For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - जो बच्चों में अभी बच्चा हुआ है ( गिरिराज भंडारी )

1222    1222   122 

जो भारी ही रहा, बैठा हुआ है

उड़ा वो ही जो कुछ हल्का हुआ है

 

ग़लत कहते हैं जो कहते हैं तुमसे

यक़ीं मरकर भी क्या ज़िन्दा हुआ है ?

 

ठहर जा गर्दिशे अय्याम दर पर

ये मंज़र दर्द का देखा हुआ है

 

फटेगा एक दिन बादल के जैसे

जो आँसू आपने रोका हुआ है

 

बुढ़ापा फिर न याद आ जाये उसको

जो बच्चों में अभी बच्चा हुआ है

 

न जाने कौन धोखे बाज निकले

सभी को है यक़ीं , धोखा हुआ है

नहीं समझा सकोगे धर्म अब तुम
सभी का अब ख़ुदा पैसा हुआ है

ज़रा दड़बे से बाहर आयें , देखें
मुझे पूछें नहीं क्या क्या हुआ है

 

ख़बरची एक व्यापारी है, जिसने

ख़बर नुक्सान का रोका हुआ है

********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 748

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 2, 2016 at 9:54pm

आदरणीय श्री सुनील भाई , गज़ल पर उपस्थिति और उत्साह वर्धन के लिये आपका  हृदय से आभार ।

Comment by shree suneel on June 2, 2016 at 9:26pm
बहुत ख़ूब.. उम्दा ग़ज़ल.. संजीदा अशआर.. हार्दिक बधाई आपको इस उम्दा ग़ज़ल के लिए आदरणीय गिरिराज सर जी. सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 2, 2016 at 8:18pm

आदरणीय सुशील भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।

Comment by Sushil Sarna on June 2, 2016 at 6:48pm

नहीं समझा सकोगे धर्म अब तुम
सभी का अब ख़ुदा पैसा हुआ है

वाह आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब बहुत ही दिलकश अशआर कहे हैं आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 2, 2016 at 6:20pm

आदरणीया कल्पना जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 2, 2016 at 6:19pm

आदरनीया कांता जी , गज़ल की सराहना कर उत्साहवर्धन करने के लिये आपका  हृदय से आभार ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 2, 2016 at 5:22pm

ग़लत कहते हैं जो कहते हैं तुमसे

यक़ीं मरकर भी क्या ज़िन्दा हुआ है ?

 

ठहर जा गर्दिशे अय्याम दर पर

ये मंज़र दर्द का देखा हुआ है

 

फटेगा एक दिन बादल के जैसे

जो आँसू आपने रोका हुआ है

 

बुढ़ापा फिर न याद आ जाये उसको

जो बच्चों में अभी बच्चा हुआ है

 

न जाने कौन धोखे बाज निकले

सभी को है यक़ीं , धोखा हुआ है

बहुत खूब आदरणीय | बहुत बहुत बधाई सर |

Comment by kanta roy on June 1, 2016 at 9:43pm
ग़लत कहते हैं जो कहते हैं तुमसे
यक़ीं मरकर भी क्या ज़िन्दा हुआ है ?---- वाह ! जिंदगी के कठोर हालातों से निकल कर आये है आपके सभी अशआर गजल के आदरणीय गिरीराज जी । पढ़कर सोचने पर मजबूर हुई , क्या वाकई में हालात ऐसे हो गये है ! हमेशा की तरह शानदार गजल कही है आपने । बहुत बहुत बधाई आपको ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 31, 2016 at 8:51am

आदरणीय बैजनाथ भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on May 30, 2016 at 10:19pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी  साहेब................वाह वाह .............बहुत खूब ...............नमन आपको 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service