21 21 21 21 2
एक और दास्तां सुनो
एक और खूँ चकां हुई
एक और दर्द बड़ गया
एक और राज़दाँ हुई
एक और दाग लग गया
एक और जाँ निहाँ हुई
एक और रूह जम गई
एक और ख़त्म जाँ हुई
एक और आग लग गई
एक और लौ तवाँ हुई
एक और फूल आ गया
एक और सब्ज माँ हुई
एक और हादसा हुआ
एक और बे अमाँ हुई
एक और बचपना गया
एक और रूह जवाँ हुई
एक और…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on February 14, 2021 at 8:27pm — No Comments
2122 2121 1212 22
तुम जो साड़ी में यूँ खिलता गुलाब लगती हो
दिल ये कहता है की बस लाजवाब लगती हो
**
किस तराज़ी से तराशा है तुम्हें रब ने भी
दिल पे लगती हो तो सीधे जनाब लगती हो
**
हो गई सारी फ़ज़ा देख कर यूँ ही ताजा
चाँद जैसा है बदन पर खुशाब लगती हो
**
रोज़ करते हैं इबादत अज़ब करिश्मा है
आयतों की…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on February 12, 2021 at 10:30am — No Comments
1222 1222 1222 1222
कहानी कोई हो अपने मुआफ़िक़ मोड़ लेते हैं
सभी किरदारों से किरदार अपना जोड़ लेते हैं
बड़ी तकलीफ़ देती हैं के चलती हैं ये साँसें भी
बड़े फाज़िल हैं हम भी रोज़ खुशियाँ जोड़ लेते हैं
ब-ज़िद हैं आस्तीं के साँप…
Added by Aazi Tamaam on February 11, 2021 at 10:00am — 2 Comments
2122 2122 2122 212
प्यार भी करता रहा दिल को जलाता भी रहा
जिंदगी भर मेरी चाहत आज़माता भी रहा
बेबसी की दास्तां किसको सुनाये दिल भला
उम्र भर गम भी रहा और मुस्कुराता भी रहा
बेकरारी में कोई पागल रहा कुछ इस कदर
लौ जलाता भी रहा और लौ बुझाता भी रहा
दिल्लगी भी क्या गज़ब की दास्तां है…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on February 11, 2021 at 12:00am — 4 Comments
2122 2122 22
दिल ने की है तेरी बहुत खिदमत
तू जो समझा है की जिसको आफत
सुर्ख रू होगा सुकूँ ना होगा पर
इस तरह आयेगी तेरी शामत
मैं तो नादानी में हूँ लेकिन तू
तुझ को होने की खुदा है आदत
यूँ की खुद को ही भुला देता हूँ
अब ना पीना आंसुओं का शरवत
तू ने छेड़ा ही कोई क्यों है फिर
गर तू होता ही न खुद से सहमत
इस तरह भी और कोई है क्या
खुद से पूँछे जो की खुद की…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on January 21, 2021 at 11:00pm — No Comments
22 22 22 22 22
इंसान ही शैतान इंसान ही शाइस्ता
इंसान के होने से है ख़ुदा बाबस्ता
कोई खुदा इंसान से बड़कर नहीं
समझ आयेगा आहिस्ता आहिस्ता
जिस रस्ते सब जाने से ही डरते हैं
लो मैं ही जाता हूँ की उस रस्ता
हो हर इक इंसान बस इंसान ही
क्या कोई भी है नहीं ऐसा रस्ता
जो खुदाओं पे यूँ झगडा़ करते हैं
ऐसे लोगों से अपना क्या रिश्ता
शायद दिन भर ही जलता रहता है
कितना बे-खुशबू है…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on January 21, 2021 at 11:00pm — No Comments
उजड़कर क्या बसेगा गांव मेरा
यहाँ डालो ना कोई जंग-ए-डेरा
की रातें जा चुकी प्राता है शायद
घनी है तीरगी अब हो सबेरा
नज़र आये भी कैसे कोई गलती
कोई दिखता नहीं इतना घनेरा
ज़हन में देखो है नफ़रत सभी के
मिटे भी तो भला कैसे अंधेरा
तू भी रहता है बस उसके भरोसे
कोई तो आसमां भी हो की तेरा
(अप्रकाशित व मौलिक)
Added by Aazi Tamaam on January 19, 2021 at 2:00pm — No Comments
122 122 122 122
किसी और मंज़िल पे जाने का दिल है
कहीं और दुनिया बसाने का दिल है
अभी मैं नहीं इश्क में सरफरोश
मगर इस कदर जाँ लुटाने का दिल है
अभी तो नदी के सफ़र पे हूँ पैहम
समंदर के साहिल पे जाने का दिल है
कभी मुट्ठियों भर सितारे जला दूँ
कभी वादियों को जलाने का दिल है
कभी खाक कर दूँ सभी जख्म़ दिल के
युँ ही शय जलाने बुझाने का दिल है
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Aazi Tamaam on January 16, 2021 at 1:30am — No Comments
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