For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नहीं दो चार लगता है बहुत सारे बनाएगा.( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

1222 1222 1222 1222

नहीं दो-चार लगता है बहुत सारे बनाएगा
जहाँ मिलता नहीं पानी वो फ़व्वारे बनाएगा  (1)

ज़रूरत से ज़ियादा है शुगर मेरे बदन में पर
मुझे वो देखते ही फिर शकर-पारे बनाएगा  (2)

फ़लक के इन सितारों की तरह ही देखना इक दिन
ज़मीं पर भी ख़ुुदा अपने लिए तारे बनाएगा  (3)

ज़मीं पर पैर रखने की जगह दिखती नहीं उसको
फ़लक पर वो नये दो-तीन सय्यारे बनाएगा  (4)

जहाँ में ख़ुशनसीबों की नहीं दिखती कमी'सालिक'
ख़ुदा दो-चार तुझ जैसे भी बेचारे बनाएगा  (5)

*मौलिक/अप्रकाशित

Views: 640

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 1, 2020 at 8:44pm

शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय...

Comment by सालिक गणवीर on October 22, 2020 at 6:10pm

उस्ताद-ए -मुहतरम समर कबीर साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हार्दिक आभार। ग़ज़ल पर इस्लाह के लिए विशेष आभार आदरणीय। इस्लाह पर तामील कर दी है जनाब।
सलामत रहें।

Comment by सालिक गणवीर on October 22, 2020 at 6:06pm

आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर' साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हार्दिक आभार। ग़ज़ल पर समझाइश के लिए विशेष आभार।

Comment by सालिक गणवीर on October 22, 2020 at 5:57pm

आदरणीय भाई लक्मण धामी जी
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हार्दिक आभार।

Comment by सालिक गणवीर on October 22, 2020 at 5:53pm

प्रिय रूपम
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हार्दिक आभार। बालक शाइरी को विज्ञान से जोड़ना ठीक नहीं। सलामत रहें।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 20, 2020 at 10:50pm

आदरणीय सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें, मुहतरम समर कबीर साहिब का विश्लेषण क़ाबिल-ए-ग़ौर है।

रूपम जी मेरे ख़याल में ये मिसरा "फ़लक पर वो नये दो-तीन सय्यारे बनाएगा" विज्ञान के अनुसार सहीह है। क्योंकि कहकशांँ या आकाशगंगा भी फ़लक (अंतरिक्ष) में ही होती है। मिसाल के लिए ये अश'आ़र देखिये :

"पुराने हैं ये सितारे फ़लक भी फ़र्सूदा 

  जहाँ वो चाहिये मुझको कि हो अभी नौ-ख़ेज़".     - अल्लामा इक़बाल 

" फ़लक पे चाँद सितारे निकलने हैं हर शब

   सितम यही है निकलता नहीं हमारा चाँद".           - पंडित जवाहरनाथ साक़ी 

Comment by Samar kabeer on October 20, 2020 at 8:33pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'बनाए जुगनू हैं जिसने वही तारे बनाएगा'

जुगनू और तारे तो वो बना चुका है,आप क्या कहना चाहते हैं ?

'वो अपने तिफ़्ल की ख़ातिर तो गुब्बारे बनाएगा'

इस मिसरे में 'ग़ुब्बारे' ग़लत शब्द है,सहीह शब्द है "ग़ुबारा" बहुवचन "ग़ुबारे",देखियेगा ।

'बशर जो सो नहीं सकते वहीं पे सेज फूलों की
जहाँ बिस्तर नहीं होंगे थके-हारे बनाएगा'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ,देखियेगा ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 20, 2020 at 1:15pm

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन। उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"धन्यवाद आ. गुरप्रीत भाई. आपसे शिक़ायत यह है कि हमें आपकी ग़ज़लें पढ़ने को नहीं मिल रही…"
39 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. समर सर की इस्लाह से तक़ाबुल ए रदीफ़ दूर हो गया है.शेर अब यूँ पढ़ा जाए .कड़कना बर्क़ का चर्बा…"
40 minutes ago
Gurpreet Singh jammu replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"वाह वाह वाह आदरणीय निलेश सर, बहुत समय बाद आपकी अपने अंदाज़ वाली ग़ज़ल पढ़ने को मिली। सारी ग़ज़ल…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. लक्ष्मण जी,वैसे तो आ. तिलकराज सर ने विस्तार से बातें लिखीं हैं फिर भी मैं थोड़ी गुस्ताखी करना…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी जी"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"बहुत शुक्रिया आदरणीय तिलकराज कपूर जी, मैं सुधारने की कोशिश करता हूँ।"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय निलेश जी फिलबदी है, कल आपकी ग़ज़ल में टिप्पणी के बाद लिखा है।"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. शिज्जू भाई,जल्दबाज़ी में मतले को परिवर्तित करने के चलते अभी संभावनाएं बन रही हैं कि समय के साथ…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"धन्यवाद आ. तिलकराज सर,आपकी विस्तृत टिप्पणी ने संबल मिला है.मैं स्वयं के अशआर को बहुत कड़ी परीक्षा से…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"धन्यवाद आ. लक्षमण धामी जी "
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"श्रद्धेय श्री तिलक राज कपूर जी, आप नाचीज़ की ग़ज़ल तक  पहुँचे, आपका अतिशय आभार, …"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' ग़ज़ल तक आप आये और अपना बहुमूल्य समय दिया, आपका आभारी…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service