221 2121 1221 212
मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊलु फ़ाइलातु मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
.
तेरे फ़रेब-ओ-मक्र सभी जानता हूँ मैं
'शाहिद' हूँ ज़िन्दगी तुझे पहचानता हूँ मैं
काफ़िर न जानिए है ये कुछ अस्र-ए-बद-दुआ
शह्र-ए-बुतां की धूल जो अब छानता हूँ मैं
जी भर के ज़िन्दगी न जिया ख़ुद से है गिला
जीने की रोज़ सुब्ह यूँ तो ठानता हूँ मैं
इक़बाल-ए-जुर्म मेरा मुसव्विर भी तो करे
ख़ुद की तो ख़ामियाँ सभी गर्दानता हूँ…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on February 25, 2020 at 1:00am — 5 Comments
रमल मुसम्मन महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2 1 2 2 / 2 1 2 2 / 2 1 2 2 / 2 1 2
सारी दुनिया से ख़फ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ
हादसों का सिलसिला तू ही नहीं मैं भी तो हूँ
दौड़ता जाता है ख़ामोशी से बिन पूछे सुने
वक़्त से दहशत-ज़दा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ
ज़िन्दगी है लम्हा लम्हा जंग अपने-आप से
अपने अंदर कर्बला तू ही नहीं मैं भी तो हूँ
दिल के अंदर गूंजती हैं चीख़ती ख़ामोशियाँ
एक साज़-ए-बे-सदा तू ही नहीं मैं भी…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on February 20, 2020 at 12:44am — 7 Comments
मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊलु फ़ाइलातु मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
2 2 1 / 2 1 2 1 / 1 2 2 1 / 2 1 2
फूलों के सीने चाक हैं बुलबुल फ़रार है
सब दाग़ जल उठे हैं ये कैसी बहार है
कैसी बहार शहर में क्या मौसम-ए-ख़िज़ाँ
कारें इमारतें हैं दिलों में ग़ुबार है
कुछ बस नहीं बशर का क़ज़ा पर हयात पर
लेकिन ग़ुरूर ये है कि ख़ुद-इख़्तियार है
हाकिम है ख़ूब ख़्वाब-फ़रोशों पे मेहरबां
भाता नहीं उसे जो हक़ीक़त-निगार है
क्या ख़ूब है…
ContinueAdded by रवि भसीन 'शाहिद' on February 16, 2020 at 7:41pm — 4 Comments
कितना क़ायदा, कितना सलीका
ले आये हैं हम दुनिया में
दिन हैं मुक़र्रर सब कामों के
माँ और बाप को
उस्तादों को, और वतन को
यादों में लाने के लिए और
कितनी इज़्ज़त कितनी अक़ीदत
उनके लिए है दिल में हमारे
सबको बतलाने के लिए
और इक दिन है इश्क़ के नाम भी
वैलेनटाइन डे कहते हैं जिसको
जब भी आता है ये दिन तो
एक अजब एहसास सा दिल में भर जाता है
सोचता हूँ कि एक ही दिन क्यों रक्खा गया है
इश्क़, मुहब्बत, प्यार के नाम
प्यार भी…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on February 14, 2020 at 5:20pm — 3 Comments
(221 2121 1221 212)
(बहर मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़)
अब के अजीब रंग में आया है जनवरी
ग़म सब पुराने साथ में लाया है जनवरी
बे-नूर सुब्ह-ओ-शाम हैं वीरां हैं रास्ते
तू भी किसी के ग़म का सताया है जनवरी
ना दिन में आफ़्ताब न महताब रात में
मत पूछिये कि कैसे निभाया है जनवरी
क़हर-ओ-सितम है ठंड का जारी उसी तरह
कोहरा-ओ-धुंद और भी लाया है जनवरी
शादाब ना शजर हों तो क्या लुत्फ़-ए-ज़िन्दगी
तुझको सितम…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on January 7, 2020 at 11:41am — 6 Comments
ईसा का जन्मदिन है जहां भर को मुबारक
मग़रिब के बिरादर ये बड़ा दिन हो मुबारक
क्रिसमस के है जश्नों में बहुत शाद ज़माना
सड़कें हैं ढकी बर्फ़ से और गर्म मकां हैं
इशरत का है आराम का सामान मुहइया
चीजों से लबालब लदे बाज़ार-ओ-दुकां हैं
हासिद तो नहीं हैं तेरी ख़ुश-क़ीस्मती से हम
सोचा है कभी दौलतें आईं ये कहाँ से
तुम लूट के जो ले गए सोने की थी चिड़िया
तहज़ीब-ओ-अदब तुमने मिटा डाले जहाँ से
क़ाबिज़ थे हुक़ूमत थी जहाँ पर भी तुम्हारी…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on December 30, 2019 at 12:30pm — 10 Comments
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