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वो एक बड़ा अफसर है. अफसर है तो जाहिर सी बात है शहर में रहता है. पिता एक साधारण से किसान है. खेती करते हैं, सो गाँव में रहते है. अफसर बेटा अपने परिवार में बहुत व्यस्त है इसलिए गाँव जाकर पिता का हाल-समाचार लेने का समय नहीं है. बेटे से मिले बहुत दिन हो गए तो पिता ने विचार किया शहर जाकर खुद ही उससे मिल आया जाये. शहर में बेटे के रहन सहन को देख कर पिता बहुत खुश हुवे. अगले दिन गाँव वापस आने का विचार था लेकिन पोते-पोती की जिद से और रुकना पड़ा. एक - दो दिन तो ठीक ठाक बीत गए. किन्तु फिर बेटे के अफसरी बीच में आने लग गयी. बेटा पिता को टोक देता - पिता जी आप इस तरह बात करेंगे तो मेरी क्या इज्जत रह जाएगी - किसी के सामने इस तरह बैठेंगे तो मेरी क्या इज्जत रह जाएगी - किसी के सामने इस तरहबिना कांटा-चम्मच के खायेंगे तो मेरी क्या इज्जत रह जाएगी - इस तरह से कपडे पहनेंगे तो लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे, कुछ तो मेरी इज्जत का ख्याल कीजिये - इस तरह कहीं भी किसी से भी इस तरह घुल मिल कर बात करने लग जाते हैं, लोग कहेंगे की इतने बड़े अफसर के पिता किससे बात कर रहा हा - भला लोग क्या कहेंगे. गोया यह की पिता का हर कार्यकलाप अफसर बेटे की अफसरी के बीच आने लगता और वो अपनी इज्जत की दुहाई देने लगता. गाँव में रहने वाले सीधे सरल किसान पिता को बेटे की अफसरी पर नाज तो है लिकिन उनके कार्य कलाप से बेटे की इज्जत कैसे चली जाएगी ये उनको समझ में नहीं आ रहा था. वो चुप चाप बेटे का मुह देखने लग जाते और बेटे की तल्खी बढ़ जाती. अंत में पिता ने कुछ निश्चय किया, अपने सामान का छोटा सा थैला उठाया, घर से बाहर निकल कर एक रिक्शे को को रुकवाया और अपने गाँव जाने वाली बस पकड़ने चल पड़े.

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Comment by Saurabh Pandey on June 21, 2012 at 11:58pm

काश पिता ने बेटे को बचपने में ही सही इज़्ज़त का मायना बता दिया होता तो आज उसे इतना कोफ़्त न हुआ होता.

अपने बेटे को पैसे की मशीन बना देना किसी पिता की जवानी के दुर्दिनों की भले ही मज़बूरियाँ रही होती हैं लेकिन उस मशीन की संवेदना के मर जाने का दुःख तब अधिक सालता है जब वो स्वयं उस पिता पर हावी हो जाती है.  समझ की छिछली गहराइयों में इज़्ज़त की नाव पैरती नहीं, दूरियाँ तय करना बहुत बड़ी बात है.

अच्छी कहानी है, आदरणीया नीलमजी.  सादर शुभकामनाएँ

Comment by Raj Tomar on June 21, 2012 at 11:06pm

बहुत ही कड़वा सच है ये. ऐसे लोगों की दुनिया में कमी नहीं है ..

Comment by AVINASH S BAGDE on June 21, 2012 at 3:46pm

saty mev jayate...ka ek vishay ho sakta hai...

nice one Neelam ji.

Comment by Yogi Saraswat on June 21, 2012 at 3:01pm

aaj ke jamaane ka sach dikhaati rachna ! bahut sateek aur yatharth lekhan

Comment by Albela Khatri on June 21, 2012 at 8:47am

खेद है
परन्तु ये सच है
ऐसा  होता है
___काश ! ऐसा न हो.........
__अनुपम आलेख के लिए बधाई आपको.........

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 20, 2012 at 9:09pm
आदरणीया नीलम जी जन्म दिन मुबारक हो प्रभु आप को सारी खुशियाँ और मन का सुकून दें ...जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 20, 2012 at 8:52pm
आदरणीया नीलम जी आज के हालात को सटीक दिखा पाया ये आप की लघु कथा ..दिल को  छू लेने वाला लेख ..काश  लोग इस अफसरी को अपने आफिस तक ही रहने दें पिता का प्यार अनूठा और अमूल्य होता है ..कुछ तो सम्हाला जा सकता है पर अधिक नहीं ...मन में ठेस कभी न लगने दें नहीं तो किस काम की अफसरी और बड़प्पन 
भ्रमर ५ 
Comment by Rekha Joshi on June 20, 2012 at 7:37pm

नीलम जी ,बिलकुल सही लिखा है आपने,आपसी रिश्तों के बीच झूठी शान -शौकत ,बढ़िया लेखन ,बधाई 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 20, 2012 at 1:49pm

आदरणीय नीलम जी, सादर 

बहुत सही फरमाना आपका 

मिट रहा रिश्ता बेटे बाप का 

चकाचोंध में मशहूर हो गए 

नाजुक रिश्ते भीड़ में खो गए 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 20, 2012 at 1:19pm

नीलम जी विलकुल आज की वास्तविक स्थिति का वर्णन करती हुई लघु कथा.....बहुत सुंदर । बहुत बहुत बधाइयाँ !

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