For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल: कोई पत्थर और कोई आईने ले के(भुवन निस्तेज)

कोई पत्थर और कोई आईने ले के
आ रहा हर एक अपने दायरे ले के

यूँ चले हो रात को दीपक बुझे ले के
खुद अँधेरा भी परेशाँ है इसे ले के

बस ठिठुरते रह गए दरवाजे बाहर ख्वाब
ये सुबह आई है कितने रतजगे ले के

जिंदगानी तंग गलियां भी न दे पाई
मौत हाजिर हो गई है हाइवे ले के

आपका आना तो कल ही सुर्ख़ियों में था
आज फिर अख़बार आया हादसे ले के

साकिया यूँ बेरुखी से मार मत हमको
रिन्द जायेगा कहाँ ये प्यास ले ले के

कुछ न कुछ देकर उन्हें खुश कर रहे थे लोग
हमने उनको खुश किया कुछ मशविरे ले के

गांव की पगडंडियों में खो गया हूँ मैं
माज़ी की यादों के मीठे ज़ायके ले के

लग रहे हैं पांव भी ये बोझ अब उनको
जो चले ही थे इरादे अनमने ले के

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 863

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by भुवन निस्तेज on January 24, 2015 at 9:17am
आदरणीय डॉ आशुतोष साहब बेहद धन्यवाद....
Comment by भुवन निस्तेज on January 24, 2015 at 9:14am
आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई बहुत बहुत आभार....
Comment by भुवन निस्तेज on January 24, 2015 at 9:13am
आदरणीय मुकेश श्रीवास्तव साहब धन्यवाद....
Comment by भुवन निस्तेज on January 24, 2015 at 9:11am
मेरे प्रयास को सराहने हेतु आभार आदरणीय मदन मोहन सक्सेना साहब....
Comment by भुवन निस्तेज on January 21, 2015 at 12:31pm
आदरणीय भाई गुमनाम पिथौरागढ़ी बहुत बहुत आभार....
Comment by Krishnasingh Pela on January 21, 2015 at 9:07am
पूरी ग़ज़ल उम्दा है ।
और मतला -
कोई पत्थर और कोई आईने ले के
आ रहा हर एक अपने दायरे ले के

मतला तो कहना ही क्या ! आ रहा हर एक अपने दायरे ले के । वाक़ई ! हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by भुवन निस्तेज on January 21, 2015 at 8:42am
आदरणीय हरी प्रकाश साहब बेहद शुक्रिया, स्नेह बना रहे....
Comment by भुवन निस्तेज on January 21, 2015 at 8:40am
आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहब, मेरे प्रयास को सराहने हेतु धन्यवाद...!
Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 19, 2015 at 1:16pm

आदरणीय भुवन जी इस बेहतरी ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2015 at 12:09pm

यूँ न रातों को चलें दीपक बुझे ले के
खुद अँधेरा भी परेशाँ है इसे ले के.... क्या खूब कहा ....

बहुत  बहुत बधाई आ० भुवन भाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
47 minutes ago
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
17 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service