For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'

बह्र-ए-मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ
मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
1212  1122  1212  112/22 

 

किसे जगा के बताएं उदास हैं कितने
सितारे,चाँद, हवाएं  उदास  हैं कितने

न कोई आह लबों पे न ही सदा कोई
ख़मोश रात  बिताएं उदास  हैं कितने

सुदूर सरहदों पे इक ग़ज़ल सिसकती है
ख़ुशी के गीत न गाएं, उदास  हैं कितने

 
क़ज़ा खड़ी है यहीं सामने शिफ़ा लेकर
हमीं न दार पे  जाएं, उदास हैं कितने

रखो न ज़ेहन को अय जान कर्ब-आलूदा
न कर्ब-ज़ा ही दिखाएं, उदास हैं कितने

मुझे न बख़्श सकेगा सुकूत-ए-दिल मेरा
भले  ही जान से जाएं, उदास हैं कितने

मुझे पता है भली-भाँति ढब उदासी का
मुझे न आप बताएं  उदास  हैं कितने

रुका न रोकने से 'ब्रज' उदासियों में कोई
जो जा रहे हैं वो जाएं ,उदास हैं कितने

क़ज़ा-मृत्यु,

शिफ़ा-दवा
दार-फाँसी का तख्ता
कर्ब-आलूदा-दुख से भरा हुआ
कर्ब-ज़ा-बेचैनी
सुकूत-ए-दिल-हृदय का सन्नाटा

(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज' 

Views: 185

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 4, 2025 at 11:25am

आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी देर से रिप्लाई के लिए क्षमा चाहता हूँ। 

आपने जिस कमी को इंगित किया है उसपे जरूर कार्य करूँगा....सादर
Comment by Ravi Shukla on May 15, 2025 at 4:08pm

आदरणीय बृजेश जी ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिये बधाई स्वीकार करें ! मुझे रदीफ का रब्त इस ग़ज़ल मे अशआर के साथ कम समझ आ रहा है । मतले के दोनो मिसरों को आपस में बदल कर भी  एक बार देखें 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 11, 2025 at 1:58pm

उचित है आदरणीय गिरिराज....जी मतले में सुधार के साथ दो शेर और शामिल कर हूँ....सभी अग्रजों का हार्दिक आभार एवं अभिनन्दन 

न कोई आह लबों पे न ही सदा कोई
ख़मोश रात  बिताएं उदास  हैं कितने

सुदूर सरहदों पे इक ग़ज़ल सिसकती है
ख़ुशी के गीत न गाएं, उदास  हैं कितने


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 9, 2025 at 10:47am

अनुज बृजेश , आपका चुनाव अच्छा है , वैसे चुनने का अधिकार  तुम्हारा ही है , फिर भी आपके चुनाव से मेरी पूर्ण सहमति है , आदरणीय बागपतवी जी अनुभवी ग़ज़ल कार हैं | 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 9, 2025 at 10:07am

एक अँधेरा लाख सितारे

एक निराशा लाख सहारे....इंदीवर साहब का लिखा हुआ ये गीत मेरा पसंदीदा है...और अद्भुत है ओ बी ओ मंच जहाँ ये चरितार्थ हो रहा अब तो मुश्किल ये आन पड़ी है कि चुना क्या जाये एक से बढ़ के एक सुझाव हैं आप सभी विभूतियों के और लालच भी हो रहा कि कैसे भी कर के सभी मतले शामिल कर लूँ। 
आदरणीय गिरिराज जी, आदरणीय सौरभ जी, आदरणीय नीलेश जी, आदरणीय अमीरुद्दीन जी अद्भुत सुझाव हैं आपके आप सभी को नमन करता हूँ। 
चूँकि मतले में कुछ पारिस्थितिक शय रात,हवाओं जैसा रखना चाहता हूँ इसलिए आदरणीय अमीरुद्दीन जी के सुझाव पे आप सभी माननीयों की राय जानना चाहता हूँ। 
सादर....
Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 8, 2025 at 8:26pm

आदरणीय जज़्बातों से लबरेज़ अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। मतले पर अच्छी चर्चा हो रही है, एक विकल्प और सही - 

किसे जगा के सुनाएँ उदास हैं कितने

सितारे, चाँद, हवाएँ उदास हैं कितने...

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 8, 2025 at 4:45pm

बिरह में किस को बताएं उदास हैं कितने 
किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने 
सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 7, 2025 at 10:40pm

आपने जो सुधार किया है, वह उचित है, भाई बृजेश जी। 

किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने
ख़मोश रात  बिताएं उदास  हैं कितने 

साथ ही, यह सोचने-विचारने के लिए कुछ और आयाम भी प्रशस्त करता दीख रहा है। जैसे, उला-सानी मिसरे को, देखिए, यदि जक्स्टापोज किया जाय -

खमोश पल ये बताएँ, उदास हैं कितने

मगर कहाँ ये सुनाएँ, उदास हैं कितने

अर्थात, इस पर काम करते रहें, जबतक कि सर्वमान्य मिसरे और आश्वस्तिकारी मतला हो नहीं जाता

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 7, 2025 at 8:42pm

अनुज बृजेश 

किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने
ख़मोश रात  बिताएं उदास  हैं कितने  ... ठीक लग रहा है , मुझे भी एक हल सूझ है , अगर ठीक लगे तो 

किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने
हमी को हम ही बताएं उदास हैं कितने   --- अगर जो आप कहना चाहते हैं उसके  करीब  लगे तो विचार कर सकते हैं 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 7, 2025 at 3:45pm

आदरणीय सौरभ सर ओ बी ओ का मेल वाकई में नहीं देखा माफ़ी चाहता हूँ

आदरणीय नीलेश जी, आ. गिरिराज जी ,आ. धामी  जी 

मतले को ऐसा कहें तो?

किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने
ख़मोश रात  बिताएं उदास  हैं कितने

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
8 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
14 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service