।।

माटी -माटी हो गया, साँसों का अभिमान।

खंडित सारे हो गए, जीने के वरदान।।

खंडित सारे हो गए, जीने के वरदान।

पल भर में माटी हुआ माटी का परिधान।।

पल भर में माटी हुआ, माटी का परिधान।

माटी के पुतले यही, तेरी है पहचान।।

सुशील सरना…

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Added by Sushil Sarna on May 11, 2020 at 7:31pm — 3 Comments

मातृ दिवस पर माँ को अर्पित कुछ दोहे :

मातृ दिवस पर माँ को अर्पित कुछ दोहे :

माँ सृष्टि का नाम है, माँ में चारों धाम।

बिन माँ के संसार में, कहीं नहीं विश्राम।।

हौले -हौले गोद में, सोया माँ का लाल।

हुआ बड़ा तो देखिए, भूला माँ का हाल।।

नौ माह किया गर्भ में, माँ ने बड़ा ख़याल।

बिन बोले ही रो पड़ी, दुखी हुआ जब लाल।।

हर दम चाहे माँ यही, सुखी रहे संतान।

माँ देती संतान को, साँसों का वरदान।।



बिन देखे संतान को, मिटे न माँ की भूख।

भूख़ी हो संतान तो,…

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Added by Sushil Sarna on May 10, 2020 at 6:02pm — 3 Comments

मन के जतन :

मन के जतन :

फूल हुए शूल हुए

रास्ते की धूल हुए

अर्थहीन हो गए

अर्द्ध रैन स्वप्न

अवरोध प्रीत के

छंद सजे गीत के

सृष्टि में अट्हास हुआ

प्रीत का उपहास हुआ

सहमे

तन और मन

मेघों के आँचल पर

खुशबू से नाम लिखे

अनुरोधों की देहरी पर

बेमोल बिक गए

अंतर मौन स्वप्न

स्वीकार सभी खो गए

वनपाखी से हो गए

सायों से मिलने के

व्यर्थ हुए जतन

क्यूँ रोये नैना

न वो जाने

न…

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Added by Sushil Sarna on May 6, 2020 at 7:14pm — 3 Comments

आहट .....

आहट .....

दिल

हर आहट को

पहचानता है

आहट

बेशक्ल नहीं होती

होती हैं उसमें

हज़ारों ख़्वाहिशें

जिनके इंतज़ार में

ज़िंदगी

रहती है ज़िंदा

फ़ना होने के बाद भी

सहर होती है साँझ होती है

वक़्त मगर

ठहरा ही रहता है

किसी आहट के इंतज़ार में

नज़रें

अपनी ख़्वाहिशों के अक़्स

देखने को बेताब रहती हैं



तसव्वुर में

ज़िंदा रहती हैं

आहटें

मगर

मिलता है धोख़ा

सायों…

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Added by Sushil Sarna on April 29, 2020 at 8:04pm — 6 Comments

झूठ

झूठ

नहीं, नहीं

रहने दो

सच और झूठ की ये तकरार

सच में बेकार है

सत्य

जब उजागर होता है

तो आघात देता है

और झूठ जब उजागर होता है

तो शर्मिंदगी का शूल देता है

फिर क्यूँ मुझे

अपने सच और झूठ का स्पष्टीकरण देते हो

सच कहूँ

यदि आघात ही सहना है तो

मुझे ये झूठ अच्छा लगता है

कम से कम मौन पलों में

स्नेह का आवरण तो नहीं हटता

कोई स्वप्न मेघ तो नहीं फटता

स्पर्शों की आँधी

सत्य के चौखट पर…

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Added by Sushil Sarna on April 26, 2020 at 9:00pm — 4 Comments

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