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दुर्मिल सवैया !! मां शारदे !!

दुर्मिल सवैया !! मां शारदे !!

सहसा प्रतिभा समभाष करें, तुम आदि-अनादि अनन्त गुणी।
तप से, वर से नित धन्य करें, कवि-लेखक संग महन्त गुणी।।
गुण-दोष समान विचार रखें, नित नूतन कल्प भनन्त गुणी।
भव सागर में जब याद करें, पतवार लिए तुम सन्त गुणी।।

के0पी0सत्यम मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 14, 2014 at 3:59pm

वर्णिक छंदों की रचना वर्णों के समूह और उनकी आवृतियों के आधार पर होती है. लेकिन शब्द भी ऐसे रखे जायें कि उनकी संप्रषणीयता प्रभावी हो.

इस प्रयास हेतु धन्यवाद.

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 9, 2014 at 12:13pm

आदरणीय केवल भाई जी माँ शारदे को नमन, आपको हृदयतल से ढेरों ढेरों बधाइयाँ माँ शारदे को समर्पित बेहद सुन्दर भावपूर्ण सवैया रचा है आपने. जय हो

Comment by AVINASH S BAGDE on January 7, 2014 at 10:51pm

तप से, वर से नित धन्य करें, कवि-लेखक संग महन्त गुणी।।...बढ़िया रचना ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on January 7, 2014 at 9:57pm

माँ शारद के चरणों में समर्पित इस दुर्मिल सवैया ने भाव-विभोर कर दिया. बधाइयाँ......

भनंत शब्द मेरे  लिए बिलकुल ही नया शब्द है, कृपया इसका अर्थ बताने का कष्ट करें............


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 7, 2014 at 9:28pm

सच कहूँ सही आनंद आपकी सनातनी छंदबद्ध रचना में ही आता है, आदरणीय केवल भाई इस खूबसूरत रचना के लिये दिली दाद कुबूल करेंौ 

Comment by coontee mukerji on January 7, 2014 at 6:21pm

केवल भाई अपकी रचनाएँ दुर्लभ हो गयी है....आज देखकर मन खुश हो गया.. अच्छी रचना के लिये आपको बहुत बहुत बधाई.

Comment by Shyam Narain Verma on January 7, 2014 at 3:13pm
बढ़िया रचना पर हार्दिक बधाइयाँ...

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