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क्या मन है बीमार पड़ौसी - गजल - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२२२/२२२२


खाता क्यों है खार पड़ौसी
क्या मन है बीमार पड़ौसी।१।


इतनी जल्दी भूल गया क्यों
बचपन के हम यार पड़ौसी।२।


सच जाने पर खूब करे क्यों
बेमतलब  तकरार  पड़ौसी।३।


जो कहना है सम्मुख कह दे
मत कर  पीछे  वार पड़ौसी।४।


जबरन हम तो नहीं घुसेंगे
क्यों ढकता है द्वार पड़ौसी।५।


लड़ना भिड़ना पागलपन है
इसमें सब की हार पड़ौसी।६।


तुझको दुनिया जान गयी है
मत बन तू हुशियार पड़ौसी।७।


सदियों  से  कश्मीर  हमारा
तेरा क्या अधिकार पड़ौसी।८।


नफरत  इतनी  ठीक नहीं है
बाँटा कर कुछ प्यार पड़ौसी।९।


मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 24, 2018 at 12:24pm

आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन । स्नेहाशीष के लिए आभार।

Comment by vijay nikore on September 24, 2018 at 6:39am

गज़ल अच्छी लगी। हार्दिक बधाई, आदरणीय लक्ष्मण जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 22, 2018 at 6:25am

आ. भाई मिर्जा जावेद जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।

Comment by mirza javed baig on September 21, 2018 at 11:07pm

जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब शानदार ग़ज़ल के लिए दिली मुबारकबाद पैश करता हूं ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 21, 2018 at 6:51pm

आ. भाई बृजेश जी, गजल की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 21, 2018 at 10:28am

वाह बड़ी ही अच्छी ग़ज़ल कही है आदरणीय...हर एक शेर लाजबाब..

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 20, 2018 at 6:46am

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार । मार्गदर्शन करते रहिए ।

Comment by Samar kabeer on September 19, 2018 at 10:29pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 19, 2018 at 9:01pm

आ. भाई पंकज जी, गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 19, 2018 at 8:37pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी सर बहुत-बहुत बधाई इस बेहद खूबसूरत गजल के लिए

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