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इंतज़ार बस इंतज़ार.............

है प्रियवर,  तुम  कब  आओगे  भेजो  तुम  सन्देश 

थक  गई  मोरी  अँखियाँ अब  तो  भेजो  तुम  सन्देश 

भेजो  तुम  सन्देश  प्रिये  तो झपकूँ अपने  नैन 

राह  तकूँ मै हर  आहट पे  देखूँ  द्वारे  ओर

ना  जाने  क्यों  आज  भ्रमित हो  मेरा  मन  घबराये 

मेरा  मन  घबराये  प्रियवर क्यों  तुम  मुझको  बिसराए ?

अपने  मन  की  आकुलता  को  केसे  मैं  समझाऊँ ?

कैसे   मै  समझों  प्रिये  कि तुम  बिन  जीवन  सुना - सुना  है 

मेरी  पीड़ा  के  सागर  को  मथने  तुम  कब  आओगे  ?

इसी  प्रश्न के  उत्तर हेतु  तुमको  पाती  भेज  रही  I

है  प्रियवर  तुम कब  आओगे  तुम  कब  आओगे ......

                                                                                               मोनिका जैन "डॉली"

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Comment

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Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 3, 2012 at 12:27pm

भाव पूर्ण रचना पर बधाई स्वीकार  करें 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 3, 2012 at 10:19am

बहुत सुन्दर प्रयास है मोनिका जी, जिसके लिए आप बधाई की पात्र हैं. कृपया आदरणीय सौरभ जी की बात पर भी गौर फरमाएँ

.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 2, 2012 at 10:43pm

मोनिकाजी, इस रचना को गेय बनाया जा सकता था.  भाव और शब्द के साथ कहन-विधा भी एक तत्त्व है न !

भावपूर्ण रचना की प्रस्तुति हेतु बधाई.   शुभेच्छा.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 2, 2012 at 11:44am

सुन्दर भावों की प्रस्तुति मोनिका जी| आभार..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 2, 2012 at 11:35am

virah ki agan virah vedna ko prastut karti hui rachna bahut sundar.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 2, 2012 at 11:28am

थक  गई  मोरी  अँखियाँ अब  तो  भेजो  तुम  सन्देश 

sundar bhav, badhai


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 2, 2012 at 10:10am

मोनिका जी, दिल में उठ रहे भावनाओं को अनगढ़े रूप में जस की तस रख दी है, बढ़िया है, कविता की पहलु पर और कसने की जरुरत है, संभावनाएं आप में बहुत है , आप यूँ ही लिखती रहिये , बधाई इस प्रयास पर |

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