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रोक लो तूफ़ान चिंगारी भड़क फ़िर जाएँगी
नफ़रती लपटें जमीं से अर्श तक फ़िर जाएँगी
इन दरारों पे जरा आँचल बिछा कर छाँव दो
आंच पाकर बैर की वरना दहक फ़िर जाएँगी
अम्न- ओ-इंसानियत से चूर थी गलियाँ यहाँ
देख वो अपने उसूलों से भटक फ़िर जाएँगी
खाई जाती थी कसम जो दोस्ती के दरमियाँ
उस वफ़ा की पाक़ मीनारें चटक फ़िर जाएँगी
फिर झडेंगे शाखों से पत्ते ख़जां आये बिना
बिजलियाँ जब उन दरख्तों पे कड़क फ़िर जाएँगी
यास में ग़म दर्द की ख़ुर्शीद ढक ता जाएगा
चैन की खामोश दीवारें दरक फ़िर जाएँगी
जल उठेगा ताज सुलगेगा हिमालय का बदन
चिन्दियाँ इतिहास की, रूहों तलक फ़िर जाएँगी
ख़त्म हो गर ‘राज’ इनकी दुश्मनी की फितरतें
ये फ़सुर्दा क्यारियाँ दिल की महक फिर जाएँगी
अर्श=आकाश
ख़जां=पतझड़
ख़ुर्शीद=सूर्य
यास=धुंध
फ़सुर्दा=मुरझाई हुई
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
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Comment
आ० अन्नापूर्णा बाजपेयी जी आपकी सराहना और इस होंसलाफ्जाई का तहे दिल से शुक्रिया.
सचिनदेव जी, आपको ग़ज़ल पसंद आई इस शेर ने आपको प्रभावित किया मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से शुक्रिया आपका.
आ० गिरिराज भंडारी जी ग़ज़ल के अशआर आपको पसंद आयें तहे दिल से आभारी हूँ मेरा लिखना सार्थक हुआ.
अम्न- ओ-इंसानियत से चूर थी गलियाँ यहाँ
देख वो अपने उसूलों से भटक फ़िर जाएँगी
खाई जाती थी कसम जो दोस्ती के दरमियाँ
उस वफ़ा की पाक़ मीनारें चटक फ़िर जाएँगी.................. बहुत खूब आ0 राजेश कुमारी जी आपकी गजल तो दिल ले गई , बधाई आपको ।
जल उठेगा ताज सुलगेगा हिमालय का बदन
चिन्दियाँ इतिहास की, रूहों तलक फ़िर जाएँगी............. बहुत खूब शेर आदरणीय राजेश कुमारी जी, एक बेहतरीन गजल के लिए हार्दिक बधाई आपको !
आदरणीया राजेश जी , बहुत उम्दा गज़ल कही है , आपको दिली बधाइयाँ !!
रोक लो तूफ़ान चिंगारी भड़क फ़िर जाएँगी
नफ़रती लपटें जमीं से अर्श तक फ़िर जाएँगी
इन दरारों पे जरा आँचल बिछा कर छाँव दो
आंच पाकर बैर की वरना दहक फ़िर जाएँगी
ख़त्म हो गर ‘राज’ इनकी दुश्मनी की फितरतें
ये फ़सुर्दा क्यारियाँ दिल की महक फिर जाएँगी
तीनो अशाअर के लिये अनेको बधाइयाँ ॥
बहुत- बहुत शुक्रिया इमरान भाई जी, बह्र में गड़बड़ हो रही थी आपने सही ध्यान दिलाया ,इसको दुरुस्त किया है |
प्रिय गीतिका ओबीओ पर आपका पुनः स्वागत है इस अंतराल में आपको बहुत मिस किया.आपको ग़ज़ल का ये अशआर प्रभाव शाली लगा ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ|
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