For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- बलराम धाकड़ (मुहब्बत के सफ़र में सैकड़ों आज़ार आने हैं)

1222 1222 1222 1222
मदारिस हैं, मसाजिद, मैकदे हैं, कारख़ाने हैं।
हमारी ज़िन्दगी में और भी बाज़ार आने हैं।
ये लावारिस से पौधे बस इसी अफ़वाह से खुश हैं,
जताने इख़्तियार इन पर भी दावेदार आने हैं।
मैं मरना चाहता हूँ और वो कहते हैं जीता रह,
उन्हीं का हुक़्म मेरी धड़कनें हर बार माने हैं।
दुःशासन, कर्ण, अर्जुन, कृष्ण, शकुनि, द्रोण के जैसे,
अभी तेरी कहानी में कई किरदार आने हैं।
चलन पर वो हमारे देखिए, तनक़ीद करते हैं,
कि जिनकी कीमतें ख़ुद ही के घर में चार आने हैं।
अभी इस दर्द, आँसू और घुटन को पेशगी समझो,
मुहब्बत के सफ़र में सैकड़ों आज़ार आने हैं।
बहार आने को है, बारूद की ख़ुश्बू फ़ज़ा में है,
यही बाकी है शाख़ों पे भी अब अँगार आने हैं।
मौलिक/अप्रकाशित ।

Views: 1201

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Balram Dhakar on September 19, 2023 at 4:37pm

आदरणीय दण्डपाणी जी,

हौसला अफज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.

सादर.

Comment by Balram Dhakar on September 19, 2023 at 4:37pm

बहुत बहुत शुक्रिया आपका, आदरणीय दयाराम जी.

सादर.

Comment by Balram Dhakar on September 19, 2023 at 4:34pm

आदरणीय अजय तिवारी जी,

हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया. आपको ग़ज़ल पसंद आई, मेरा कहना सार्थक हुआ.

सादर.

Comment by Dayaram Methani on July 28, 2019 at 5:33pm

आदणीय बलराम धाकड़ जी, सुंदर गज़ल के ​लिए बधाई स्वीकार करें। 

Comment by Ajay Tiwari on July 20, 2019 at 11:02am

आदरणीय बलराम जी, आपके शेरों में हमेशा एक अतिरिक्त ऊर्जस्विता होती है, वो इन शेरों में भी नुमायाँ है. 

ख़ास तौर से ये शेर बहुत अच्छा लगा :

'बहार आने को है, बारूद की ख़ुश्बू फ़ज़ा में है,
यही बाकी है शाख़ों पे भी अब अँगार आने हैं'
हार्दिक बधाई. 
Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 27, 2019 at 3:46pm

लाजवाब ग़ज़ल | आदरणीय समर सर की इस्लाह से तो जबरदस्त निखार आ गया है | 

Comment by Balram Dhakar on February 6, 2019 at 10:29pm

आदरणीय पंकज जी, ग़ज़ल में शिरकत और सुखन नवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया।

सादर।

Comment by Balram Dhakar on February 6, 2019 at 10:28pm

आदरणीय सुरेंद्र जी, ग़ज़ल आपको पसंद आई, मेरा लिखना सार्थक हुआ।

सादर।

Comment by Balram Dhakar on February 6, 2019 at 10:28pm

आदरणीय समर सर, सादर अभिवादन। ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

सर, आपकी इस्लाह के मुताबिक बदलाव कर दिए हैं। यक़ीनन आपके सुझावों के बाद इसमें एक नई ताज़गी आ गई है।

"अभी तलवार आई है, अभी सरशार आने हैं" इस मिसरे में ग़लती से "सरशार" का अर्थ "तीर" लिया गया था और जल्दबाजी में इसे पटल पर पोस्ट भी कर दिया। अब इस शेर को ग़ज़ल से हटा दिया है।

सादर।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 2, 2019 at 3:39pm

 आदरणीय बलराम जी एक अच्छी ग़ज़ल का प्रयास हुआ है।  शिल्पगत दोष पर आदरणीय बाऊजी जी ने सारी बात कही है। जय हो

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद जी आदाब, बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है बहुत बधाई।"
3 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"लक्ष्मण धामी जी अभिवादन, ग़ज़ल की मुबारकबाद स्वीकार कीजिए।"
3 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय दयाराम जी, मतले के ऊला में खुशबू और हवा से संबंधित लिंग की जानकारी देकर गलतियों की तरफ़…"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी, तरही मिसरे पर बहुत सुंदर प्रयास है। शेर नं. 2 के सानी में गया शब्द दो…"
4 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"इस लकीर के फकीर को क्षमा करें आदरणीय🙏 आगे कभी भी इस प्रकार की गलती नहीं होगी🙏"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय रिचा यादव जी, आपने रचना जो पोस्ट की है। वह तरही मिसरा ऐन वक्त बदला गया था जिसमें आपका कोई…"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय मनजीत कौर जी, मतले के ऊला में खुशबू, उसकी, हवा, आदि शब्द स्त्री लिंग है। इनके साथ आ गया…"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी ग़जल इस बार कुछ कमजोर महसूस हो रही है। हो सकता है मैं गलत हूँ पर आप…"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बुरा मत मानियेगा। मै तो आपके सामने नाचीज हूँ। पर आपकी ग़ज़ल में मुझे बह्र व…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, अति सुंदर सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सादर अभिवादन। लम्बे समय बाद आपकी उपस्थिति सुखद है। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल 221, 2121, 1221, 212 इस बार रोशनी का मज़ा याद आगया उपहार कीमती का पता याद आगया अब मूर्ति…"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service