Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on November 10, 2017 at 10:53pm — 2 Comments
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on August 14, 2017 at 12:46pm — 8 Comments
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on May 28, 2016 at 3:30pm — 6 Comments
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on January 30, 2016 at 11:38am — 7 Comments
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on November 1, 2015 at 8:37am — 6 Comments
यूँ भी तक़दीर बदलते हैं यहाँ
लोग गिर गिर के संभलते है यहाँ।
दोस्तों ! इक ज़रा मतलब के लिए
लोग चेहरों को बदलते है यहाँ।
माईले हिर्सो हवस है कितने
देख कर ज़र को फिसलते है यहाँ।
आँख की पुतली फिरे फिर शायद
लोग पल भर में बदलते है यहाँ।
ग़ैर की बात नहीं ऐ लोगों
ज़हर अपने भी उगलते है यहाँ।
क्या बिगाड़ेगी हवाये उनका
वो जो तूफान में पलते है यहाँ।
रोशनी बस वही फैलाते है
जो दीये की तरह जलते है यहाँ।…
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on October 29, 2015 at 11:30pm — 5 Comments
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on October 29, 2015 at 7:00pm — 2 Comments
तुम्हारी हक़ बयानी को कभी डर कर न लिक्खेंगे ...
कि आईने को हरगिज़ हम कभी पत्थर न लिक्खेंगे...
रहे इश्को वफ़ा में ये तो सब होता ही रहता है..
तुम्हारी आज़माइश को कभी ठोकर न लिक्खेंगे....
भरोसा क्या कहीं भी ज़ख्म दे सकता है हस्ती को........
हम अपने दुश्मने जां को कभी दिलबर न लिक्खेंगे.....
तू क़ैदी घर का है, हम तो मुसाफिर दस्तो सहरा के....
कहाँ हम और कहाँ तू हम तुझे हमसर न लिक्खेंगे.....
उड़ानों से हदें होती है कायम हर परिंदे कि…
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on July 18, 2012 at 9:00am — 6 Comments
मेरी आँखों में जो देखा गया है ...
तेरे ही अक़स को पाया गया है ...
मुझे आइन-ए-तहज़ीब समझा ...
वो शायद इस लिये शर्मा गया है ...
वही जिसने मुझे दीवाना समझा ...
जहाने दिल पे मेरे छा गया है ...
निगाहों से न बच पाया मैं उसकी ...
मुझे इस तोवर से ढूंढा गया है ...
उसे हुस्ने-सरापा कह दिया था ...
उसी दिन से वो बस इतरा गया है ...
ये किसके लम्स का झोंका था आख़िर ...
मेरे कमरे को जो महका गया है ... …
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on July 9, 2012 at 6:30pm — 6 Comments
कमी है कौन सी कुदरत के कारखाने में ,
उलझ के रह गया इन्सान जो आबो -दाने में .
वोह जिसके दम से उजाला है मेरी आँखों में ,
उस्सी की आज कमी है गरीब खाने में .
मेरे नसीब में लिखी है ठोकरे शयेद ,
जो भूल बैठा हूँ तुझको भी इस ज़माने में .
समझ रहा था जिसे मै गरीब परवर है ,
उस्सी ने आग लगे है आशियाने में .
हटा जो मर्कज़े हस्ती से देखीय "रिज़वान",
भटक रहा है वही दरबदर ज़माने में .
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on May 17, 2012 at 10:00pm — 8 Comments
मंजिले ऊँची बनाना आज की तामीर है ,
इस सदी की दोस्तों कितनी अजब तस्वीर है ...
ये है कंप्यूटर सदी यानि ज़माना है नया ,
कितनी आसानी से बदली जा रही तस्वीर है ...
क्या कटेगी ज़िन्दगी अपनों की मोबाईल बगैर ,
ये हमारे दौर की मुंह …
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on May 7, 2012 at 11:30am — 11 Comments
न जाने क्यूँ किसी को खल रहा हूँ ,
मै अपनी रह गुज़र पर चल रहा हूँ ....
दीया हूँ हौसलों का इसलिए मै ,
मुकाबिल आँधियों के जल रहा हूँ ....
मै तेरे नाम की शोहरत हूँ शाएद ,
इसी बयेस सभी को खल रहा हूँ .....
मुझे तू याद रखे या भुला दे ,
मै तेरी याद में हर पल रहा हूँ ....…
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on May 5, 2012 at 12:30pm — 17 Comments
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