For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मंज़िल की जुस्तजू में तो घर से निकल पड़े..( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

221-2121-1221-212

मंज़िल की जुस्तजू में तो घर से निकल पड़े
काँटों भरी थी राह प बेख़ौफ़ चल पड़े (1)

भौहें तनीं थीं देख के मुझको ऐ दिल मेरे
कुछ ऐसा कर कि अब उसी माथे प बल पड़े (2)

हर रात जागता हूँ मैं बेवज्ह दोस्तो
उसकी भी नींद में किसी शब तो ख़लल पड़े (3)

सारे बुजुर्ग देख के ख़ामोश थे मगर
बच्चे तो देखते ही खिलौने मचल पड़े (4)

सोचा नहीं था ज़ीस्त ये दिन भी दिखाएगी
देखी जो शक्ल मौत की हम भी उछल पड़े (5)

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 659

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Chetan Prakash on August 3, 2021 at 4:13am

अच्छी ग़ज़ल हुई, सलक गणवीर सिंह , आदाब ! बस एक सुझाव दे सकता हूँ, वो ये कि मतले के ऊला में 'तो' के स्थान पर ' वो' कर ले! सादर  ! 

Comment by सालिक गणवीर on August 2, 2021 at 6:27pm

उस्ताद -ए - मुहतरम साहिब
आदाब

 ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका शुक्रगु़ज़ार हूँ.
इस्लाह के लिए मश्कूर -ओ -ममनून हूँ 

              

Comment by सालिक गणवीर on August 2, 2021 at 6:20pm

आदरणीय  Saurabh Pandey जी

सादर प्रणाम

ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका शुक्रगु़ज़ार हूँ.

Comment by सालिक गणवीर on August 2, 2021 at 6:19pm

आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'  जी

सादर प्रणाम

ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका शुक्रगु़ज़ार हूँ.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 1, 2021 at 8:44pm

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन ।अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई । सुधीजनों की टिप्पणी का संज्ञान लें । सादर..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 1, 2021 at 12:33am

आदरणीय सालिक गणवीर जी, बढिया कह गये. बहरहाल, तनिक और समय देना था. मिसरे और गढ़ जाते. 

शुभातिशुभ 

Comment by Samar kabeer on July 26, 2021 at 6:24pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'मंज़िल की जुस्तजू में तो घर से निकल पड़े'

मेरे ख़याल से इस मिसरे में 'तो' की जगह "जो" शब्द उचित होगा ।

'भौहें तनीं थीं देख के मुझको ऐ दिल मेरे
कुछ ऐसा कर कि अब उसी माथे प बल पड़े'

इस शैर के ऊला में 'ऐ' को 1 पर लेना उचित नहीं, इसे यूँ कह सकते हैं:-

'भौहें तनी थीं जिसकी मुझे देख कर कभी'

Comment by सालिक गणवीर on July 24, 2021 at 11:01am

आदरणीय  Chetan Prakash जी

सादर प्रणाम

ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका शुक्रगु़ज़ार हूँ.

Comment by Chetan Prakash on July 24, 2021 at 9:27am

आदाब,  सालिक गणवीर साहब,  छोटी  सी किन्तु  खूबसूरत ग़ज़ल  कही आपने, बधाई  !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service