For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिगर औ साँस में उतर आई मई (ग़ज़ल, इस्लाह के लिए)

122 212 122 212

ये शेर-ओ-शायरी? मुझे, इश्क़ है भई
सभी से, आप से; किसी ख़ास से नई

क़लम चिल्ला उठी, जहाँ के दर्द से
कुई तड़पा, निगाह नम हो गई

किसी नें राष्ट्र को तरेरी आँख तो
जिगर औ साँस में उतर आई मई

सुनो ए, नाज़नीं घमण्डी होने का
इसे इल्ज़ाम देने को बस तुम नई

महज़ खटती रहीं वो बच्चों के लिए
सभी माताओं की उम्र यूँ ही गई

मौलिक-अप्रकाशित

Views: 541

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on August 31, 2018 at 6:31am

//और क्षमा निवेदन कि आपका कमेंट गल्ती से डिलीट हो गया//

कोई बात नहीं ।

आपका प्रयोग सराहनीय है,लेकिन मैंने भी आपके प्रति अपना फ़र्ज़ ही निभाया है,ख़ुश रहो, सलामत रहो ।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 30, 2018 at 11:33pm

और क्षमा निवेदन कि आपका कमेंट गल्ती से डिलीट हो गया

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 30, 2018 at 11:32pm

आदरणीय बाऊजी, दरअसल इस प्रयोग के लिए मेरी कोई ज़िद नहीं है, बस एक प्रयास मात्र है जो निश्चित सिद्धांतों से हर हाल अलग हैं...... इस अलग प्रयोग का एक ही कारण रहा, वो है......जब मैं इश्क़-है पढ़ता हूँ तो उसका उच्चारण इश्क्है उच्चारित होता है।

शेष, यहाँ कोई ज़िद नहीं है.....यह तो एक सीखने के क्रम में बन पड़ी ग़ज़ल है, जरूरी नहीं कि इसे नियमों से ऊपर जाकर स्वीकार करवाने की कोशिश करूँ.......प्रणाम

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 30, 2018 at 7:25pm

122 212 122 212

ये शेरो/शायरी/मुझे इश्/क्है भई
सभी से/आप से/किसी ख़ा/स्से नई

क़लम चिल्/ला उठी/जहाँ के/दर्द से
कुई तड़/पा निगा/ह नम जो/ हो गई

किसी नें/राष्ट्र को/तरेरी/आँख तो
ज़िगर औ/साँस में/चढ़ाई/ है मई

सुनो ए/नाज़नीं/घमण्डी/होने का
इसे इल्/ज़ाम दे/ने को बस/तुम नई

महज़ खट/ती रहीं/वो बच्चों/के लिए
सभी मा/ओं की उम/र यूँ ही तो गई

आदरणीय बाऊजी आपके समझाने का अंदाज़ बहुत खूब रहा। ईमानदारी से कहता हूँ......आपका कमेंट पढ़ के पंकज का ज़िद्दी मन, तपाक से बोल उठा, इसकी तकती'अ करते हैं। लेकिन जैसे ही काम शुरू हुआ, अधिगमकर्ता यानी lerner को ख़ुद ब ख़ुद महसूस हो गया कि.............

1. बह्र से खारिज़ हैं, ग़ज़ल के अधिकांश शेर
2. कोई भी ग़ज़ल पोस्ट करने से पहले पंकज....तकती'अ बहुत ज़रूरी है।

बहुत सारा आभार और विनयवत प्रणाम........ओबीओ मंच यूँ ही आपके बिना अधूरा थोड़े ही लगता है।


पंकज

Comment by Samar kabeer on August 30, 2018 at 2:40pm

अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,इन अशआर की दिये गए अरकान से तक़ती'अ करके देखें,फिर बतएँ कि क्या आप संतुष्ट हैं?

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 29, 2018 at 5:32pm

आदरणीय रवि सर, मत्ला टाइप किये जाने से रह गया, क्षमा चाहता हूँ.....

Comment by Ravi Shukla on August 29, 2018 at 4:20pm

आदरणीय पंकज जी इन अशआर से संदेश तो पहुंच रहा है किंतु किस विधा में इसे लिखा है यह स्पष्ट नहीं है बहर आपने लिखी है और अगर ग़ज़ल की श्रेणी में है तो मतला होना चाहिए मैं अभी गजल के मतले तक नहीं पहुंच सका हूं कृपया स्पष्ट करें। पुनः बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल कुछ शेर अच्छे हुए हैं लेकिन अधिकांश अभी समय चाहते हैं। हार्दिक…"
8 seconds ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
4 hours ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
4 hours ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
6 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
8 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
10 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
10 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
16 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service