For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल.... अजीब मंजर है बेखुदी का

121 22 121 22 121 22 121 22

न वक्त का कुछ पता ठिकाना न रात मेरी गुज़र रही है ।
अजीब मंजर है बेखुदी का , अजीब मेरी सहर रही है ।।

ग़ज़ल के मिसरों में गुनगुना के , जो दर्द लब से बयां हुआ था ।
हवा चली जो खिलाफ मेरे , जुबाँ वो खुद से मुकर रही है ।।

है जख़्म अबतक हरा हरा ये , तेरी नज़र का सलाम क्या लूँ ।
तेरी अदा हो तुझे मुबारक , नज़र से मेरे उतर रही है ।।

मिरे सुकूँ को तबाह करके , गुरूर इतना तुझे हुआ क्यूँ ।
तुझे पता है तेरी हिमाकत , सवाल बनकर अखर रही है ।।

न वस्ल को तुम भुला सकी हो, न हिज्र को मैं भुला ही पाया ।
यहाँ रकीबों की वादियों में , तेरी ही खुशबू बिखर रही है ।।

हमारे दिल में हमी से पर्दा , गुनाह कुछ तो छुपा गई हो ।
है दिल का कोई नया मसीहा , तू जिसके दम पे निखर रही है ।।

किसी तबस्सुम की दास्ताँ पे , फ़ना हुआ है गुमान जिसका ।
है कत्ल खाने में जश्न इसका, कज़ा की महफ़िल गुजर रही है ।।

हुजूर चिलमन से देखते हैं , गजब का मौसम है कातिलाना ।
ये इश्क भी क्या अजब का फन है नज़र नज़र पे ठहर रही है ।।

तमाम रातो के सिलसिलों में , खतों से अक्सर पयाम आया ।
जो चोट मुझको मिली थी तुझसे वो फ़िक्र बनकर उभर रही है ।।

----- नवीन मणि त्रिपाठी

मौलिक अप्रकाशित

Views: 1150

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 13, 2016 at 4:24pm
आ0 सुरेन्द्र नाथ सिंह कुश क्षत्रप जी तहेदिल से शुक्रिया ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on December 13, 2016 at 4:23pm
आ0 अनीता जी आभार । ओबीओ में स्वागत है ।
Comment by नाथ सोनांचली on December 12, 2016 at 2:13pm
आदरणीय नवीन मनी त्रिपाठी जी सादर अभिवादन, बहुत बढ़िया गजल कहीं आपने, दाद के साथ हर शैर पर मुबारकबाद कबूल फरमाए।
Comment by Anita Maurya on December 10, 2016 at 10:12am

वाह.... बहुत खूब ..

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 9, 2016 at 9:47am
आ0 मिथिलेश सर सादर आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 8, 2016 at 11:48pm

आदरणीय नवीन जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं. सादर 

Comment by Sushil Sarna on December 8, 2016 at 6:21pm

न वक्त का कुछ पता ठिकाना न रात मेरी गुज़र रही है ।

अजीब मंजर है बेखुदी का , अजीब मेरी सहर रही है ।।

ग़ज़ल के मिसरों में गुनगुना के , जो दर्द लब से बयां हुआ था ।

हवा चली जो खिलाफ मेरे , जुबाँ वो खुद से मुकर रही है ।।

गज़ब के अशआर कहे हैं सर आपने। ..... खूबसूरत अहसासों की इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 8, 2016 at 12:40am
आ0 कबीर सर सादर नमन सर ।शुतुरगुरबा दोष को सर मैंने अपनी मूल प्रति में आपके मार्ग दर्शन का पालन कर लिया है । बहुत बहुत आभार सर । आपके मार्ग दर्शन में अत्यंत कीमती जानकारी प्राप्त हो जाती है ।
Comment by Samar kabeer on December 7, 2016 at 9:07pm
ऐब-ए-तनाफ़ुर के बारे में आपने सही फरमाया,लेकिन मेरा फ़र्ज़ था कि मैं आपको आगाह कर दूँ,इसलिये बता दिया ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on December 7, 2016 at 5:33pm
बहुत बहुत आभार सर । मैंने कहीं पढ़ाथा कि यदि शायर ग़ज़ल पढ़कर शेर को निभा ले जाता है तो ऐबे तनाफुर कोई दोष न के बराबर ही समझा जाता है । वैसे भी यह दोष अरब संस्कृति की देन है जहाँ उच्चारण में अस्पष्टता की वजह से बना दिया गया था । वर्तमान परिवेश में विशेष परिस्थितियों में ही ऐब तनाफुर को महत्त्व दिया जाता है । उदाहरण के रूप में हम हिंदी भाषी दिन भर ऐबे तनाफुर में सैकड़ो बार बात करते रहते हैं ।
जैसे
हम काम कर रहे हैं ।
वह भाग गए ।
रुपया याद है । आदि आदि ।

सर जो मुझे लगा वह बात मैंने आपके सामने रख दी है आप बड़े शायर हैं मुझे यकीन है आप इस विषय पर अपना भी व्यक्तिगत मत रखेंगे । आशा यह भी है कि की आप शिष्य की बात को अन्यथा न
लेते हुए किसी समाधान की दिशा की ओर प्रेरित भी करेंगे । सादर नमन सर ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा पाण्डे जी, सार छंद आधारित सुंदर और चित्रोक्त गीत हेतु हार्दिक बधाई। आयोजन में आपकी…"
15 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी,छन्नपकैया छंद वस्तुतः सार छंद का ही एक स्वरूप है और इसमे चित्रोक्त…"
15 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, मेरी सारछंद प्रस्तुति आपको सार्थक, उद्देश्यपरक लगी, हृदय से आपका…"
15 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा पाण्डे जी, आपको मेरी प्रस्तुति पसन्द आई, आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।"
15 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
16 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय "
16 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी उत्साहवर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार। "
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप उत्तम छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
17 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय प्रतिभा पांडे जी, निज जीवन की घटना जोड़ अति सुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
17 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी, सार छंद में छन्न पकैया का प्रयोग बहुत पहले अति लोकप्रिय था और सार छंद की…"
17 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
18 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service