For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : उस्तरा हमने दिया है बंदरों के हाथ में

बह्र : 2122 2122 2122 212

 

आदमी की ज़िन्दगी है दफ़्तरों के हाथ में

और दफ़्तर जा फँसे हैं अजगरों के हाथ में

 

आइना जब से लगा है पत्थरों के हाथ में

प्रश्न सारे खेलते हैं उत्तरों के हाथ में

 

जोड़ लूँ रिश्तों के धागे रब मुझे भी बख़्श दे

वो कला तूने जो दी है बुनकरों के हाथ में

 

छोड़िये कपड़े, बदन पर बच न पायेगी त्वचा
उस्तरा हमने दिया है बंदरों के हाथ में

 

ख़ून पीना है ज़रूरत मैं तो ये भी मान लूँ

पर हज़ारों वायरस हैं मच्छरों के हाथ में

 

काट दो जो हैं असहमत शोर है चारों तरफ

आदमी अब आ गया है ख़ंजरों के हाथ में

-----------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 698

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 12, 2016 at 11:22pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गिरिराज जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 12, 2016 at 11:21pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय विजय निकोर जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 12, 2016 at 11:21pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय महेंद्र कुमार जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 12, 2016 at 11:20pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय गोपाल नारायन जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 6, 2016 at 11:03am

बहुत लाजवाब गज़ल कही , आदरनीय धर्मेन्द्र भाई , दिली दाद स्वीकार करें ।

Comment by vijay nikore on December 6, 2016 at 7:31am

बहुत ही खूबसूरत गज़ल लिखते है आप। बधाई।

Comment by Mahendra Kumar on December 5, 2016 at 7:51pm
बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय धर्मेन्द्र जी। मेरी तरफ से दिली बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 5, 2016 at 2:22pm

आदमी की ज़िन्दगी है दफ़्तरों के हाथ में

और दफ़्तर जा फँसे हैं अजगरों के हाथ में--------क्या खूब कहा आ० धर्मेद्र जी 

 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 4, 2016 at 1:11pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुरेंद्र कुमार वर्मा जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 4, 2016 at 1:11pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर साहब

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Gurpreet Singh jammu replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"मुशायरे की अच्छी शुरुआत करने के लिए बहुत बधाई आदरणीय जयहिंद रामपुरी जी। बदलना ज़िन्दगी की है…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी, पोस्ट पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"पगों  के  कंटकों  से  याद  आयासफर कब मंजिलों से याद आया।१।*हमें …"
10 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय नीलेश जी सादर अभिवादन आपका बहुत शुक्रिया आपने वक़्त निकाला मतला   उड़ने की ख़्वाहिशों…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"उन्हें जो आँधियों से याद आया मुझे वो शोरिशों से याद आया अभी ज़िंदा हैं मेरी हसरतें भी तुम्हारी…"
11 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. शिज्जू भाई,,, मुझे तो स्कॉच और भजिये याद आए... बाकी सब मिथ्याचार है. 😁😁😁😁😁"
13 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तुम्हें अठखेलियों से याद आया मुझे कुछ तितलियों से याद आया  टपकने जा रही है छत वो…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय दयाराम जी मुशायरे में सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई आपको"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय निलेश नूर जीआपको बारिशों से जाने क्या-क्या याद आ गया। चाय, काग़ज़ की कश्ती, बदन की कसमसाहट…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, मुशायरे के आग़ाज़ के लिए हार्दिक बधाई, शेष आदरणीय नीलेश 'नूर'…"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"ग़ज़ल — 1222 1222 122 मुझे वो झुग्गियों से याद आयाउसे कुछ आँधियों से याद आया बहुत कमजोर…"
15 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"अभी समर सर द्वारा व्हाट्स एप पर संज्ञान में लाया गया कि अहद की मात्रा 21 होती है अत: उस मिसरे को…"
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service