For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शीशे की तरह दिल में, इक बात साफ़ है,
ये दिल दिल्लगी के, बिलकुल खिलाफ है,


खता इतनी थी कि उसने, मज़बूरी नहीं बताई,
फिर भी उसकी गलती, तहे-दिल से माफ़ है,

लगने लगी है सर्दी, अश्कों में भीगने से,
इतना हल्का हो गया, तन का लिहाफ है,

हर आस मर चुकी है, बस सांस ऑन है,
और दिल भी जल-२ के, बुझ हुआ ऑफ है,

मौत है कि बक्श देती है, मुझको बार-बार,
तेरे बाद जिंदगी में, अब जीने का खौफ है,

Views: 488

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 14, 2012 at 1:58pm

मित्र संदीप जी ,
मेरा मकसद आपको पीड़ा पहुँचाने का कतई नहीं था. मैंने आपके हृदय को आहत किया क्षमा प्राथी हूँ.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 13, 2012 at 3:59pm

प्रिय अरुण जी, वास्तव में सभी शेर दिल से ही कहे हैं आपने ..........जिसके लिए दिली मुबारकबाद स्वीकारें......परन्तु काम सिर्फ दिल से ही नहीं चलता अपितु दिलोदिमाग से ही चलता है .....अतः गज़ल में काफिया रदीफ़ के निर्वहन के साथ साथ बह्र का विन्यास, तनाफुर, तकाबुले रदीफ़, इता, सिनाद, शुतुर्गुर्बा आदि  देखना भी बहुत आवश्यक है ! जिसका पालन आपकी इस गज़ल में नहीं हो सका है ....अधिक जानकारी के लिए ओ बी ओ पर आदरणीय तिलकराज जी की गज़ल की कक्षा में प्रवेश लें.....

बचपन में पढ़ा हुआ एक दोहा आपको समर्पित है .....

मीठी वाणी बोलिए मन का आपा खोय.

औरन को शीतल करे आपहुं  शीतल होय..

सस्नेह

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 13, 2012 at 11:11am

मुझे लगता था मित्र कह देना ही काफी होता है
ये बताने के लिए की दिल है या नहीं
बहरहाल आपको मेरी शुभकामनाएं दिल से लिखते रहिये
रही दिमाग की बात तो वो तो शारदे की कृपा से कितना है ये आपको बताने की आवश्यकता नहीं है
मुझे आपने अपशब्द कहे हैं वो आप कभी वापस नहीं ले सकेंगे
किन्तु समय बलवान है आपकी गलतियाँ आपको स्वतः जबाब दे देंगी की गलती तो गलती होती है
छोटी अपितु बड़ी नहीं
और हाँ दिल में आग भर के भाई जैसे शब्दों का अपमान ना करें
हाँ मुझसे जो गलती हुई है आपको मित्र कह देने की उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 13, 2012 at 11:00am

संदीप भाई,
लगता है मुखमंडल में आग रखते हो,
सीने में दिल नहीं, दिमाग रखते हो.

माफ़ कीजिये संदीप जी मुझे महसूस हो रहा है की आपके पास दिल नहीं दिमाग है, क्यूंकि त्रुटियाँ दिल में नहीं दिमाग में होती है. मन तो सदैव शुद्ध रहता है कभी मन से पढियेगा अच्छा लगेगा. क्यूंकि मैं दिल से लिखता हूँ दिमाग से नहीं.

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 13, 2012 at 10:55am

आदरणीया रेखा जी और आदरणीय भ्रमर जी आपको मेरी ये ग़ज़ल पसंद आई. तहे दिल से शुक्रिया बस अपना आशीर्वाद यूँ ही बनाये रखिये मुझपर.

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 12, 2012 at 10:10pm

खता इतनी थी कि उसने, मज़बूरी नहीं बताई,
फिर भी उसकी गलती, तहे-दिल से माफ़ है,

हाँ अनंत जी ऐसे ही प्यार में  सौ खून माफ़ ...सुन्दर गजल ..हिंदी अंग्रेजी का तड़का .... और दिल भी जल-२ के, बुझा  हुआ ऑफ है,  

भ्रमर ५  ..

 

Comment by Rekha Joshi on July 12, 2012 at 8:50pm

मौत है कि बक्श देती है, मुझको बार-बार,
तेरे बाद जिंदगी में, अब जीने का खौफ है,,क्या बात है अरुण जी ,बहुत खुबसूरत गजल ,बधाई 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2012 at 8:46pm

इस ग़ज़ल में बहुत कमियाँ हैं मित्रवर
मैं समीक्षा करने में स्वयं अभी असमर्थ हूँ सीख रहा हूँ
गुरुजन इसकी समीक्षा अवश्य करेंगे समय मिलते ही
मेरी और से बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 12, 2012 at 4:14pm

अलबेला SIR आपको पसंद आई, शुक्रिया

Comment by Albela Khatri on July 12, 2012 at 3:00pm

bahut pyari aur  umda gazal kahi  aapne

waah !

achha laga baanch kar

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
7 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
8 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
8 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service