दोहा पंचक . . . .
लुप्त हुई संवेदना, कड़वी हुई मिठास ।
अर्थ रार में खो गए , रिश्ते सारे खास ।।
*
पहले जैसे अब कहाँ, मिलते हैं इन्सान ।
शेष रहा इंसान में, बड़बोला अभिमान ।।
*
प्रीत सरोवर में खिले, क्यों नफरत के फूल ।
तन मन को छिद्रित करें, स्वार्थ भाव के शूल ।।
*
किसको अपना हम कहें, किसको मानें गैर ।
भूल -भाल कर दुश्मनी , सबकी माँगें खैर ।।
*
शर्तों पर यह जिंदगी , काटे अपनी राह ।
सुध-बुध खो कर सो रही, शूल नोक पर चाह…
Added by Sushil Sarna on November 5, 2023 at 7:46pm — 4 Comments
जीवन ....दोहे
झुर्री-झुर्री पर लिखा, जीवन का संघर्ष ।
जरा अवस्था देखती, मुड़ कर बीते वर्ष ।।
क्या पाया क्या खो दिया, कब समझा इंसान ।
जले चिता के साथ ही, जीवन के अरमान ।।
कब टलता है जीव का, जीवन से अवसान ।
जीव देखता रह गया, जब फिसला अभिमान ।।
देर हुई अब उम्र की, आयी अन्तिम शाम ।
साथ न आया काम कुछ ,बीती उम्र तमाम ।।
जीवन लगता चित्र सा, दूर खड़े सब साथ ।
संचित सब छूटा यहाँ, खाली दोनों हाथ…
Added by Sushil Sarna on October 17, 2023 at 9:30pm — 6 Comments
लेबल्ड मच्छर ......(लघु कथा )
"रामदयाल जी ! हमें तो पता ही नही था कि हमारे मोहल्ले से मच्छर गायब हो गए हैं सिर्फ पार्षद के घर के अलावा ।" दीनानाथ जी ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा ।
"वो कैसे ।" रामदयाल जी बोले ।
"वो क्या है रामदयाल जी । आज सवेरे में छत पर पौधों को पानी दे रहा था कि अचानक मुझे नीचे कोई मशीन चलने की आवाज सुनाई दी । नीचे देखा तो देख कर दंग रह गया ।"
"क्यों? क्या देखा दीनानाथ जी । पहेलियाँ मत बुझाओ ।साफ साफ बताओ यार ।" रामदयाल जी बोले…
ContinueAdded by Sushil Sarna on October 15, 2023 at 8:05pm — No Comments
दोहा पंचक. . . . .
तर्पण को रहता सदा, तत्पर सारा वंश ।
दिये बुजुर्गो को कभी, कब मिटते हैं दंश ।।
तर्पण देने के लिए, उत्सुक है परिवार ।
बंटवारे के आज तक, बुझे नहीं अंगार ।।
लगा पुत्र के कक्ष में, मृतक पिता का चित्र ।
दम्भी सिर को झुका रहा, उसके आगे मित्र ।।
देह कभी संसार में, अमर न होती मित्र ।
महकें उसके कर्म ज्योँ , महके पावन इत्र ।।
तर्पण अर्पण कीजिए, सच्चे मन से यार ।
चला गया वो आपका,…
Added by Sushil Sarna on October 9, 2023 at 1:30pm — No Comments
ईमानदारी ....
"अरे भोलू ! क्या हुआ तेरे पापा 4-5 दिन से दूध देने नहीं आ रहे ।"सविता ने भोलू के बेटे को दूध का भगोना देते हुए पूछा ।
"वो बीवी जी, पापा की साइकिल कुछ खराब हो गई इसलिए मैं दूध देने आ गया ।" भोलू के बेटे ने भगोने में दूध डालते हुए कहा ।
"अच्छा , अच्छा यह बता जब से तुम दूध दे रहे हो दूध इतना पतला क्यों है ? पापा तो दूध गाढ़ा लाते थे ।"
सविता ने कहा ।
"बीवी जी, यह साइकिल नहीं फटफटिया है । अगर दूध गाढ़ा बेचेंगे तो फटफटिया कैसे चलायेंगे…
ContinueAdded by Sushil Sarna on October 8, 2023 at 1:30pm — 2 Comments
भिखारी छंद -
24 मात्रिक - 12 पर यति - पदांत-गा ला
मन से मन की बातें, मन करता मतवाला ।
मन में हरदम जलती , इच्छाओं की ज्वाला ।
भोगी मन तो चाहे , बाला की मधुशाला ।
पी कर मन ये नाचे , नैन नशीली हाला ।
××××××
उल्फ़त की सौगातें, आँखों की बरसातें ।
तन्हा - तन्हा बीती , भीगी - भीगी रातें ।
जाकर फिर कब आते , बीते दिन मतवाले ।
दिल को बहुत सताते , खाली-खाली प्याले ।
सुशील सरना /5-10-23…
ContinueAdded by Sushil Sarna on October 5, 2023 at 2:38pm — No Comments
मनका / वर्णिका छंद - तीन चरण, पाँच-पाँच वर्ण प्रत्येक चरण,दो चरण या तीनों चरण समतुकांत
मस्त जवानी
फिर न आनी
हसीं कहानी !
*
आई बहार
अलि गुँजार
पुष्प शृंगार !
*
झड़ते पात
अन्तिम रात
एक यथार्थ !
*
मुक्त विहार
काम विकार
देह व्यापार!
*
घोर अँधेरा
छुपा सवेरा
स्वप्न का डेरा !
सुशील सरना 3-10-23
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 3, 2023 at 1:24pm — 2 Comments
दोहा पंचक. . . राजनीति
राजनीति के जाल में, जनता है बेहाल ।
मतदाता पर लोभ का, नेता डालें जाल ।।
राजनीति में आजकल, धन का है व्यापार ।
भ्रष्टाचारी की यहाँ , होती जय जयकार ।।
राजनीति में अब नहीं , सत्य निष्ठ प्रतिमान ।
श्वेत तिजोरी मांगती , जनता से बलिदान ।।
भ्रष्टाचारी पंक में, नेता करते ठाठ।
कीच नीर में यूँ रहें, जैसे तैरे काठ ।।
राजनीति के तीर पर, बगुले करते ध्यान ।
मीन…
Added by Sushil Sarna on September 26, 2023 at 2:00pm — 6 Comments
बेटी दिवस पर दोहा ग़ज़ल ....
बेटी घर की आन है, बेटी घर की शान ।
दो दो कुल संवारती, बेटी की मुस्कान ।।
बेटी को मत जानिए, बेटे से कमजोर ,
जग में बेटी आज है, उन्नति की पहचान ।
बेटे को जग वंश का, समझे दावेदार,
बेटे से कम आंकता, बेटी के अरमान ।।
धरती अरु आकाश पर , लिख दी अपनी जीत,
बेटी ने अब छू लिया , धरा से आसमान ।।
बेटी अबला अब हुई, अतुल शक्ति पर्याय ,
उसके साहस को करे, नमन सारा जहान…
Added by Sushil Sarna on September 25, 2023 at 11:56am — 4 Comments
मधुमालती छंद ....
1
डर कर कभी, रोना नहीं ।
विश्वास को, खोना नहीं ।
तूफान में, सोना नहीं ।
नफरत कभी , बोना नहीं ।
***
2
क्षण- क्षण बड़ा, बलवान है ।
संग्राम की, पहचान है ।
हर पल यहाँ, संघर्ष है ।
पल भर यहाँ , बस हर्ष है ।
***
3
सपने कभी ,मरते नहीं
दीपक सभी , जलते नहीं ।
थोड़ी यहाँ, मुस्कान है ।
ढेरों यहाँ , व्यवधान है ।
***
4
हर वक्त ही,बस काम है।
जीवन इसी का नाम है ।
थोड़ी यहाँ, पर…
Added by Sushil Sarna on September 21, 2023 at 8:12pm — No Comments
दोहा सप्तक. . . संसार
औरों को देखा मगर, कब समझा इंसान ।
संचित सब कुछ छोड़ता, जब होता अवसान ।।
कहते हैं लगती नहीं, कभी कफन में जेब।
फिर भी धन की लालसा, देती उसे फरेब ।।
आने पर जैसे करें, जीव रूप सत्कार ।
पुष्पों से ढकते कफन ,जब छूटे संसार ।।
जीत क्षुधा मिटती नहीं, मिट जाती यह देह ।
नश्वर तन से जीव का, कब मिटता है नेह ।।
कर्मों का करता सदा, पीछे जगत बखान ।
रह जाती बस जीव की, अमिट यही पहचान…
Added by Sushil Sarna on September 11, 2023 at 2:00pm — No Comments
वरिष्ठ नागरिक दिवस के अवसर पर चन्द दोहे : ....
दृग जल हाथों पर गिरा, टूटा हर अहसास ।
काया ढलते ही लगा, सब कुछ था आभास ।।
जीवन पीछे रह गया, छूट गए मधुमास ।
जर्जर काया क्या हुई, टूट गई हर आस ।।
गिरी लार परिधान पर, शोर हुआ घनघोर ।
काया पर चलता नहीं, जरा काल में जोर ।।
लघु शंका बस में नहीं, थर- थर काँपे हाथ ।
जरा काल में खून ही , छोड़ चला फिर साथ ।।
वृद्धों को बस दीजिए , थोड़ा सा सम्मान ।
अवसादों को…
Added by Sushil Sarna on August 21, 2023 at 2:45pm — 4 Comments
सीख ......
"पापा ! फिर क्या हुआ" । सुशील ने रात को सोने से पहले पापा की टाँगें दबाते हुए पूछा ।
"कुछ मत पूछ बेटा । हर तरफ मार काट, भागम-भाग , हर तरफ चीखें ही चीखें थी । हमने थोड़े से गहने और सामान बाँधा और सब कुछ छोड़ कर निकल लिए ।" पापा ने कहा ।
"आप सुरक्षित कैसे निकले "। सुशील ने पूछा ।
"ह्म्म । बेटे!सन् 1947 के विभाजन में सम्भव नहीं था वहाँ से सुरक्षित निकलना । उसी कौम का एक इंसान फरिश्ता बन कर हमारी मदद को आया और किसी तरीके से बचते बचाते…
ContinueAdded by Sushil Sarna on August 19, 2023 at 4:49pm — 7 Comments
दोहा त्रयी. . . . मजबूर
आँखों से ही दूर है, अब आँखों का नूर ।
बदले इस परिवेश में, ममता है मजबूर ।।
वर्तमान ने दे दिया, माना धन भरपूर ।
लेकिन कितना कर दिया, मिलने से मजबूर ।।
धन अर्जन करने चला, सात समंदर पार ।
मजबूरी ने कर दिया, सूना घर संसार ।।
सुशील सरना / 18-8-23
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 18, 2023 at 3:08pm — 4 Comments
चौपाई छंद - जीवन
जीवन का जो मर्म न जाने ।
दर्द किसी के क्या पहचाने ।।
जग में निष्ठुर वो कहलाता ।
जो साँसों को समझ न पाता ।1।
*
यौवन के जब दिन हैं आते ।
आँखों में सपने लहराते ।।
रातें लगतीं सदा सुहानी ।
हर पल लिखता नई कहानी ।2।
*
यादों का है दिल से नाता ।
दिल आँसू को सदा छिपाता ।।
आँखों में रातें छिप जातीं ।
कह न व्यथा अन्तस की पातीं ।3।
*
…
Added by Sushil Sarna on August 12, 2023 at 2:41pm — 2 Comments
दोहा पंचक
खुद पर खुद का जब नहीं, चलता कोई जोर ।
निर्णय उस इंसान के , पड़ जाते कमजोर ।।
जीवन मधुबन ही नहीं, यहाँ फूल अरु शूल ।
सुख के पथ पर है पड़ी , यहाँ दुखों की धूल ।।
रिश्ते कागज पुष्प से, हुए आज निर्गंध ।
तार -तार सब हो गए, रेशम से अनुबंध ।।
कौन यहाँ पर पारसा, किसे कहें हम चोर ।
सच्चाई की राह में, मचा झूठ का शोर ।।
मीठी लगती चाँदनी, तीखी लगती धूप ।
ढल जाएगा एक दिन, चाँदी जैसा रूप…
Added by Sushil Sarna on August 4, 2023 at 1:06pm — 2 Comments
दोहा त्रयी : बदनाम
उल्फत में रुसवा हुए, मुफ्त हुए बदनाम ।
आँसू आहों का मिला , इस दिल को ईनाम ।।
शमा जली महफिल सजी, चले जाम पर जाम ।
रिन्दों ने की मस्तियाँ, शाम हुई बदनाम ।।
वफा न जाने बेवफ़ा ,क्या उस पर इल्जाम ।
खाया फरेब इस तरह, इश्क हुआ बदनाम ।।
सुशील सरना / 3-8-23
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 3, 2023 at 1:59pm — No Comments
दोहा पंचक. . . ( क्रोध )
क्रोध मूल है बैर का, करे बुध्दि का नाश ।
काट सको तो काट दो ,क्रोध रास का पाश ।।
रिश्तों को पल में करे, खाक क्रोध की आग ।
जीवन भर मिटते नहीं, इन जख्मों के दाग ।।
क्रोध पनपता है वहाँ , होता जहाँ विरोध ।
हरदम चाहे आदमी , लेना बस प्रतिशोध ।।
घातक होते हैं बड़े, क्रोध जनित परिणाम ।
जीवित रहते शूल से, अंतस में संग्राम ।।
मित्र क्रोध से क्रोध का, मुश्किल है…
ContinueAdded by Sushil Sarna on July 21, 2023 at 2:07pm — 2 Comments
क्षणिकाएँ. . . .
समझा दिया
मतलब मोहब्बत का
गिर कर
हथेली पर
एक आँसू ने
*
प्यास
एक हसीं अहसास
सुलगते अरमानों की
*
तन से दूर
मन के पास
मन की प्यास
*
आँखों में
करतीं रास
दरस की प्यास
*
जीवन
मरीचिका
सिर्फ
प्यास ही प्यास
सुशील सरना / 5-7-23
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 5, 2023 at 3:08pm — No Comments
दोहा पंचक . . . .
नारी का कामुक करे, दागदार जब चीर ।
आँखों की प्राचीर से, झर- झर बहता नीर ।।
हार वही जो जीत का, लिख डाले इतिहास ।
तृप्ति संग तृष्णा करे, हरदम प्यासी रास ।।
जीवन मधुबन ही नहीं, इसमें हैं कुछ खार ।
दो पल खुशियों के मिलें, दुख की लगी कतार।।
मन को मन का मिल गया, मन चाहा मन मीत ।
मन के आँगन अवतरित, मन की होती प्रीत ।।
वो नजरों के पास हैं, या नजरों से दूर ।
दिल के सारे खेल तो, दिल से…
Added by Sushil Sarna on June 27, 2023 at 6:30pm — 6 Comments
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