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मन के जतन :

फूल हुए शूल हुए
रास्ते की धूल हुए
अर्थहीन हो गए
अर्द्ध रैन स्वप्न

अवरोध प्रीत के
छंद सजे गीत के
सृष्टि में अट्हास हुआ
प्रीत का उपहास हुआ
सहमे
तन और मन

मेघों के आँचल पर
खुशबू से नाम लिखे
अनुरोधों की देहरी पर
बेमोल बिक गए
अंतर मौन स्वप्न

स्वीकार सभी खो गए
वनपाखी से हो गए
सायों से मिलने के
व्यर्थ हुए जतन
क्यूँ रोये नैना
न वो जाने
न हम

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 344

Comment

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Comment by Samar kabeer on May 9, 2020 at 9:28pm

मैं तो ठीक हूँ, अस्ल में मेरा छोटा भाई और दो बेटे बीमार थे,भाई 20 दिन अस्पताल में रहा,और बेटे 14 दिन,तीनों की रिपोर्ट निगेटिव आई,अब वो घर पर हैं,और अल्लाह के फ़ज़्ल से ठीक हैं ।

Comment by Sushil Sarna on May 9, 2020 at 7:48pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया। सर अब आपकी सेहत कैसी है। उम्मीद करता हूँ कि अब आप स्वस्थ होंगे। परवरदिगार आपको अच्छी सेहत बख़्शे।

Comment by Samar kabeer on May 9, 2020 at 2:27pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

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