1121 - 2122 - 1121 - 2122
जो भुला चुके हैं मुझको मेरी ज़िन्दगी बदल के
वो रगों में दौड़ते हैं ज़र-ए-सुर्ख़ से पिघल के
जिन्हें अपने सख़्त दिल पर बड़ा नाज़ था अभी तक
सुनी दास्ताँ हमारी तो उन्हीं के अश्क छलके
तेरी बेरुख़ी से निकले मेरी जान, जान मेरी
मुझे देखता है जब तू यूँ नज़र बदल-बदल के
जो नज़र से बच निकलते तेरी ज़ुल्फ़ें थाम लेतीं
चले कैसे जाते फिर हम तेरी क़ैद से निकल के
न मिटाओ ठोकरों से मेरी क़ब्र के निशाँ तुम
इसी बस्ती आ रहोगे कभी तुम भी काँधे चलके
ये उदास-उदास चहरे ये बुझी-बुझी सी आँखें
ये मक़ाम कौन सा है तेरे शह्र से निकल के
जो क़सीदे पढ़ रहे हैं तेरी शान में 'अमीर' अब
यही रुस्वा कल करेंगे तुझे पैंतरा बदल के
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया। सादर।
आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
आदरणीय चेतन प्रकाश जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद ज़र्रा नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया जनाब,
पाँचवें शे'र का भाव क़ब्र में दफ़्न मय्यत का क़ब्र के ऊपर चलने-फिरने वालों से यह कहने का है कि ऐसा न करें यह तकलीफ़-देह है, समय आने पर तुम्हें भी दूसरे लोगों के काँधों पर चल कर यहीं आकर दफ़्न होना है। सादर।
आदाब, अमीर साहब, ग़ज़ल अच्छी हुई है , बधाई ! पाँचवे शे'र का सानी देखिएगा, मुझे रब्त का अभाव लगा ! सादर
धन्यवाद, आदरणीय ।
पुन: बधाई
जनाब निलेश शेवगाँवकर जी और मुहतरम समर कबीर साहिब के दर्मियान हुई चर्चा और विवेचन के प्रकाश में यह निष्कर्ष निकला है कि प्रस्तुत ग़ज़ल का मिसरा 'जिन्हें सँगदिली पे अपनी बड़ा नाज़ था उन्होंने' में 'सँगदिली' शब्द को 212 के वज़्न पर लेना उचित नहीं है, अतः मिसरे को बदल कर यूँ कर दिया गया है - 'जिन्हें अपने सख़्त दिल पर बड़ा नाज़ था उन्होंने', दोनों गुणीजनों का सादर आभार।
//सवाल यह नहीं है कि इसे लिखा कैसे जाए, सवाल यह है कि दोनों सूरतों में संग का वज़'न क्या हो //
जी, वज़्न तो 'संग दिली' का 2112 ही होगा ।
आ. समर सर,
सवाल यह नहीं है कि इसे लिखा कैसे जाए, सवाल यह है कि दोनों सूरतों में संग का वज़'न क्या हो
सादर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online