For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दो सीधे से सवाल का जवाब दोस्तों ,
क्यों पी रही है मुझको ये शराब दोस्तों ,

मैने शराब पी थी गम भुलाने के लिए
बढ़ने लगी है क्यों मेरी अजाब दोस्तों,

माना कि पी गया मै जश्ने यार मे बहुत ,
डर है जिगर न दे कहीं जवाब दोस्तों ,

इतनी ही गर हसीं है ये प्याले की महेबुबा,
फिर क्यों मिला रहे सुरा में आब दोस्तों,

मैने जवानी जाम संग बितायी शान से,
चर्चा हुई बुढ़ापे की ख़राब दोस्तों ,

कितनी ही मिन्नतों के बाद जिंदगी मिली,
ना खाक में मिले ये माँ का ख्वाब दोस्तों,

"बागी" ने अपना मान के कहा है धीरे से,
नासाज गर लगे तो है किताब दोस्तों ,

( अजाब = दर्द , आब = पानी , नासाज = असहमत )

Views: 876

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on August 11, 2010 at 3:25pm
नशे में बीती जो जिंदगी मेरे दोस्त
बुरा ख्वाब थी या टूटा आइना मालूम नहीं दोस्त
कभी गम भुलाने को कभी खुशियाँ मनाने को
लगती है कब यह चुपके से मालूम नहीं दोस्त...
छोडूँ इस मुंह-लगी को अब कैसे मेरे दोस्त..
बनती गयी यह जी का जंजाल मेरे दोस्त
बहुत उम्दा ग़ज़ल है..एक एक लफ्ज बड़ी खूबसूरती से सजाया गया है ..लेकिन मुझे ख़ुशी है कि साथ में यह सन्देश भी दोहराया गया है कि पीने के बाद जिगर तो जवाब देगा ही रिश्ते नाते भी खटास से भर जायेंगे ..और हाथ आयेगा सिर्फ पछतावा.. एक बुरा ख्वाब एक टूटा आइना ....
Comment by satish mapatpuri on August 9, 2010 at 4:08pm
माना कि पी गया मै जश्ने यार मे बहुत ,
डर है जिगर न दे कहीं जवाब दोस्तों ,
बहुत बढ़िया गणेश जी, मौत से क्या डरना? सुना नहीं है- ज़िन्दगी तो बेवफा है, एक दिन ठुकराएगी.मौत महबूबा है अपने साथ लेके जाएगी. बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल है, बहुत-बहुत बधाई.
Comment by Neelam Upadhyaya on August 9, 2010 at 11:18am
बहुत बढ़िया और भावपूर्ण रचना है । इसके साथ ही सलिल जी का मार्गदर्शी टिप्पणी भी जानकारी बढ़ाने वाली है ।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 9, 2010 at 5:12am
आदरणीय आचार्य जी, आप के मार्गदर्शन हम सब को बहुत ही लाभान्वित करती है, आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने मेरी रचना को टिप्पणी योग्य समझी,
मतले के मिसरा उला मे जो "दो" लिखा गया है उस दो का मतलब २ से नहीं है बल्कि देने के लिये प्रयोग किया गया है, रुक्न की गणना उर्दू तकतई के अनुसार की गई है, बहर को बनाये रखने के लिये जान कर महेबुबा लिखा गया है, गलती से "कही" लिख गया है जिसका सुधार कर दिया गया है, मैं सीखने के दौर से गुजर रहा हूँ, गलतिया बता देने से सुधार का मौका मिल जाता है, निवेदन है कि आगे भी इसी तरह से मार्गदर्शन करना चाहेंगे,
आपका
एक शिष्य
Comment by sanjiv verma 'salil' on August 8, 2010 at 11:08am
दो सीधे से सवाल का जवाब दोस्तों , = २२, दो बहुवचन, जवाब एकवचन, सवालों बहुवचन
क्यों पी रही है मुझको ये शराब दोस्तों , = २३

मैने शराब पी थी गम भुलाने के लिए = २४
बढ़ने लगी है क्यों मेरी अजाब दोस्तों, = २३

माना की पी गया मै जश्ने यार मे बहुत , = २५, की नहीं कि
डर है जिगर न दे कही जवाब दोस्तों , = २१, कही नहीं कहीं

इतनी ही गर हसीं है ये प्याले की महेबुबा, = २७, महेबुबा नहीं महबूबा
फिर क्यों मिला रहे सुरा में आब दोस्तों, = २२,

मैने जवानी जाम संग बितायी शान से, = २३
चर्चा हुई बुढ़ापे की ख़राब दोस्तों , = २२

कितनी ही मिन्नतों के बाद जिंदगी मिली, = २४
ना खाक में मिले ये माँ का ख्वाब दोस्तों, = २३

"बागी" ने अपना मान के कहा है धीरे से, = २६
नासाज गर लगे तो है किताब दोस्तों , = २२

उर्दू तख्ती के हिसाब से मात्रा गणना में अंतर आयेगा. मुझे लगता है कि हिन्दी व्याकरण और पिंगल के नियमों के अनुसार लिखना अधिक असं तथा कम गलतियों से युक्त होता है. उर्दू में बहर, काफिया और रदीफ के नियम अरबी-फ़ारसी से आये हैं. उनकी बारीकियाँ समझना बेहद कठिन है. इसीलिये हिंदीभाषियों द्वारा लिखी गयी अधिकांश ग़ज़लों को उर्दूवाले खारिज कर देते हैं. शब्दों के उच्चारण के अनुसार टंकण हो तो कुछ त्रुटियों का निवारण हो जाएगा. लिंग और वचन का ध्यान सहज ही रखा जा सकता है. शब्दों के सही रूप और सही अर्थ के लिये हिन्दी और उर्दू के अच्छे शब्द कोष अवश्य प्रयोग करें. गीतोपहरागित-उर्दू के बहुत सी शब्द संपदा सांझी है. इसलिए निस्संकोच प्रयोग करें.
Comment by अनुपम ध्यानी on August 8, 2010 at 2:29am
nice very nice sir!
Comment by Pallav Pancholi on August 7, 2010 at 10:26pm
achhe bhaav hai sir.....
Comment by ABHISHEK TIWARI on August 7, 2010 at 9:42pm
ज़िंदगी के गम को भूल के पी जा आज मयखना दोस्तों,
ख्वाब देखते तो सब हैं,
मगर चढ़ा देआज इनको परवान दोस्तों,
गर पी ना सके खुशी तो क्या?
आज पी जा पूरी महँगाई दोस्तों,
Comment by Rash Bihari Ravi on August 7, 2010 at 7:26pm
jai hooooooooooooooo

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 7, 2010 at 3:37pm
आदरणीया प्रवीना जोशी जी , आशा दीदी ,आदरणीय मनोज भईया , प्रभाकर भईया,बब्बन भईया , मित्र आशीष जी ,सुनील पाण्डेय जी और प्रीतम जी आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद,जो अपना बहुमूल्य टिप्पणी इस ग़ज़ल पर दिये ,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
12 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
17 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
18 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service