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घने जंगल
वह भटक गया
साथी न कोई
आगे बढ़ता रहा
ढ़ूंढ़ते पथ
छटपटाता रहा
सूझा न राह
वह लगाया टेर
देव हे देव
सहाय करो मेरी
दिव्य प्रकाश
प्रकाशित जंगल
प्रकटा देव
किया वह वंदन
मानव है तू ?
देव करे सवाल
उत्तर तो दो
मानवता कहां है ?
महानतम
मैने बनाया तुझे
सृष्टि रक्षक
मत बन भक्षक
प्राणी जगत
सभी रचना मेरी
सिरमौर तू
मुखिया मुख जैसा
पोषण कर सदा ।

...........................

मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil.Joshi on November 14, 2013 at 5:01am

आपके चोका ने तो चौका मार दिया है आ0 रमेश भाई.....बहुत बहुत बधाई....

Comment by Amod Kumar Srivastava on November 13, 2013 at 10:06pm

सुंदर अभिव्यक्ति ...... आ0 रमेश कुमार चौहान जी.... 

Comment by बृजेश नीरज on November 13, 2013 at 9:10pm

अच्छा प्रयास! आपको हार्दिक बधाई!

'टेर' और 'राह' स्त्रीलिंग शब्द हैं.

'वह लगाया टेर' की जगह मेरे विचार से 'वह लगाता टेर' अधिक उपयुक्त होगा.

सादर!

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 13, 2013 at 4:58pm

आदरणीय रमेश भाई चोका कभी लिखा नहीं किन्तु पढ़कर अच्छा लगा बधाई लें

Comment by रमेश कुमार चौहान on November 12, 2013 at 4:26pm

आदरणीय भंडारीजी, आदरणीय सज्जूजी, आदरणीया वेदिकाजी आपसभी का रचनो को मान देने के लिये सादर साधुवाद

Comment by रमेश कुमार चौहान on November 12, 2013 at 4:25pm

आदरणीय श्रीवास्तव जी आपके उपयोगी सलाह के लिये सादर धन्यवाद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 12, 2013 at 2:00pm

आदरणीय रमेश भाई , लाजवाब चोका के लिये बधाई !!!!!!

Comment by वेदिका on November 12, 2013 at 1:35pm

बढ़िया प्रयास है|

सभी रचना मेरी  // मे व्याकरण दोष दिख रहा है मुझे| शेष इस विधा की जानकारी नहीं मुझे| बहरहाल बधाई लीजिये!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 12, 2013 at 1:20pm

//देव करे सवाल
उत्तर तो दो
मानवता कहां है ?// बहुत बढ़िया

भाई रमेश जी आपकी रचना के भाव अच्छें हैं, बधाई। इस विधा के शिल्प के बारे में मेरी जानकारी शून्य है इसलिये इसपे कुछ नही कह सकता। आपको शुभकामनायें

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 12, 2013 at 12:09pm

यह चोका  बाउंड्री पर कैच  हो सकता है  I  सेफ  चोका मारिये  I

 

प्रयास सराहनीय है  I

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