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हरी रंगत गुलाबी सुर्खरूं चेहरा मचल जाए ।
मेरी महफ़िल में आ जाओ मिरा रुतबा बदल जाए ।।

नजाकत से भरी नजरों से छलके जाम है तेरे ।
अंधेरी रात किस्मत में जरा सूरज निकल जाए ।।

बड़ी मासूमियत से कत्ल करने का हुनर तुझमे ।
मेरे कातिल चला शमसीर तेरा दिल बहल जाए ।।

हमारी हर कलम तो सिर्फ तेरी जीत लिखती है ।
तेरी जुल्फों के साये में चलो लिक्खी गजल जाए ।।

खुदा महफूज रक्खे उन रकीबों के नजारों से ।
कहीं ये वक्त से पहले न तेरा हुस्न ढल जाए ।।

बड़ी उम्मीद से आता तेरी दहलीज पर अक्सर ।
है परवाने का ये मकसद शमा के साथ जल जाए ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी
अप्रकाशित मौलिक

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 12, 2016 at 9:58pm

बहुत  बढ़िया ग़ज़ल हुई आद० नवीन मणि जी बहुत बहुत बधाई लीजिये .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 23, 2016 at 10:54am

आदरणीय नवीन भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है , दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें । बहर लिखना न भूला करें , ये यहाँ की परम्परा है ।

Comment by Samar kabeer on August 20, 2016 at 10:05am
ग़ज़ल की कक्षा 'समूह'में जाकर देखिये,किसी भी तरह की परेशानी के लिये प्रधान संपादक महोदय से बात कीजिये, वो इसका हल बता देंगे,उर्दू में प्रतिक्रया देने से परहेज़ करें,क्योंकि दूसरे सदस्य नहीं पढ़ पाएंगे ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on August 20, 2016 at 12:37am
आदरणीय गोपाल सर सादर नमन
Comment by Naveen Mani Tripathi on August 20, 2016 at 12:35am
आदरणीय कबीर साहब , उर्दू जो भी सीखा हूँ बिना गुरु के सीखा हूँ । ओबीओ का मोबाइल वर्जिन सन्तोष जनक नही है टाइप करते समय पट की स्थिति पार्श्व में होती है इसलिए पट पर क्या लिख उठा दिखाई ही नही पड़ता । उर्दू कमेंट को मिटाना चाह रहा था परंतु इसके चक्कर में आप द्वारा की हुई अमूल्य टिप्पणी ही मिट गई । दोबारा मिटाने की हिम्मत इसलिए नही कर सका कि कही ऐसा न हो जाए कि मेरी पोस्ट ही मिट जाए । आपके टिप्पणी से मुझे हौसला मिला है इसलिए अपनी टूटी फूटी उर्दू में ही आपको धन्यवाद देता रहूंगा । ग़ज़लो की कक्षा कहाँ पढ़ने को मिलेगी कृपया निर्देशित करें ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 19, 2016 at 6:58pm

गजल के प्रति आपका उत्साह देख फख्र से कह सकता हूँ कानपुर  चैप्टर में एक मणि है वह भी नवीन . है

Comment by Samar kabeer on August 19, 2016 at 5:55pm
आपको उर्दू लिखते देख बहुत ख़ुशी हुई,जनाब 'जीम'से लिखें,'ज़ाल'से नहीं इसी तरह साहिब ,'सुवाद,अलिफ़,बड़ी 'ह' से लिखा जाता है,ख़ैर
बह्र वग़ैरा की जानकारी के लिये ओ बी ओ पर ग़ज़ल की कक्षा का लाभ उठाएं ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on August 19, 2016 at 5:12pm
Bhai manoj ji shukriya
Comment by Naveen Mani Tripathi on August 19, 2016 at 5:10pm
Kabeer sir kshma keejiyega mobile par comment karte samay galti se aapka comment hi delete ho gaya
Comment by Naveen Mani Tripathi on August 19, 2016 at 5:07pm
aadarneey kabeer sahab sadar nmn

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