1222 - 1222 - 1222 - 1222
ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ कि वो इस्लाह कर जाते
वगर्ना आजकल रुकते नहीं हैं बस गुज़र जाते
न हो उनकी नज़र तो बाँध भी पाता नहीं मिसरा
ग़ज़ल हो नज़्म हो अशआर मेरे सब बिखर जाते
बड़ी मुद्दत से मैं भी कब 'मुरस्सा' नज़्म कह पाया
ग़ज़ल पर सरसरी नज़रों ही से वो भी गुज़र जाते
अरूज़ी हैं अदब-दाँ वो अगर बारीक-बीनी से
न देते इल्म की दौलत तो कैसे हम निखर जाते
मिले हैं ओ. बी. ओ. पर वो हमारी ख़ुशनसीबी है
'समर' सर के बिना हम बे-सुरे बे-वज़्न मर जाते
ख़ुदा दे उम्र में बरकत रहें दोनों जहाँ रौशन
जहाँ 'हज़रत' की आमद हो वहीं गौहर बिखर जाते
मेरे उस्ताद हैं 'आली 'समर' साहिब 'अमीर' उनकी
इनायत की नज़र से ही सुख़न बिगड़े संँवर जाते
"मौलिक व अप्रकाशित"
इस्लाह- त्रुटियों को दूर करना, शुद्धि मुरस्सा- रत्न जड़ित, सुसज्जित (काव्य)
अरूज़ी- इल्म-ए-अरूज़, पिंगल शास्त्र का ज्ञाता अदब-दाँ- अदीब, आलिम, भाषाविद
बारीक-बीनी- सूक्ष्मदर्शता, पैनी नज़र गौहर- मोती, रत्न, बुद्धिमत्ता
दोनों-जहाँ- दुनिया और आख़िरत 'आली- ऊँचे मर्तबे वाले, मान्यवर
इनायत की नज़र- महब्बत और महरबानी की नज़र
Comment
आदरणीय समर भाई साहब को समर्पित बहुत ही सुंदर ग़ज़ल लिखी है आपने भाई साहब।हार्दिक बधाई लीजिये।
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, गुरु की महिमा पर बहुत ही सुंदर ग़ज़ल लिखी है आपने। समर सर वाकई ऐसे गुरु कहें या उस्ताद है जो लाखों मे एक है। इस ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें।
आदाब, उस्ताद-ए-मुहतरम, आपका ये ख़िराज-ए-तहसीन क़ुबूल फ़रमा लेना मेरे लिए बाइस-ए-शरफ़ और मसर्रत है, आपकी दुआओं का तालिब और ममनून रहूँगा।
//मुहतरम समर कबीर साहिब के यौम-ए-पैदाइश के अवसर पर परिमार्जन करके रचना
को उस्ताद-ए-मुहतरम को नज़्र कर रहा हूँ//
बहुत-बहुत शुक्रिय: जनाब अमीरुद्दीन साहिब आपकी महब्बतों के लिए, सलामत रहें ।
चूंकि मुहतरम समर कबीर साहिब और अन्य सम्मानित गुणीजनों ने ग़ज़ल में शिल्पबद्ध त्रुटियों की ओर मेरा ध्यान आकृष्ट कराया था अतः भरपूर प्रयास के बाद मुहतरम समर कबीर साहिब के यौम-ए-पैदाइश के अवसर पर परिमार्जन करके रचना को उस्ताद-ए-मुहतरम को नज़्र कर रहा हूँ।
जनाब बृजेश कुमार ब्रज जी आदाब, आदरणीय निलेश जी की टिप्पणी ग़ज़ल पर आई थी, जिस पर मेरी प्रतिक्रिया भी आप देख सकते हैं लेकिन शायद किसी तकनीकी ख़राबी के कारण टिप्पणी हट गयी है। उनकी टिप्पणी का अंश मेरी प्रतिक्रिया में //दिक्कत यह है कि हिन्दी वाले और उर्दू वाले कभी कभी हठधर्मी हो जाते हैं..// में आप देख सकते हैं। सादर।
पूछने का लाभ भरपूर मिला...शुक्रिया आदरणीय समर कबीर जी,सौरभ पांडेय जी..और अमीरुद्दीन जी...नीलेश जी की टिप्पड़ी और मिल जाती तो अच्छा रहता...उन्होंने क्या प्रकाश डाला है।
//जनाब निलेश जी की टिप्पणी मुझे नज़र नहीं आ रही है, कुछ देर पहले तक तो थी?//
जी मुहतरम मैं भी निलेश जी की टिप्पणी ग़ाइब पा कर हैरान हूँ। इसके बारे में मुझे जानकारी नहीं है। सादर।
जनाब अमुरुद्दीन साहिब, जनाब निलेश जी की टिप्पणी मुझे नज़र नहीं आ रही है, कुछ देर पहले तक तो थी?
मुहतरम निलेश 'नूर' जी, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।
//दिक्कत यह है कि हिन्दी वाले और उर्दू वाले कभी कभी हठधर्मी हो जाते हैं..//
जनाब हम न तो विशुद्ध हिन्दी वाले हैं और न ही ख़ालिस उर्दू वाले हैं, बल्कि दोनों ही भाषाओं को पूरे सम्मान, प्रेम और ख़ुशी के साथ मानने वाले हैं, और दोनों ही भाषाओं को उनकी मूल विधाओं के अनुसार इस्तेमाल के अधिकतम प्रयास के पक्षधर हैं। मिसाल के तौर पर आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी के रचित दोहे और छंद रचनाएं और मुहतरम समर कबीर साहिब की तख़लीक़-शुदा ग़ज़लें और नज़्म....
लेकिन इस का अर्थ यह क़तई नहीं है कि दोहे और छंदों में उर्दू के अल्फ़ाज़ और ग़ज़ल वगै़रह में हिंदी के शब्द न हों, ये आसान भी नहीं है। लेकिन ज़रूरी ये है कि जिस भाषा की भी मूल विधा का साहित्य या काव्य रचा जाए उसमें उस भाषा के शब्दों में वर्तनी-दोष न हों भले ही रचना में प्रयुक्त अन्य भाषा के शब्द विशुध्द न हों। सादर।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online