प्रति चरण ३२ अक्षर, १६-१६ पर दो विश्राम, इक्त्तीस्वां (३१ वाँ) दीर्घ, बत्तीसवां (३२ वाँ ) लघु
शारदा कृपा कर दो मुझको नादान जान
भरो खाली झोली माता ज्ञान का दो वरदान
मैं तेरा ध्यान कर के छंद की रचना करूँ
देश देश गायें सब भारत की बढे शान
छंद मेरे पढ़ें जो भी रस में वो भीग जाएँ
झूम झूम गायें ऐसे बना रहे मेरा मान
सुमिरन तो तेरा ही होता है निसदिन माँ
दीप खड़ा हाथ जोड़ उसको अब दो ज्ञान
========="दीप"==========
Comment
अप्रतिम ,अनुपम रूप घनाक्षरी
plz tell me ki kya ye jaruri hai ki isme ant me laghu or deergh varn ki koi badhyta hai?
आशीष भाई, घनाक्षरी एक वार्णिक छंद है जिसमे रचना के वर्ण ही गिने जाते हैं, मात्राएँ नहीं.
कृपया मेरी शंका का समाधान करें कि क्या यह अक्षर प्रधान छन्द है। क्या इसमे मात्राओं की गणना का कोई महत्व नही है। कृपया विज्ञजन शंका का समाधान करें।
सुन्दर रचना पर बधाई स्वीकार करें।
Sandip ji bahut khub
आदरणीय संदीप जी, सादर
सीखने का पर्याप्त आधार दिया , बधाई
भाई संदीप जी बहुत सुन्दर रूप घनाक्षरी रची है. कथ्य और शिल्प के लिहाज़ से उत्तम, थोडा सा गेयता की तरफ विशेष ध्यान दिया करें तो सोने पर सुहागा हो जाएगा. बहरहाल मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
बहुत बढ़िया संदीप भाई ! बधाई हो !
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