For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की- तू ये कर और वो कर बोलता है.

तू ये कर और वो कर बोलता है.
न जाने कौन अन्दर बोलता है
.
मेरे दुश्मन में कितनी ख़ामियाँ हैं
मगर मुझ से वो बेहतर बोलता है.
.
जुबां दिल की; मेरे दिल से गुज़रकर
मेरे दुश्मन का ख़ंजर बोलता है.
.
मैं कट जाऊं मगर झुकने न देना
मेरे शानों धरा सर बोलता है.
.
मैं हारा हर लड़ाई जीत कर भी
जहां सुन ले! सिकंदर बोलता है.
.
बहुत भारी पडूँगा अब कि तुम पर
अकेलों से दिसम्बर बोलता है.
.
नया मज़हब नई दुनिया बनाओ
ये जुमला हर पयम्बर बोलता है.
.
तेरे अन्दर के नंगेपन को शाइर  
शराफ़त में दिगम्बर बोलता है.
.
ये तारीफ़ें जो ज़ालिम की करो हौ
ज़ुबां कट जाने का डर बोलता है.   
.

निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 793

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 10, 2019 at 11:35am

शुक्रिया आ. समर सर,
आपके कहे अनुसार ज़बां का टाइपो एरर मूल प्रति में दुरुस्त क्र लिया है. 
मेरे शानों धरा वाले शेर के ऊला में थोडा जम का अहसास भी था सो उसे अभी निकाल दिया है..
सिकंदर पर काम जारी है ..
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 10, 2019 at 11:33am

शुक्रिया आ. लक्ष्मण जी 

Comment by Samar kabeer on December 8, 2019 at 2:34pm

जनाब निलेश 'नूर' साहिब आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

'जुबां दिल की; मेरे दिल से गुज़रकर'

इस मिसरे में 'जुबां' को "ज़बाँ" कर लें ।

'मेरे शानों धरा सर बोलता है'

इस मिसरे में वाक्य विन्यास ठठीक नहीं,देखियेगा । 

'जहां सुन ले! सिकंदर बोलता है'

इस मिसरे में बहतरी की गुंजाइश है,देखियेगा ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 7, 2019 at 11:05am

आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बहुत ही उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 7, 2019 at 9:38am

शुक्रिया आ. सुरेन्द्र भाई 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 7, 2019 at 9:38am

शुक्रिया आ. सलीम रज़ा साहब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 7, 2019 at 9:38am

शुक्रीआ आ. प्रदीप जी 

Comment by नाथ सोनांचली on December 3, 2019 at 7:30pm

आद0 नीलेश भाई जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कहीं आपने। बहुत दिन बाद आपकी ग़ज़ल से मुखातिब भी हो रहा हूँ। शेर दर शैर बधाई स्वीकार कीजिए

Comment by SALIM RAZA REWA on December 3, 2019 at 6:51pm

भाई नीलेश जी (करो हौ ) का ज़बाब नहीं। खूबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on December 2, 2019 at 6:37pm

बहुत खूब निलेश जी, गज़ल में से अच्छा खासा नूर टपक रहा है 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
1 hour ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
17 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service