For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1222 - 1222 - 1222 - 1222

फ़क़त रिश्ते जताने को यहाँ मेरी ज़रूरत है 

अज़ीज़ों को सिवा इसके कहाँ मेरी ज़रूरत है 

मुझे ग़म देने वाले आज मेरी राह देखेंगे 

मुझे मालूम है उन को जहाँ मेरी ज़रूरत है 

मेरे अपने मेरे बनकर दग़ा देते रहे मुझको 

सभी को ग़ैर से रग़्बत कहाँ मेरी ज़रूरत है 

लिये उम्मीद बैठे हैं वो मेरी सादा-लौही पर 

चला आता हूँ मैं अक्सर जहाँ मेरी ज़रूरत है

कभी इतराते हैं ख़ुद पर कभी सहमे हुए से वो

बहुत घबरा के कहते हैं कि हाँ मेरी ज़रूरत है 

ज़रूरत कब रही मेरी तुम्हें ख़ुशियों के मौक़े पर 

मगर.. रखने को सर काँधे पे हाँ मेरी ज़रूरत है 

मेरे हाथों फ़ना मुझको ही कर डाला है जब तुम ने 

बचा ही क्या है अब क्यों नागहाँ मेरी ज़रूरत है 

'अमीर' अब भर चुका दिल भी तमाशा क्यों उन्हें भी तो 

वही ग़ैरों की चाहत है कहाँ मेरी ज़रूरत है 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 1017

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 17, 2021 at 11:09pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद ज़र्रा नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत शुक्रिया। सादर। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 17, 2021 at 9:34pm

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 17, 2021 at 9:05pm

जनाब बृजेश कुमार ब्रज जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद ज़र्रा नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत शुक्रिया।  सादर। 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 17, 2021 at 8:30pm

बहुत ही खूब ग़ज़ल कही आदरणीय अमीरुद्दीन जी..होने वाली चर्चा भी सार्थक है...

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 11, 2021 at 3:49pm

//यहाँ लगभग निरर्थक है.. इस की जगह मियाँ करेंगे तो एक नया क़वाफ़ी भी मिलेगा और मिसरा अधिक कसावट वाला लगेगा//

आपने ग़ौर नहीं किया क़वाफ़ी इस ग़ज़ल में 'अहाँ' के हैं ।

मुहतरम निलेश जी, आप की बात से मुत्तफ़िक़ हूँ, सिर्फ़ 'आँ' के क़वाफ़ी पर अशआर में नयापन और विविधता के बहुत सारे विकल्प हो सकते हैं और ग़ज़ल कहना भी इसके बनिस्पत काफ़ी आसान होता, मगर अहाँ के क़वाफ़ी पर कितनी ग़ज़लें कही गयी हैं... बहुत कम।

मुझे इस क़ाफ़िया पर ग़ज़ल कहने में भी नयापन महसूस हुआ है, और वैसे भी यह एक मुसल्सल ग़ज़ल है और इस ग़ज़ल की ज़मीन की रू से क़वाफ़ी 'अहाँ' ज़्यादा मुनासिब है।

ग़ज़ल पर आपकी आमद, मशविरे और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया। सादर।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 11, 2021 at 1:49pm

आ. समर सर,

मैंने इसीलिए मतले में बदलाव का बोला है,, उस के बाद सभी क़वाफ़ी ज्यूँ के त्यूं रह सकते हैं.

सादर 

Comment by Samar kabeer on December 11, 2021 at 1:38pm

//यहाँ लगभग निरर्थक है.. इस की  जगह मियाँ करेंगे तो एक नया क़वाफ़ी भी मिलेगा और मिसरा अधिक कसावट वाला लगेगा//

आपने ग़ौर नहीं किया क़वाफ़ी इस ग़ज़ल में 'अहाँ' के हैं ।

 
.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 11, 2021 at 1:20pm

आ. अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब
ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ,,

मतले के ऊला में फ़क़त रिश्ते जताने को यहाँ मेरी ज़रूरत है  यहाँ लगभग निरर्थक है.. इस की  जगह मियाँ करेंगे तो एक नया क़वाफ़ी भी मिलेगा और मिसरा अधिक कसावट वाला लगेगा. 
.
सादर 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 10, 2021 at 5:03pm

मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब, आँख के कामयाब आप्रेशन के बाद जल्वा अफ़रोज़ होने पर आपका ओ बी ओ पर पर हार्दिक स्वागत करते हैं। ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।

इसी उम्मीद बैठे हैं... पर आपकी इस्लाह सर आँखों पर, 'मुझे ही ज़ेर करते हैं... पर भी आपसे सहमत हूँ, कुछ और सोचता हूँ।  सादर। 

Comment by Samar kabeer on December 10, 2021 at 2:53pm

जनाब अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'इसी उम्मीद बैठे हैं वो मेरी सादा-लौही पर'

इस मिसरे का वाक्य विन्यास ठीक नहीं,उचित लगे तो यूँ कर लें:-

'लिये उम्मीद बैठे हैं वो मेरी सादा-लौही पर'

'मुझे ही ज़ेर करते हैं मुझी से लौ लगाते फिर 

वो जब घबरा के कहते हैं कि हाँ मेरी ज़रूरत है'

इस शैर के दोनों मिसरों में मुझे रब्त नहीं लगा, ग़ौर करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Vikas is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service