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Aleem azmi's Blog (23)

ज़ख्मे दिल

रोज़ एक ज़ख्म नया दिल पे लगाया तूने

मेरी हंसती हुई आँखों को रुलाया तूने









खो चुका था मै गमो दर्द के सन्नाटों में

मेरी बेताब तमन्ना को जगाया तूने









मेरी उल्फत को न समझी है न समझेगी कभी

जब भी फुर्सत मिली इस दिल को दुखाया तूने









गैर की बज़्म सजाने के लिए तूने सनम

मुझसे हर रोज़ बहाना ही बनाया तूने









तेरा एक एक सितम हंस के "अलीम" ने सहा

उसके lab पर कभी शिकवा तो न पाया… Continue

Added by aleem azmi on April 17, 2010 at 7:04pm — 4 Comments

dil - e - pareshaan

अब तो दिन ढल चूका है चले आईये
दिल धड़कने लगा है चले आईये

जाने फिर अब मुलाकात हो न हो
दिल लबों पर रुका है चले आईये

भीग कर रुक न जाए कही आज फिर
देखो बादल उठा है चले आईये

दिल परेशा है नींद आती नहीं
दीप बुझने लगा है चले आईये

दिल की दहलीज़ पर आकर रुक क्यों गए
सारा घर आपका है चले आईये

मेरे दिल में एक काँटा चुभा है "अलीम"
ख़त उन्होंने लिखा है चले आईये

Added by aleem azmi on April 15, 2010 at 4:37pm — 6 Comments

दीए चाहत के

आँखों में बस के दिल में समां कर चले गए
ख्वाब्दीदा ज़िन्दगी थी जगा कर चले गए




चेहरे तक आस्तीन वह लाकर चले गए
क्या राज़ था की जिसको छुपाकर चले गए




रगरग में इस तरह समां कर चले गए
जैसे मुझ ही को मुझसे चुरा के चले गए




आये थे दिल की प्यास बुझाने के वास्ते
एक आग सी वह और लगाकर चले गए




lab थर थरा के रह गए लेकिन वो ऐ "अलीम "
जाते हुए निगाह मिलाकर चले गए .

Added by aleem azmi on April 14, 2010 at 11:26am — 5 Comments

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