For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

22-22-22 / 22-22-2 / 22-22-22

 

मस्जिद न शिवाला है,

दिल में रहता तू,

तेरा घर भी निराला है.

 

तू मन का दरपन है

बस एक उजाले से,

सूरज भी रौशन है.

 

देखों मन का आँगन,

बादल आँखों में,

फिर खूब झरा सावन.

 

लो छूटा अपना घर,

एक मुसाफिर हूँ,

लम्बा है आज सफ़र.

 

सूरज जब ढल जाए,

मन अँधियारा हो,

तब दीपक जल जाए.

 

परबत पर बादल है,

दरिया बहता है,

हरियाली आँचल है.

 

किस्मत का लेखा है,

पापी को हमने,

बस रोते देखा है.

 

यारां क्यूं  रोता है ?

फल वैसा मिलता,

जो जैसा  बोता है.

 

अब रोती तितली है,

फूलों से रिश्ता,

ये डोरी पतली है.

 

सावन का महिना है,

बादल, बरखा है,

पर यार कहीं ना है.

 

ये सूना सा घर है,

जब से यार गए,

रसता देखें दर है

 

मन सूना बिस्तर है,

सिलवट ना जिसमें,

दिल  कैसी चादर है.

 

ये लोग नहीं अपने,

लोग सियासी है,

ये तोड़ेंगे सपने.

 

-------------------------------------------------------

(मौलिक व अप्रकाशित)  - मिथिलेश वामनकर 

-------------------------------------------------------

 

माहिया

22-22-22  - फैलुन-फैलुन-फैलुन 

22-22-2    - फैलुन-फैलुन-फ़ा

22-22-22  - फैलुन-फैलुन-फैलुन

Views: 701

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 11, 2014 at 10:16pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी आपने प्रयास को पसंद किया तहे दिल से शुक्रिया। आपने सही कहा । मैंने एक छूट लेते हुए "तेरा घर भि निराला है" के वज़्न में कहा है। निवेदन सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 11, 2014 at 10:13pm
आदरणीय शिज्जु जी धन्यवाद आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 11, 2014 at 10:02pm

सभी माहिया खूबसूरत बने हैं जिसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई 

पहले माहिया की अंतिम पंक्ति में मात्राएँ १५ हो रही हैं 

बाकी सभी माहिया शानदार लगे 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 11, 2014 at 9:41pm

आदरणीय मिथिलेश सरस प्रवाहमयी प्रस्तुति के लिये बहुत बहुत बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 10, 2014 at 10:56pm
बहुत बहुत धन्यवाद सलीम भाई। प्रसिद्ध माहिया जो जगजीत सिंह जी एवम् चित्रा सिंह जी द्वारा गाया गया "कोठे ते आ माहिया" जरूर सुनियेगा जो यूट्यूब पर उपलब्ध है
Comment by saalim sheikh on December 10, 2014 at 10:19pm

बहुत ही सुन्दर।
माहिया से परिचित करने के लिए धन्यवाद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 10, 2014 at 9:45pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी सर आपको माहिये पसंद आये बहुत बहुत आभार धन्यवाद

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 10, 2014 at 8:17pm

आदरणीय मिथिलेश भाई , मुझे तो आपने एक नई विधा से परिचित कर दिया , बहुत सुंदर !  बहुत बधाइयाँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 9, 2014 at 8:37pm
आदरणीय डॉ विजय जी आपका धन्यवाद आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 9, 2014 at 8:36pm
आदरणीय श्याम वर्मा जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद आभार।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
5 minutes ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
33 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
1 hour ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
1 hour ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
3 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
4 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
13 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
13 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service