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यादों के दरीचों में .....

यादों के दरीचों में .....

सच, तुम्हारी कसम
उस वक्त तुम बहुत याद आये थे
जब सावन की पहली बूँद
मेरी ज़ुल्फ़ों से झगड़ा करके
मेरे रुखसारों पर
फिसलने की ज़िद करने लगी
सबा को भी उस वक्त
मेरी ज़ुल्फ़ों से
छेड़खानी करने की ज़िद थी
इस छेड़खानी में कभी बूंदें
रेतीली ज़मीन पर गिर कर
अपना अस्तित्व खो देती थी
तो कभी पलकों की चिलमन पर
सज के बैठ जाती थी
कभी हौले से
रुख़्सार पर फिसलती हुई
मेरी ठोडी पर
किसी को प्यार के निमंत्रण का
आग्रह कर रुक जाती थी
ऎसे में सच ,
उफ्फ तुम्हारा वो स्पर्श
वो ठोडी पर रुकी बूँद को
उंगली के पोर पर लेकर
अपने अधरों पर उसे पनाह देना
आज भी मेरे जिस्म में
सिहरन भर देता है
मैं आज तक
उसी मखमली अहसास से बंधी हूँ
हर पल
बादलों की राह तकती हूँ
कि शायद फिर कोई बूँद
मेरे रुखसारों पे
फिसलने की ज़िद करे
और तुम
चुपके से मेरे अहसास में
अपने स्पर्श का रंग भर जाओ
सच मानो
जब जब आकाश में
बादल छाते हैं
तुम याद बहुत आते हो
मेरी यादों के दरीचों में
अपना अहसास छोड़ जाते हो

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on September 8, 2015 at 12:12pm

आदरणीय   shree suneel   जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by shree suneel on September 7, 2015 at 7:08pm
भावनाओं से भरी इस ख़ूबसूरत कविता के लिए बहुत-बहुत बधाई आपको आदरणीय. कुछ ख़ास लफ्ज़ो नें तो भाव को और गहराई दी है.
जब जब आकाश में
बादल छाते हैं
तुम याद बहुत आते हो. ... जी हाँ

और बादलों के साये में भी आदरणीय...
पुनः बधाई इस प्रस्तुति पर. सादर.
Comment by Sushil Sarna on September 7, 2015 at 7:06pm

आदरणीय  गिरिराज भंडारी  जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 6, 2015 at 9:11pm

आदरनीय सुशील भाई , विरह मे यादों को सुन्दर शब्द दिये है ! आपको दिली बधाइयाँ ।

Comment by Sushil Sarna on September 6, 2015 at 8:46pm

आदरणीय  मनोज  जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on September 6, 2015 at 8:45pm

आदरणीया  प्रतिभा जी रचना पर आपकी मनभावन  प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on September 6, 2015 at 8:44pm

आदरणीय मिथिलेश जी रचना पर आपकी मन मुदित करने वाली प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। 

Comment by मनोज अहसास on September 6, 2015 at 10:41am
बहुत बहुत बहुत खूबसूरत
सादर बधाई
Comment by pratibha pande on September 6, 2015 at 9:53am

बादलों की राह तकती हूँ 
कि शायद फिर कोई बूँद 
मेरे रुखसारों पे 
फिसलने की ज़िद करे

बहुत ही खूबसूरत रचना आदरणीय सुशील जी ,बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 5, 2015 at 9:03pm

आदरणीय सुशील सरना सर बहुत ही भावपूर्ण रचना की प्रस्तुति हुई है. इस प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई 

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